चुनौतियों से भरी पत्रकारिता

डॉ ऋषिकुमार मणि त्रिपाठी
डॉ ऋषिकुमार मणि त्रिपाठी

देवर्षि नारद पत्रकारिता के आदिगुरु हैं। समूचे ब्रह्मांड में भ्रमण करते हुए एक जगह का संवाद,दूसरी जगह निष्पक्षता के साथ पहुंचाना उनका सहज कृत्य था । इसी से दैत्य, देवता मनुष्य,यक्ष, गंधर्व, किन्नर सभी उनका आदर करते थे। ऊनका सहज स्वभाव था‌-सत्य को युक्ति से प्रस्तुत करना । जगत के कल्याण का सतत चिंतन और सुंदरतम प्रस्तुति उनकी विशेषता रही। वे चलते फिरते वाचिक समाचार के संवाहक थे। मानव के विकास के साथ सूचना और संवाद को एक दूसरे तक पहुंचाने की परंपरा कायम हुई। प्रारंभ में आवागमन की सुविधाएं कम थीं। ढोल और नगाड़े बजा कर लोगों को जगह जगह एकत्र कर मुनादी करके राजा का संवाद प्रजा तक पहुंचाया जाता था। प्रजा भी राजा के दरबार के बाहर घंटा या चर्म वाद्य (धौसा) आदि पर आघात कर फरियाद लगाती थी।एक राज्य से दूसरे राज्य मे संवाद संप्रेषण के लिए दूत रखे जाने लगे। महिलाओं मे नाउन और मालिन आदि द्वारा सूचना संवाद को एक दूसरे तक पहुंचाया करते थे। राजा प्रजा की भावना और स्थिति का आकलन स्वयं गुप्त रूप से सामान्य जनों की वेश भूषा धारण कर जनता के विचार जान लेता था।जगह जगह गुप्तचरों को रख कर समाज की हर परिस्थिति से अवगत होजाया करता था। जिससे राज्य संचालन और सम्यक न्याय में सुविधा मिलती थी। समय के साथ हर युग ये बदलाव हुए। भारत में मुस्लिम शासन काल और अंग्रेजों के शासन काल में उनके सूचना और समाचार के अपने तरीके थे। जो बहुत कुछ राजाओं की तरह ही थे। भारत मे पहला अखबार बंगाल मे ‘उदंत मार्तंड’ के रूप में
प्रकाशित हुआ।

आजादी की लड़ाई मे मीडिया

स्वतंत्रता आंदोलन में मीडिया की प्रखर भूमिका रही है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जनता को तैयार किया जिससे आजादी का आंदोलन जन आंदोलन बन गया…

भारत की स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम 1857 में हुआ। उस समय एक समाचार पत्र था पयामे आजादी।

‘पयामे आजादी’

स्वतंत्रता-आंदोलन के मूर्धन्य नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी, 1857 को दिल्ली में ‘पयामे आजादी’ पत्र का प्रकाशन किया। यह एक ऐसा शोला था जिसने अपनी प्रखर एवं तेजस्वी वाणी से जनता में स्वतंत्रता का प्रदीप्त स्वर फूंका। अल्प समय तक निकलने वाले इस पत्र ने तत्कालीन वातावरण में ऐसी जलन पैदा कर दी जिससे ब्रिटिश सरकार घबरा उठी तथा उसने इस पत्र को बंद कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। जिस व्यक्ति के पास भी इस पत्र की कोई प्रति मिल जाती तो उसे अनेक यातनाएं दी जातीं। इसकी सारी प्रतियों को जब्त करने का विशेष अभियान तत्कालीन सरकार ने चलाया, फिर भी इस पत्र ने जन-जागृति के क्षेत्र में सराहनीय योगदान दिया।
महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, एनी बेसेंट तथा कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने कई पत्र-पत्रिकाएं निकाले तथा लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार किया। लोकमान्य तिलक के हिंद केसरी की अपनी अलग भूमिका रही। हिंदोस्थान, सर्वहितैषी, हिंदी बंगवासी, साहित्य सुधानिधि, स्वराज्य, नृसिंह व प्रभा प्रभृति आदि पत्रों ने जागरण मंत्र के जरिए आंग्ल शासकों के दांत खट्टे कर दिए तथा अंत में भारत की आजादी संभव हुई।

आजादी के बाद मीडिया

‘आज’ अखबार काशी से निकलने वाला दैनिक समाचार काफी लोकप्रिय हुआ। नैशनल हेरल्ड,नार्दर्न इंडिया पत्रिका, स्वतंत्र भारत आदि दैनिक समाचार पत्र। इलुस्ट्रैटैड वीकली आदि दैनिक समाचार पत्र व पत्रिकाएं तेजी से निकलनी शुरु हुई। जिनमे उक्त के अलावा हिंदुस्तान,धर्मयुग,कादंबिनी,मुक्ता सरिता, दिंनमान,आलोचना ,उत्कर्ष,बाल पत्रिकायें चंपक आदि व महिलाओं की पत्रिकाये निकलनी शुरु हुई। जिनके नाम गिनाना भी संभव नहीं। वैसे तो भारत में रेडियो का प्रयोग 1927से शुरु हुआ,पर आजादी के बाद 1957 से यह जनता की आवाज बन सका। आल इंडिया रेडियो से आकाशवाणी कहा जाने लगा।रेडियो के आगमन के साथ रेडियो पत्रकारिता शुरु हुई। समाचारों के अलावा गीत संगीत ,सभा और गोष्ठियां भी प्रसारित होने लगे। समाज के हर वर्ग के लिए रेडियो प्रसारण काफी लोकप्रिय हुआ। किंतु दो दशक बाद टेलीविजन के आने से इसकी भी लोकप्रियता घटी। यद्यपि इससे बहुत सारे पत्र और पत्रिकायें बंद होगईं । फिर भी कुछ अखबार और पत्र पत्रिकायें अपना अस्तित्व बचाने मे कामयाब‌ हुए।अब तो ढेर सारे अखबार बाजार मे आगए। टीवी के राष्ट्रीय चैनल प्रसारण के दो- तीन दशक गुजरने के बाद चैनलों की बाढ़ आगई। प्रतिस्पर्द्धा तेजी से बढ़ी तो मीडिया में विज्ञापन और टीआरपी पाने के लिए कार्पोरेट सेक्टर में होड़ मच गई। फल स्वरुप गुणवत्ता प्रभावित होने लगी। पत्रकारिता का मिशन भी तेजी से उसके प्रभाव मे आकर सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता विहीन होने लगा।

आज की पत्रकारिता

.. आज के समय दिनों दिन कठिन होती जारही है। त्वरित सूचनाओं को एकत्र करना, उसके प्रभाव और उसकी गुणवत्ता निर्धारित कर छापने के लिए तेजी बरतना और पेज व स्थान निर्धारित करना…कठिन कार्य है। जब बड़े बड़े अखबार और चैनेल कठिनाईयों से गुजर रहे हों, ऐसे मे नवोदित अखबार व चैनेल की बात ही क्या । इसमे सर्वाइव कर पाना दुष्कर कार्य है। नेताओं,व्यापारियों व मैनेजमेंट का दवाब झेलते हुए सच परोसना…..जबकि पग पगपर धमकियां भी मिलती हैं और प्रलोभन भी,ऐसे में सबको दर किनार कर सच उजागर करना बड़ा चैलेंजिंग है।

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