प्रेम का रंग चढ़ता चला गया,
यूँ लगा कि दुनिया हमारी है,
त्याग का यत्न जब सीखा तो
ऐसा लगा कि जन्नत हमारी है।
जीवन का साथ निभाता चला गया
समस्यायें भी सुलझाता चला गया,
दहशतगर्दी का शोक मनाया नहीं,
बर्बादियों का दर्द भुलाता चला गया।
जो कुछ मयस्सर हुआ उसको
अपनी तक़दीर समझ लिया,
जो मिला नहीं कभी भी उसको,
मैं अनदेखा करता चला गया।
दुख और सुख में फ़र्क़ कोई,
न कभी हमने महसूस है किया,
दिल के हर ज़ख़्म को जीवन
भर मैं तो सहलाता चला गया।
जैसे स्नान से तन, दान से धन,
सहिष्णुता से मन निर्मल होते हैं,
वैसे ही ईमानदारी से यह जीवन
आदित्य सफल हो जाया करते हैं।