ASAD ENCOUNTER के बाद फिर चर्चा में धूमनगंज शूटआउट केसः साबरमती जेल से खेल, उमेश पाल की जिंदगी हो गई फेल

राजू पाल मर्डर केस के चश्मदीद गवाह उमेश पाल के लोमहर्षक हत्या के सवा महीने गुजर गए, मगर अभी तक प्रमुख व नामज़द क़ातिलों में से एक को भी योगी की पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है। आख़िर किस मांद में हत्यारे घुस गए हैं? वैसे उमेश की लाश गिराई क्यों गई? वारदात को जब अंजाम दिया जा रहा था, धूमनगंज का जर्रा-जर्रा काँप उठा था। घटना किसी मुम्बइया फ़िल्म से कम नहीं थी। उमेश के संग उसके दो सरकारी गनर भी टपका दिए गए थे। बेशक स्पेशल टॉस्क फ़ोर्स (STF), स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) और यूपी पुलिस ने सरकार के फ़रमान पर प्रयागराज विकास प्राधिकरण के साथ मिलकर माफ़िया डॉन अतीक के प्यादों की इमारतों को ज़मींदोज़ कर डाला, लेकिन सवाल घुमा-फिराकर वही है कि फिलवक्त शूटर हैं कहां? क्या इन्हें ज़मीन खा गई या आसमान निगल गया। उनके तार साबरमती जेल से कैसे जुड़े है? अतीक की बेगम कहां ग़ायब है? अनगिनत सवाल हैं, जिनके जवाब ‘नया लुक’ के पास हैं। लिहाज़ा पत्रिका ने अपनी गहन छानबीन के बाद जो कहानी खोद निकाली हैं, उसे तफ़सील से बता रहे हैं… भौमेंद्र शुक्ल।


जुमे की शाम थी वह। यूपी की सांस्कृतिक राजधानी प्रयागराज जो कभी इलाहाबाद के नाम से विख्यात थी। वहाँ लोगों की भयंकर आमदरफ्त जारी थी। ‘चिल्ल-पों’ की आवाज़ के साथ गाड़ियाँ सड़कों को रेंग रही थीं। सूरज अस्ताचल की ओर थे। तब किसे पता था कि प्रयागराज के मशहूर धूमनगंज में तीन लोगों की ज़िंदगी का सूरज अस्त होने वाला है। मगर हुआ तो यही था। यह कथा किसी मुम्बइया जासूसी फ़िल्म से कम नहीं है। दरअसल 24 फ़रवरी की संध्या के पाँच बजकर ५० मिनट पर उमेश पाल, जो कि बसपा के दिवंगत विधायक राजू पाल के फुफेरे भाई थे, उनकी गाड़ी ज्योंही धूमनगंज स्थित उनके मकान की गली के सामने आकर धचके के साथ रुकी, त्योंही वहाँ पहले से घात लगाए बैठे अपराधियों ने धांय-धांय गोलियाँ उमेश पर बरसानी शुरू कर दी। लगा कि जैसे आसमान फटकर धरती पर आ गिरा हो।

उमेश कार का दरवाज़ा खोलकर गली के भीतर अपने घर की ओर भागना चाहे, लेकिन उन्हें वहाँ तक खदेड़कर पिस्टल, बम से हमला किया जाता रहा, जब तक कि उनकी लाश गिर नहीं गई। उनके सरकारी गनर ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर निकाली, लेकिन उसे भी हमलावरों द्वारा फ़ौरन खल्लास कर दिया गया। उमेश का दूसरा सरकारी बंदूकची राघवेंद्र कार के भीतर ही ज़ख़्मी हालात में पड़ा था। हालाँकि कार पर किसी ने भी फ़ायरिंग नहीं की थी। सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या उमेश पाल के ड्राइवर ने ही कहीं इस सरकारी अंगरक्षक राघवेंद्र का काम तो नहीं तमाम कर दिया था। मृतक उमेश का कार चालक इस वजह से भी संदेह के घेरे में है कि उसे खरोंच भी नहीं लगी, इसलिए उमेश का ड्राइवर भी एसटीएफ़ के रडार पर है।


अब प्रश्न उठता है कि उमेश पाल को क्लीन बोल्ड करने की क्या वजह थी? अतीक अहमद को क्यों उसे ‘असली मुक़ाम’ पर भेजना पड़ा। दोनों में सुलह हो गई थी, बावजूद इसके उमेश पाल को गोली-बम का शिकार क्यों होना पड़ा? इस बाबत नया लुक ने अपनी छानबीन की तो पाया कि उमेश को खल्लास करने की दो थ्योरी सामने आई है। एक की पृष्ठभूमि लगभग 18 साल पुरानी है, जबकि दूसरा कारण हाल का ही है। पुलिस इन दोनों थ्योरी पर काम कर रही है। दरअसल २५ फ़रवरी २००५ की दोपहरी प्रयागराज शहर के बीचोंबीच स्थित सुलेम सराय में तत्कालीन बसपा विधायक राजूपाल को एके-४७ से उड़ा डाला गया था। उसे सुलेम सराय में दौड़ा-दौड़ा पर भूना गया था। इस जघन्य वारदात का चश्मदीद गवाह उमेश पाल जो कि राजू की बुआ का बेटा है, इस कांड की जाँच सीबीआई ने की थी। तब मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
बहरहाल इससे इतर प्रयागराज पुलिस ने जो दूसरी वजह खोज रखी है, वह करोड़ों की बेशक़ीमती भूखंड से जुड़ी हुई है।

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