कविता : इंसानियत

डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

ईंट की दीवाल चुनना छोड़ दो।
आदमी को आदमी से जोड़ दो।।
ईंट की दीवाल तो ढह जाएगी।
इंसानियत ही बस यहां बच पाएगी।।1।।

दंभ का टकराव बढ़ता जारहा।
युद्ध का उन्माद ही टकरा रहा।।
बम धमाकों से शहर वीरान हैं।
चील कौए खा रहे इंसान हैं।।2।।

सज रही हैवानियत की बस्तियां।
बंट रही दो भाग मे हैं हस्तियां।।
मृत्यु का है खेल बढ़ता जारहा।
आदमी से आदमी टकरा रहा‌।3।।

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