- 2024 के चुनाव में सनातन संस्कृति के विरोधियों की राजनीति का होगा सूर्यास्त
- नरेन्द्र मोदी और योगी ने भारत की सनातन संस्कृति की समृद्धि का बेहतरीन माडल पेश किया
- भारत के स्वाभिमान की यात्रा अपने चरम पर
- देश आज उड रहा है एक नई उडान
- भारत की संस्कृति की एक एक बात आज अपना रही है दुनिया
लखनऊ। राज्यसभा सांसद व पूर्व उपमुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा ने कहा कि किसी की हैसियत नहीं है जो भारत की सनातन संस्कृति को समाप्त कर सके। यह ऐसी संस्कृति है जिसे अंग्रेज और मुगल भी समाप्त नहीं कर पाए थे। जो उदय इस संस्कृति को समाप्त करने की बात कर रहे हैं असल में 2024 के चुनाव में उनका और उनके सहयोगियों की राजनीति का सूर्य अस्त होगा। सनातन संस्कृति की तुलना डेंगू मलेरिया से करना निन्दनीय है। उन्होंने कहा कि पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी के समन्वय ने भारत की सनातन संस्कृति की समृद्धि का बेहतरीन माडल पेश किया है। भारत के स्वाभिमान की यात्रा अपने चरम पर पहुच रही है। इसके पीछे प्रधानमंत्री का चमत्कारिक नेतृत्व है जिसे जनता ने चुना है।
डॉ शर्मा ने कहा कि आज पूरा देश एक नई उडान उड रहा है। चन्द्रयान से चन्द्रमा पर पहुचने के साथ ही सूर्य पर भी जाने की तैयारी हो रही है। आतंकवाद पर पूर्व की सरकारों का रवैया लचर रहा करता था। शान्ति के लिए भारत के प्रधानमंत्री कबूतर उडाकर पाकिस्तानी गोली और गोलो का जवाब देते थे पर अब ऐसा नहीं है। पाकिस्तान और चीन को मुहतोड जवाब दिया जा रहा है। घर में घुसकर कार्रवाई हो रही है। लखनऊ के रुचि खंड में भारत अभ्युदय कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए सांसद डा शर्मा ने कहा कि भारत आज पूरी दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। आज का कार्यक्रम राष्ट्र रक्षा यज्ञ की तरह है जो भारत को विश्वगुरु बनाने में सहायक होगा। भारत पहले सोने की चिडिया कहलाता था। चन्द्रगुप्त मौर्य अखंड भारत के चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे। अगर वह आज का समय होता तो कुछ लोग उस पर भी जातिगत टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। भारत पर लम्बे समय तक शासन करने के लिए विदेशी आक्रान्ताओं ने समाज को जातियों बांटने का षडयंत्र किया था। जातियों में कौन बडा और कौन छोटा यह भी तय किया । बांटने वालों ने भारत की संस्कृति और परम्पराओं को भी दूषित करने की साजिश की थी। जन्मदिन पर केक काटने की प्रथा काटने और बांटने पाश्चात्य संस्कृति और राजनीति का अंग है। केक पर मोमबत्ती बुझाई जाती है।
इसके विपरीत भारत की संस्कृति में जन्मदिन पर छोटी – छोटी बूंदी से मिलाकर लड्डू बनाने व दीपक जलाने की परम्परा रही है। इससे पता चलता है कि भारत की संस्कृति मिलाने की संस्कृति है जबकि उनकी बांटने की संस्कृति है। वे भारत के लोगों के जीवन में प्रकाश की आने वाली हर किरण को भी रोकना चाहते थे। पूर्व में भारतीय समाज में जाति व्यवस्था नहीं हुआ करती थी बल्कि वर्ण व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि अमेरिका में समाज में व्याप्त विकृतियों पर शोध हुआ और निष्कर्ष आया कि बच्चों को अपने दादा दादी और नाना नानी के साथ रखना चाहिए। वे बच्चों को कहानियों के जरिए संस्कार देने के साथ ही उनकी जिज्ञासा को भी शान्त करते हैं। भारत में तो इस बात की परम्परा रही है। पाश्चात्य संस्कृति में परिवार की नहीं बल्कि बाजार की अवधारणा है जहां पर सब कुछ बिकाऊ है पर भारत में परिवार ही सबकुछ है। परिवार के सदस्य एक दूसरे के लिए होते हैं। भारतीय परिवारों में चूल्हा महत्वपूर्ण होता है। वह सदस्यों को जोडने का कार्य करता है।
भारत की संस्कृति की एक एक बात आज दुनिया अपना रही है। शान्ति की खोज में विदेशी भी हरे राम हरे कृष्ण करते हुए आज भारत की गलियों में घूम रहे हैं। कोरोना के बाद पहली बार देखनें में आया है कि भारतवासी एक बार फिर अपनी संस्कृति की ओर लौट रहे हैं। लम्बे समय के बाद नए वर्ष पर मंदिरों में भीड और होटल आदि खाली दिखाई पडे हैं। काशी का कारीडोर भारत की गौरवशाली संस्कृति को फिर स्थापित कर रहा है। इस अवसर पर उपस्थित सुरेश चव्हाणके ,रिटायर्ड मेजर जनरल अजय चतुर्वेदी , मेजर जनरल नीलेंद्र कुमार, ब्रिगेडियर ज्ञानोदय, ब्रिगेडियर यशदीप, कर्नल दयाशंकर स्क्वीडन लीडर राखी अग्रवाल के बारे में उन्होंने कहा कि सेना हमारे गौरव का प्रतीक है इन सबके रग रग में भारतीयता एवं देश भक्ति का वास है। बड़ी संख्या में उपस्थित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम में भागीदारी की कार्यक्रम के संयोजक श्री अनिल अग्रवाल एवं श्रीमती पुष्पा अग्रवाल थे।