संयुक्त राष्ट्र और विश्व में दिलीप म्हस्केकी क्यों हो रही प्रशंसा

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्मपर्व दुनिया भर में मनाया गया। बाबासाहेब के जन्मपर्व पर निकले जुलूस से पहले आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस के अध्येता सहित सैकड़ों लोग जब जय-भीम, जय-भीम के नारे लगाने लगे तो संयुक्त राष्ट्र में आयोजित बाबासाहेब के लिए तो विदेशों से आए अनेकों लोग आश्चर्य में पड़ गए और सोचने लगे कि इसका मायने क्या है? थोड़ी ही देर में सबको समझ आ गया कि यह लोग अपने मार्गदर्शक और युगपुरुष बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को स्मरण कर रहे हैं। 132वीं जयंती का यह दृश्य देखने योग्य था। आंबेडकर के लिए इससे बड़ी बात और कुछ हो भी नहीं सकती जो उनके अनुपस्थिति में उनके अनुयायी संयुक्त राष्ट्र के मंदिर में उनको स्मरण कर रहे थे और उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प दुहरा रहे हैं। यह एक आम कार्यक्रम नहीं था अपितु इसमें रुचिरा कंबोज जैसे राजनयिक भाग ले रही थीं और इस सभी के पीछे जिनका श्रम था, प्रतिबद्ध समर्पण था वह हैं भारतीय मूल के दिलीप म्हस्के।  अपनी धरती का वह इंसान जो भारत की शान में जीवन भर लड़ाई लड़कर शोषितों और वंचितों की आवाज़ उठता रहा उसका नाम बहुत आदर के साथ लोग लेते हैं और वे हैं-बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर। उन पर फ़क्र भारतीय इसलिए करते हैं क्योंकि उन्होंने निःस्वार्थ होकर उन लोगों के लिए काम किया जिन्हें समाज में सम्मान दुर्लभ था। अब उनकी बात संयुक्त राष्ट्र में हो रही है।

भारतीय मूल के दिलीप म्हस्के एक ऐसे बाबासाहेब के विचारों के लिए कार्य करने वाले श्रेष्ठ व्यक्तित्व हैं जो फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होरिजन के माध्यम से दुनिया के लोगों को उनकी 132वीं जयंती पर संयुक्त राष्ट्र में विगत कई वर्षों से बुलाकर परिचर्चा करा रहे हैं। यह बाबासाहेब के अपने संकल्प का ही परिणाम है कि ‘जय भीम’ के नारे सुनकर दुनिया के लोगों की उपस्थिति यह समझने में जुट गयी कि जय भीम लोग आवाज़ दे रहे हैं तो इसके मायने क्या हैं?

क्या हुआ बाबासाहेब के जन्मपर्व पर 

डॉ. आंबेडकर की 132वीं जयंती पर बाबासाहेब के विचारों पर आधारित कार्यक्रम का विषय था-सामाजिक न्याय व एसडीजी प्राप्ति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका। बाबासाहेब जब भारत में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे तो उन्हें यह पता नहीं था कि देश में जो आज उनकी आवाज़ गूंज रही है वह एक दिन दुनिया के लिए आवाज़ बन जाएगी। सतत विकास लक्ष्य-2030 के लक्ष्य को आज हासिल करने की महत्वपूर्ण कड़ी बाबासाहेब बनते जा रहे हैं। दिलीप म्हस्के का यह पुरुषार्थ है कि वह राजदूत रुचिरा काम्बोज और संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न विचारकों व कार्यकारियों के साथ जुड़कर बाबासाहेब से लोगों को जोड़ रहे हैं और एक ऐसा मनोविज्ञान गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोग बाबासाहेब से सीख सकें और दुनिया में जो घृणा की राजनीति है और वैमनस्य है छुआछुट और अस्पृश्यता के सवाल हैं, उससे मुक्ति दिलाकर नई सामाजिक संरचना स्थापित कर सकें।

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजनयिक रुचिरा कंबोज की विशेष उपस्थिति

राजदूत रुचिरा काम्बोज भारतीय राजनयिक हैं और वह संयुक्त राष्ट्र में आजकल पदस्थ हैं उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह समय टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा को मज़बूती प्रदान करने का है जिससे सर्वजन के लिए सामाजिक व आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की जा सके। वह यह समझती हैं कि बिना सामाजिक आर्थिक संबल प्राप्त किए कोई भी बड़ी उपलबद्धि हासिल नहीं की जा सकती इसलिए उन्होंने इस पर बलपूर्वक कहा। सबसे अहम बात यह थी कि इस पूरे संवाद में कुछ ऐसी चीजों को रेखांकित किया गया जो आज पूरी दुनिया को समझने जानने की आवश्यकता है। खासकर,ऐसे लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को प्रोत्साहन देने में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) समेत उन प्रौद्योगिकीय नवाचारों और प्रथाओं की भूमिका को रेखांकित किया गया, जो एक समावेशी, विकासोन्मुख, टिकाऊ और शान्तिपूर्ण समाज को मज़बूत करें।

संयोजक दिलीप म्हस्के की प्रतिबद्धता

संयुक्त राष्ट्र में एआई फॉर सोशियल जस्टिस के सूत्रधार कार्यक्रम के संयोजक दिलीप म्हस्केसभ्यतागत बदलाव चाहते हैं ताकि दुनिया की तस्वीर बदली जा सके। उन्हें अपने भारत पर गर्व है जो बाबासाहेब जैसे सपूत की भूमि है। वह बाबासाहेब के संकल्पों और प्रतिबद्धताओं को वर्षों से उन लोगों में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं जो बदलते दौर में नए विमर्शों के साथ जुड़े हैं या नए संदर्भों में दुनिया की नई तस्वीर खींचना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के साथ विश्व बैंकके भी अनुबंध करके दिलीप म्हस्के ने जो यह कार्यक्रम किया इस कार्यक्रम से बहुत प्रभावित होकर रुचिरा कंबोज का यह कहना कि आंबेडकरवादियों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ जोड़कर आप बहुत शानदार काम कर रहे हैं और इससे सामाजिक न्याय को गतिशीलता मिलेगी, अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इसी से दिलीप म्हस्के के कार्यों का आंकलन किया जा सकता है कि वह किस प्रतिबद्धता के साथ बाबासाहेब से प्रभावित हैं और वह किस प्रकार सामाजिक आंदोलन की शक्ल इसे देते जा रहे हैं। उनकी आंबेडकरवादियों के साथ वे उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्य कर रहे हैं जिसे बाबासाहेब आज़ादी के बाद तक स्थापित करने की कोशिश करते रहे।

दिलीप म्हस्के की संयुक्त राष्ट्र मंच पर आंबेडकर जयंती मनाने की पहल को इस प्रकार नहीं देखा जाना चाहिए कि यह महज कार्यक्रम है बल्कि इससे यह संदेश गया है दुनिया भर में कि आज विश्व को जरूरत क्या है। इस दृष्टि से भी इस कार्यक्रम में शामिल महत्त्वपूर्ण लोगों ने यह स्वीकारना शुरू कर दिया और कहा भी कि बाबासाहेब के मूल्यों को सतत बनाए रखने की आवश्यकता है तो यह दिलीप म्हस्के के प्रयासों की एक प्रकार से सराहना है। हिंदुस्तान के लोग दुनिया में बिखरे हुये हैं और उनके साथ हमारे विभिन्न पर्व, संस्कृति और सभ्यता भी गयी है। अच्छी बात यह है कि दिलीप म्हस्के बाबासाहेब के मूल्यों की संस्कृति वैश्विक मंच पर फैलाकर अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन थोड़ा हटकर कर रहे हैं जो भारत के लिए और दुनिया के लिए उस संकट से निपटने की तैयारी है जो हमें पसंद नहीं आता। गरिमा की लड़ाई का यह प्रयास निःसन्देह सबके प्रयास से सफल होगा लेकिन अलख जगाने वाला तो कोई एक होता है। म्हस्केकी असीम ऊर्जा इस हेतु यदि आगे आकर इस दिशा में कार्य कर रही है तो उनके कार्यों का अभिनंदन किया जाना चाहिए। अभिनंदन इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि वह भारतीय राजनयिकों, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव समेत अनेकों बौद्धिकों का विश्वास जीतकर बाबासाहेब को संयुक्त राष्ट्र मंच पर परिचर्चा के केंद्र में ला रहे हैं।

जब जय भीम के नारों से गूंज उठा संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की अपनी कसौटी है जिस पर वह ऐसे महापुरुषों के कार्यों को जाँचता और परखता है उसके बाद ही किसी महापुरुष के कार्यों को रेखांकित करके उसे अपने एजेंडे में शामिल करता है। बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर संयुक्त राष्ट्र के लिए अब एक विचार हैं। दिलीप म्हस्के बाबासाहेब के विश्वासों और विचारों को संयुक्त राष्ट्र में पुख्ता करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वे आंबेडकर साहब के विचारों को जन-जन की सोच का हिस्सा बना सकें।

132वीं जयंती वैसे तो बाबासाहेब की दुनिया भर में उनके प्रशंसकों द्वारा मनाई गयी। भारत के संसदीय परिसर में मनाई गयी। यह एक सरकारी कार्यक्रम मात्र भारत में बनकर रह गया है लेकिन बाबासाहेब के आदर्शों को वैश्विक स्तर पर जागृत भाव से संयुक्त राष्ट्र के चौखट पर जगाई गयी सामाजिक न्याय की जो अलख निःसन्देह नया संदेश दे रही है और बाबासाहेब की के कद को ऊंचा कर रही है, यह बड़ी बात है। दिलीप म्हस्के की प्रतिबद्धता से हुआ यह कार्यक्रम निःसन्देह उन लोगों में बाबासाहेब के प्रति विश्वास जगाएगा जो सामाजिक मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनमें उम्मीद जगाएगा जो किसी तरह से अतिक्रमण के शिकार हैं, दलित हैं, शोषित हैं, वंचित हैं या उत्पीड़ित हैं। सबके भीतर आशा की यह किरण जागृत होगी चाहे वे भारत में रह रहे हों या दुनिया में समानता की इच्छा लिए संघर्ष कर रहे हों। बाबासाहेब के लिए दिलीप म्हस्के के इस अवदान को निश्चय ही सहयोग मिलना चाहिए ताकि उस तबके की आवाज़ और बुलंद हो जो किसी कारण से पीछे रह गए हैं या मुख्यधारा में अभी तक शामिल नहीं हो पाये हैं।

जब यह भीम के नारों से संयुक्त राष्ट्र गूंज उठा तो वह आवाज़ भारत समेत दुनिया के विभिन्न कोने में पहुंची और दिलीप के संकल्प और उनके संयोजन में उपस्थित लोगों ने यह संकल्प लिया की बाबासाहेब के सपनों को हमें साकार करने के लिए नए स्तर से अपनी पीढ़ी को हम तैयार करेंगे ताकि किसी भी जगह ऊंच-नीच की भावना न जगह पाये और सभी समान रूप से अपने जीवन में सम्मान के साथ जीने के हकदार बन सकें। यह एक असाधारण कोशिश जो संयोजक दिलीप म्हस्के ने शुरू की और राजनयिक समेत संयुक्त राष्ट्र के महासचिव तक अपनी बात प्रेषित करके बाबासाहेब को सम्मान दिलाया वह निश्चय ही सरहनीय है और इसका प्रतिफल आने वाले समय में दिखेगा।

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