टिकट वितरण से भाजपा की कथनी और करनी का हुआ खुलासा
आरके यादव
लखनऊ। वह करें तो रासलीला, हम करें तो करेक्ट ढीला… यह कहावत निकाय चुनाव में भाजपा के टिकट वितरण को सच साबित करती नजर आ रही है। लंबे समय से भाजपा से जुड़ी महिला नेताओं का आरोप है कि पांच साल पति पार्षद रहे, अब पांच साल पत्नी पार्षद होंगी। अगले पांच वर्ष फिर पति पार्षद होंगे और पांच साल बाद फिर पत्नी पार्षद होंगी। यह हाल रहा काफी समय से जुड़ी महिला कार्यकर्ताओं को चुनाव लडऩे का मौका ही नहीं मिलेगा। पार्टी के पूर्व पार्षदों की पत्नियों को टिकट दिए जाने से नाराज महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि निकाय चुनाव के टिकट वितरण में भाजपा की कथनी और करनी को सच सामने आ गया है।
भाजपा महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी ने विद्यावती प्रथम और तृतीय मेें पॉच वर्ष पहले पुरुष के लिए यह दोनों सीट रिजर्व थी। पुरुष ही पार्षद हुए। पॉच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने के बाद चुनाव आयोग ने इन सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया। इन सीटों पर पिछले पांच साल तक पार्षद रहे पुरुष की पत्नियों को टिकट दे दिया गया। पार्टियों को यह देखना चाहिए था की पूर्व पार्षद की पत्नियां पढ़ी लिखी हैं। वह क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण करा सकती है या नहीं। वह सदन की कार्यवाही में शामिल होकर अपनी बात को सलीखे से रख पाएंगी यह भी एक बड़ा सवाल है। इन सब बातों को नजरअंदाज कर टिकट दे दिए गए।
यह दो वार्ड तो सिर्फ बानगी भर है। पार्टी ने दर्जनों वार्डों में पूर्व पार्षद की पत्नियों को टिकट देकर वर्षों से पार्टी के लिए अपना घर-परिवार से समय निकाल कर पार्टी के काम कर रही महिलाओं को टिकट से वंचित रहना पड़ा हैं। महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पार्टी ने इन सीटों पर जीत को बरकरार रखने के लिए पार्षद की पत्नियों को टिकट देकर प्रदेश भर की सैकड़ो दावेदार महिला कार्यकताओं को टिकट से वंचित रहना पड़ा है। पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पुरुष सीट को महिला सीट करने क्या आवश्यकता थी। आलम यह हो गया है कि पॉच वर्ष पार्षद उपरांत पॉच वर्ष उनकी पत्नी फिर अगले पॉच वर्ष पार्षद पॉच वर्ष उनकी पत्नी। यही हाल रहा तो जमीन से जुड़ी महिला कार्यकर्ताओं को तो कभी मौका मिलेगा ही नहीं। ऐसा तब है जब पार्टी परिवारवाद से दूर रहने का दावा करती हैं।
परिवार के बाहर नहीं जाने देंगे पार्षदी
राजधानी के दर्जनों की संख्या में पूर्व पार्षद किसी भी कीमत पर पार्षदी को घर से बाहर जाने के लिए तैयार नहीं है। कोई पत्नी के माध्यम से तो कोई मां के नाम पर तो कोई बहु के नाम पर पार्षदी को अपने कब्जे में रखने की फिराख में जुटा हुआ है। यह सच निकाय चुनाव के दौरान घरों एवं मोहल्लों में लगाए गए स्टीकर, पोस्टर एवं पम्पलेट में आसानी से देखा जा सकता है। अधिकांश स्टीकर व पोस्टरों में पार्षद प्रत्याशी के साथ पति, ससुर या अन्य सदस्य की फोटो लगी नजर आ रही है।