कुंडली में ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण कई आप बीमार तो नहीं, जाने कारण
डॉ उमाशंकर मिश्रा
बीमारियों का कारण ग्रह भी होते है। ज्योतिष में हर ग्रह शरीर के किसी ना किसी अंग से संबंधित होता है। कुंडली में जब संबंधित ग्रह की दशा होती है और गोचर भी प्रतिकूल चल रहा होता है तब उस ग्रह से संबंधित शारीरिक समस्याओं से व्यक्ति को होकर गुजरना पड़ सकता है। ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं। वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है।
शास्त्रों में बताया है-
“पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते”
अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व हमारी राशियों का समूह है। इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर, कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है। इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। आइये जानते हैं कोन से ग्रह से क्या रोग उत्पन्न होते है।
सूर्य और रोग : सूर्य बहुत अच्छा ग्रह है सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे।क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी। आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे।परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे,व्यक्ति गंजा रहेगा। सर में दर्द अक्सर होगा और माइग्रेन बना रहेगा।
चन्द्र और रोग : चंद्र खराब होता है तो व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार होता है। चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है। यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे। कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी। इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे। सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी। चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे। चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है। डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर तथा सीजोफ्रेनिया ऐसे मानसिक रोग चंद्र कि खराब ग्रहों के साथ युति के कारण होते हैं।
मंगल और रोग: जोश और होश दोनों का कारक है मंगल। यह रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी। ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करते हैं। आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते। अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है। यह दुर्घटनाओं का कारक होता है जितनी दुर्घटनाएं होती है यदि मंगल राहु केतु के साथ है तो निश्चित तौर पर दुर्घटनाएं घटित होगी।
बुध और रोग : यह एक तेज तर्रार शुभ ग्रह है बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है। आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे। भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है। अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं।साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं।बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है।व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है। जिन लोगों को कान से सुनाई नहीं देता मेरा रिसर्च है कि अधिकतर लोग बुध के कमजोर होने से इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
गुरू (बृहस्पती) और रोग : व्यक्ति का करियर गुरु के स्ट्रांग होने से सेट होता हैं गुरु कमजोर होता है व्यक्ति कभी सेट नहीं हो पाता और मानसिक तनाव से घिरा रहता है।गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है। गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है। कुंडली में गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं।गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है और बदसूरत बनाता है। अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है।
शुक्र और रोग: विलासिता भोग और ऐशो-आराम यह शुक्र का कार्य है। सेक्स से जुड़े मसले या सेक्स संबंधी बीमारियों का कारण भी शुक्र ही है। शुक्र कमजोर होता है तो संतान सुख में भी बाधा आती है। शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है।यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है। नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है।मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है।इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है।बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है।
शनि और रोग : ज्योतिष के अनुसार शनि लाइलाज बीमारियों का कारक है यह दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है।शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है।शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले माइग्रेन या सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता। चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है। मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है। केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है।दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है।
राहू और रोग: ज्योतिष के अनुसार राहू एक रहस्यमय ग्रह है। राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं। एक ग्रुप खत्म होता है तो दूसरा रोग शुरू हो जाता है एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है।राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है व्यक्ति जो भी कमाता है उसका बहुत बड़ा हिस्सा बीमारी पर लगता है। किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है। यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है। वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है।डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है।अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है। कोलेस्ट्रोल लगातार बने रहना भी राहु के कारण ही है।
केतु और रोग: ज्योतिष के अनुसार केतु का संसार बिल्कुल अलग है। यह जीवन और मृत्यु से परे है। जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है। केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है। केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है। भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है। असफल इलाज के बाद दुबारा इलाज केतु के कारण होता है।