जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
गुरु बाबा गुरुबचन सिंह के बलिदान दिवस को प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को पूरा निरंकारी समाज मानव एकता दिवस के रूप में मनाता है। बाबा गुरबचन सिंह जी एक महान संत थे जिन्होंने जनता में आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से मानव भाईचारे का प्रचार किया। उनकी हत्या के बाद से, पूरी दुनिया में लोग उनके त्याग, बलिदान को सम्मान देने के लिए मानव एकता दिवस मनाते हैं। बाबा गुरबचन सिंह जी का जन्म 10 दिसम्बर 1930 को शहंशाह बाबा अवतार सिंह और माता बुधवंती जी के घर पेशावर (पाकिस्तान)के समीप उन्दार शहर में हुआ। बहुपक्षीय व्यक्तित्व के स्वामी बाबा गुरबचन सिंह जी एक आधुनिक गुरु थे। 24 अप्रैल 1980 की रात को सत्य, प्रेम और शांति के इस मसीहा को कुछ कट्टरपंथियों ने चिरनिद्रा में सुलाकर समस्त निरंकारी जगत को शोक संतप्त कर दिया, परन्तु उक्त स्थिति अधिक देर न रह पाई। बाबा गुरबचन सिंह के पुत्र बाबा हरदेव सिंह महाराज के नेतृत्व में सत्य, प्रेम और शांति का संदेश का प्रचार और भी अधिक तीव्र गति होने लगा। निरंकारी मिशन द्वारा बाबा गुरबचन सिंह जी के पुण्यतिथि 24 अप्रैल को मानव एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। खून नालियों की अपेक्षा नाड़ियों में बहे का संदेश देने के लिए निरंकारी मिशन इस दिन पूरे विश्व में अनेकों रक्तदान शिविरों का आयोजन करता है।
बाबा गुरुबचन सिंह का जीवन परिचय
बाबा गुरबचन सिंह जी का जन्म 10 दिसम्बर, 1930 को पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) में बाबा अवतार सिंह जी एवं माता बुद्धवन्ती जी के घर में हुआ। आपने मिडिल तक पेशावर और फिर मैट्रिक की पढ़ाई रावल पिंडी के खालसा स्कूल में प्राप्त की। 1947 की उथल-पुथल में पढ़ाई कहीं पीछे रह गई। उनका विवाह मन्ना सिंह जी की बेटी कुलवन्त कौर जी के साथ हुआ था। विभाजन के कारण उत्पन्न हिंसक स्थितियों से उन्हें जूझना पड़ा। उन्होंने बंटवारे के समय लोगों की काफी मदद की। 1962 में बाबा अवतार सिंह जी ने गुरु बचन सिंह को गुरु गद्दी पर आसीन कर स्वंय लीन हो गए। 32 वर्ष के युवा बाबा गुरबचन सिंह जी ने अगले 17 वर्षों तक मिशन की प्राण-प्रण से सेवा की और मिशन को देश के कोने-कोने में फैलाने का यशस्वी कार्य किया।
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देशभर में जगह-जगह सुचारु रूप से सत्संग की सम्पन्नता के लिए भवनों को निर्माण कराया। 13 अप्रैल 1978 को अमृतसर में मानव एकता सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें भ्रमित लोगों ने अशान्ति फैलाने का कार्य किया। उन्होंने कई समाजिक सुधार के कार्य किए। निर्धनो का विवाह कराया, सादगीपूर्ण शादी करने पर बल दिया ताकि शादी में होने वाले व्यर्थ के खर्चों को रोका जा सके, लोगों को ज्ञान का पाठ दिया, साहस, निजरता का बोध कराया। बाबा गुरबचन सिंह जी ने मानवता के भले की खातिर अपने जीवन का बलिदान दिया और अपना सारा जीवन मानव एकता मानव कल्याण के लिए अर्पण किया। बाबा गुरबचन सिंह जी ने जहां आत्मिक जागृति लाई उसके साथ-साथ समाज सेवा के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा योगदान डाला। उन्होंने स्कूल, कालेज, मुफ्त सिलाई कढ़ाई सेंटर, डिस्पेंसरियां और अन्य सामाजिक कार्यों की शुरूआत की। बाबा जी ने कहा कि यदि हमारा नौजवान वर्ग पढ़ लिखकर सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ेगा तो ही हमारा समाज एक अच्छा समाज बन सकेगा देश भी आगे बढ़ेगा। जिसके बाद 24 अप्रैल 1980 को स्वयं बाबा गुरबचन सिंह जी ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर हिंसा को रोका।