लोकतंत्र से राजतंत्र मे न पहुंच जाएं?

षड़यंत्रों से तानाशाही की प्रवृत्ति का भय

सभी पार्टियां लोकतंत्र पर पुनर्विचार करें


बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

राजनीति मे सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं। विपक्ष को पटखनी देने के लिए कौन कौन से दांव मारे जारहे हैं। इसका अनुभव विगत वर्षों मे खूब हुआ। सियासत के साथ षड़यंत्र भी जुड़ा है,राजाओं के इस किस्से खूब सुने थे। मुगल शासन काल मे तो सत्ता पर काबिज होने के लिए षड़यंत्र और भी अधिक जोरों पर था। अपनी सत्ता बचाने के लिए जिसकी मदद ली,कमजोर पड़ने पर वही सत्ता से बेदखल कर स्वयं शासक बन बैठा।

इसी का नतीजा हुआ कि भारत सात सौ सालो तक गुलाम रहा। भले राम राज्य और महाभारत काल से हमने बहुत कुछ सीखा। परंतु सौसाल की आजादी के कठिन संघर्ष के बाद.. हमने राज सत्ता को नकार कर लोकतंत्र की नींव डाली। परंतु पचहत्तर साल के कार्य काल मे राजा रानी जैसे किस्से फिर दुहराये जाने लगे। MP, MLA, Minister, CM PM बन कर हम पर राजाओं की तरह ही शासन चलाने लगे।

विचारको की संख्या घटती जारही है। सत्ता पर कब्जा कैसे हो? और लोक की उपेक्षा कर सिर्फ उसे वोट देने की मशीन हम मानने लगे। यह लोकतंत्र के लिए विष वृक्ष ही साबित होगा। जिसकी बयार भी हमे अंधा और अपाहिज बना देगी। इसलिए जरूरी है हर पार्टियां पुनर्विचार कर लोकतंत्र सही मामले मे स्थापित होसके उसका यत्न करें। अन्यथा तानशाही या राजतंत्र की दिशा मे हम बहक जाएंगे।

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