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कविता: क़ानून अंधा होता है

कहावत कड़वी है पर सत्य है, दुनिया के क़ानून अंधे होते हैं, क़ानून की आँखे नहीं होती हैं, क़ानून के हाथ पैर नहीं होते हैं। क़ानून न भाव प्रधान होता है, और न ही भावना प्रधान होता है, क़ानून न इंसान को पहचानता है, न ही मानवता को पहचानता है। क़ानूनी अदालत को बस साक्ष्य […]

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