यह शोक-सूचना है, एक शौर्य दास्तां भी, उस अमेरिकी यहूदी वकील की जिसने दस लाख बेगुनाह नागरिकों की नृशंस हत्या के दोषी हिटलरी फौजियों को फांसी पर लटकवाया। न्याय दिलवाया। वकील बेंजामिन फ्रेंज की 103 वर्ष की आयु में गत शुक्रवार (7 अप्रैल 2023) फ्लोरिडा में मृत्यु हो गई। उनकी जिरह के परिणाम में जो दंडित हुये उनमें थे नाजी नेता और वायुसेना अध्यक्ष मार्शल हर्मन गोरिंग। इन्हें हिटलर ने अपना वारिस नामित किया था। उनके बमवर्षकों ने लंदन को राख कर दिया था। चर्चिल की शेखी खत्म कर दी थी। उसी दौर का वाकया है। लंदन से पांच हजार किलोमीटर दूर लखनऊ जिला जेल में अंग्रेज अधीक्षक निरीक्षण पर आया था। मुजफ्फरनगर के गांधीवादी सत्याग्रही केदारनाथ अपने वार्ड में मानस-पाठ कर रहे थे। उस गोरे ने कौतुहलवश पाठ के बारे में पूछा, तो कैदी ने जवाब दिया : “लंका काण्ड बांच रहा हूं। मगर प्रतीत होता है कि हनुमानजी से बेहतर ध्वंस हिमलर आपके देश पर, खासकर लंदन को जला कर, कर रहें हैं।”
बेंजामिन 1947 में बस 27 वर्ष के थे। तभी प्रतिष्ठित हावर्ड संस्था से उन्होंने विधि-स्नातक की डिग्री ली थी। अमेरिका सेना में अभियोजन-वकील बने। बेंजामिन अमेरिकी वायु सेना में भर्ती होना चाहते थे। पर खारिज कर दिये गए क्योंकि उनकी लंबाई केवल पांच फिट की थी। हालांकि बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें पांच सितारा पद से नवाजा था। पर वे केवल टाइपराइटर को ही अपना अस्त्र मानते रहे, वकील के नाते कोई अन्य शस्त्र नहीं थामा। केवल जुबां से काम लिया। जब सार्जंट नियुक्त हुए, तो रुष्ट होकर उन्होने कहा था : “ये अमेरिकी अफसर मूर्ख हैं, मुझसे संडास साफ कराना, फर्श पर झाड़ू-पोछा कराते हैं।” मगर शीघ्र ही उन्हें कानूनवाली टीम में शामिल कर लिया गया। फिर मशहूर न्यूरेमबर्ग सैनिक ट्रिब्यूनल में अमेरिका के वकील नियुक्त किया गया। ट्रिब्यूनल में अभियोग लगाया गया था कि हिटलर के लोगों ने यहूदियों और बंजारों को बेतहाशा मौत के घाट उतार डाला। गोरिंग ने वकील बेंजामिन की जिरह पर सारा दोष साथी हेनरिख हिमलर पर डाल दिया था। हिमलर तब नाजी गेस्टापों (गुप्तचर संस्था) का मुखिया था। उसी ने लाखों निर्दोष प्रतिरोधियों को गोली से भुनवा दिया था। फिर बेंजामिन के तर्क और साक्ष्य सुन-देखकर जजों ने गोरिंग को मृत्यु दंड दिया। उसने फायरिंग दल की शूटिंग द्वारा मरना चाहता था। प्रार्थना अस्वीकार होने पर उसने जहर खा लिया। बेंजामिन का अगला मुकदमा था आइंसग्रुपेन वाला। बारह आरोप लगाये गए थे कि बीस लाख पूर्वी यूरोपीय यहूदियों को भूख से तड़पा कर नाजियों ने मार डाला था। बेंजामिन ने इन सारे अपराधियों को कटघरे में खड़ा किया था। सजा दिलवाई। द्वितीय विश्वयुद्ध में साढ़े आठ करोड़ लोग मरे थे। इनमें भारतीयों की तादाद भी छत्तीस हजार थी। उसके अलावा पैंतीस हजार घायल हुए थे तथा सत्तर हजार युद्ध में बंदी बनाए गए थे।
रोमानिया में जन्में बेंजामिन का त्रांसलवेनिया में बालकाल बीता था। यहां का प्रेतसम्राट ड्रैक्यूला प्रसिद्ध है। वहां नाजियों द्वारा यहूदियों पर हमला होने के बाद उनका कुटुंब अमेरिका गया। उसके पिता मोची थे, एक ही आँख थी। पूरा निर्धन परिवार यात्री जहाज पर तीसरे दर्जे में सवार था, “क्योंकि चौथा दर्जा था ही नहीं जहाज में”, बताया था बेंजामिन ने। इस कुशाग्र बालक का न्यूयार्क में साबका पड़ा अपराधियों से। इससे वकालत पढ़ने में मदद तो मिली। फिर इस युवा वकील के पास सबसे बड़ी चुनौती आई विश्वयुद्ध में। जर्मन अपराधियों पर मुकदमा हेतु न्यूरेमबर्ग अदालत में। “मेरा केवल लक्ष्य था सहनशीलता तथा संवेदना का प्रतिपादन हो।” युद्ध में नरसंहार विदारक होता है। यही बात उन्होंने एक दशक बाद वियतनाम पर अमेरिकी सैनिकों के अमानवीय हमले पर भी कही थी। वे मानते रहे कि हत्या अपराधियों का औज़ार हैं। मानव जीवन तो मात्र एक खिलौना। कानून के मायने कुछ भी नहीं। आम आदमी का जीवन आतंक से ग्रसित था। तब निडर बेंजामिन ने कानूनी संघर्ष शुरू किया। उनका तो मानना था कि इराक में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने नरसंहार किया। सद्दाम हुसैन के साथ बुश पर भी मुकदमा चलना चाहिए था, जैसे हिटलर पर चला चुका था। उन्हे पीड़ा होती थी कि ऐसी ही हिंसा होती रही सूडान, सीरिया और रवांडा में भी। “मगर हम सब मिलकर भी युद्ध की विभीषिका को समाप्त नहीं कर पाये।”
उनके हमउम्र लोग आराम से टीवी पर बेसबाल खेल देखते थे। मगर इस आयु में, सैकड़ा पार कर भी, बेंजामिन हर रोज तैराकी, उठाबैठक, कसरत करते थे। फुर्सत मिली तो कंप्यूटर पर रहते। एक मित्र ने उन्हें सुझाया कि : “सौ पार कर चुके हो, अतः विश्राम करो।” साफ मना करके बेंजामिन ने जवाब दिया : “कहां वक्त है आराम का ? मैं व्यस्त हूं। दुनिया बचानी है अगले विश्व युद्ध से, खासकर यूक्रेन के संदर्भ में। बेंजामिन को श्रेय जाता है संयुक्त राष्ट्र संघ प्रस्ताव संख्या : 3314 पारित होने का, जिसमें एक देश द्वारा दूसरे देश पर सैनिक आक्रमण “युद्ध का अपराध” करार दिया गया है। दो दशक बीते, रोम (इटली) में अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल अदालत की स्थापना का निर्णय लिया जाना उन्हीं की मेहनत का फल है। आज दि हेग (नीदरलैंड) में ऐसी विश्व अदालत का गठन बेंजामिन की ही मांग तथा आकांक्षा की पूर्ति है। उनका मानना रहा कि सज्जनों को युद्ध हत्यारा बना डालता है। उन्होंने “अल जजीरा” टीवी से कहा था : “अब युद्ध का महिमा मंडन बंद हो। युद्ध में हमेशा निर्दोष की हत्या होती है। हर दशा में मैं युद्ध के बजाय, कानून को बड़ा मानता हूं।” बेंजामिन के पिता 95 वर्ष की आयु में भी शीर्षासन करते थे ताकि उल्टी हुई दुनिया सीधी दिखे। आज वाकई ऐसी ही आवश्यकता है दुनिया को सीधा देखने की।