ए अहमद सौदागर
लखनऊ। स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित होने वाले समारोहों को लेकर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। किसी भी रूप में भेस बदलकर वारदात कर सकते हैं इस आशंका के मद्देनजर सूबे में विशेष चौकसी बरतने के निर्देश दिए गए हैं। पुलिस महानिदेशक मुख्यालय ने सभी जिलों के कप्तानों को पत्र भेजकर आगाह किया है कि समारोह में संदिग्ध लोगों की छानबीन की जाए। समारोहों में बम विस्फोटक दस्ते भी तैनात किए जाएंगे। निरीक्षण के बाद ही लोगों को प्रवेश दिया जाएगा। जिन लोगों की ड्यूटी लगाई जाएगी उनके पास फोटो युक्त परिचय पत्र अनिवार्य होगा। बताया गया कि स्वतंत्रता दिवस पर सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस साइबर कैफे भी निगाह हो और इनके मालिकों से कहा गया है कि वे कैफे में आने जाने वालों पर पूरा ध्यान रखेंगे।
,,,, … और ज़ब जमानत से कर दिया इन्कार
,,, ज़रा याद करो…
देश प्रेम और आज़ादी के दीवानों की एक से बढ़कर एक कहानियां हैं, जो हमारे अंदर देश प्रेम की भावना जगाने में काफी कारगर है। वर्तमान में किसी भी मामले में जेल जाने से पहले जहां लोग जमानत लेने का तिकड़म करने लगते हैं। वहीं गौर करें तो दूसरी ओर देशभक्त अंग्रेजों द्वारा दी गई जमानत को ठुकराकर जेल जाना पसंद करते थे। चारों ओर स्वतंत्रता की मशाल जल रही थी। लोगों को भड़काने और देशप्रेम की भावना जागृत करने के आरोप में अंग्रेजों ने 17 जुलाई 1933 को लखनऊ में समाजसेवी सीबी गुप्ता का गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया।
लोगों के बढ़ते आक्रोश के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने पांच-पांच हजार रुपए के दो जमानत देने पर उन्हें रिहा करने का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने जमानत लेने से इंकार करके जेल जाना ही मुनासिब समझा। गुप्ता को एक साल का कारावास हो गया। नौबस्ता के ठाकुर प्रसाद को लोगों को भड़काने के आरोप में एक महीने की क़ैद दे दी गई, लेकिन उन्होंने ने भी जमानत से मना कर दिया। 16 अगस्त 1933 में निशातगंज के मौलाना अब्दुल लतीफ, 26 अगस्त 1933 को बाबूलाल, पुलन बिहारी, रामधर, गिरजा शंकर जैसे कई देशभक्तों ने जमानत से इन्कार करके देश के लिए जेल को ही अपना दूसरा घर बनाना मुनासिब समझा।