भगवान नरसिंह जयंती आज है जानिए शुभ तिथि व पूजा विधि और कथा…

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और नरसिंह भगवान की विधि-विधान उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे, जिन्होंने हिरण्यकश्यप के वध के लिए धरती पर अवतरण लिया था। इस विशेष दिन पर भगवान नरसिंह एवं भगवान विष्णु की उपासना करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं।

नरसिंह जयंती का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 03 मई 2023 को रात्रि 11 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 04 मई 2023 को रात्रि 11 बजकर 44 मिनट पर होगा। नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिंह की पूजा सायं काल में की जाती है। इसलिए पूजा का समय शाम 04 बजकर 18 मिनट से शाम 06 बजकर 58 मिनट तक ही रहेगा। वहीं व्रत का पारण अगले दिन यानी 5 मई को सुबह 05 बजकर 38 मिनट के बाद किया जाएगा।

 

नरसिंह जयंती की पूजा विधि

नरसिंह जयंती के दिन साधक सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

इसके बाद भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

पूजा के समय विधि-विधान से नरसिंह भगवान की पूजा करें और उनकी मंत्रों का जाप करें।

शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान नरसिंह को लाल वस्त्र में नारियल लपेटकर अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है।

इस दिन नरसिंह भगवान को मिठाई, फल, केसर, फूल और कुमकुम जरूर अर्पित करें।

अंत में नरसिंह स्तोत्र का पाठ करें और आरती के साथ पूजा संपन्न करें।

 

नरसिंह जयंती का महत्त्व :  पौराणिक किवदंतियों के अनुसार, भगवान विष्णु ने दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध के लिए नरसिंह रूप में धरती पर अवतरण लिया था। साथ ही भगवान नरसिंह की परम भक्ति से ही भक्त प्रहलाद को बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई थी। मान्यता है कि भगवान नरसिंह की पूजा करने से शारीरिक व मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं और कई प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ भगवान विष्णु के इन स्वरूप की उपासना करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं दूर हो जाती है।

 

नरसिंह जयंती व्रत कथा :  नरसिंह जयंती की व्रत कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार से है। प्राचीन समय में कश्यप नाम का एक राजा था, जिसकी पत्नी का नाम दिति था। इस राजा के दो पुत्र थे। जिसमें एक नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे पुत्र का नाम हरिण्याक्ष था। हरिण्याक्ष के बुरे कर्मों और अत्याचार से लोगों को मुक्त करने के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने इसका वध कर दिया था। तभी से हिरण्यकश्यप श्री हरि को अपना शत्रु मानने लगा। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए अमरता की कामना से हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करने का मन में संकल्प लिया।

अपनी कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर दिया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर हिरण्यकश्यप को दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। तभी उसने अमरता का वरदान मांगा। इस वरदान को ब्रह्मा जी देने में सक्षम नहीं थे। तो उन्होंने कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। तब हिरण्यकश्यप ने एक विशेष वर मांगा, जिस पर ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर चले गए।

नरसिंह अवतार : इस वरदान की प्राप्ति के उपरांत हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर सोचने लगा और अपनी प्रजा को श्रीहरि की पूजा करने से रोकने लग गया। उसका पुत्र हुआ जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद श्री हरि का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को उसकी भक्ति के कारण कई बार मारने का प्रयास किया। लेकिन उसमें वह असफल रहा। इन प्रयासों में उसकी बहन होलिका भी आग में जलकर भस्म हो गई। अंत में जब क्रोध में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को श्रीहरि का अस्तित्व सिद्ध करने की चुनौती दी। तो प्रहलाद ने कहा कि वह जगह हैं। तो स्तंभ की ओर इशारा कह कर राजा ने कहा, कि इस स्तंभ में भी तुम्हारे हरि हैं। तो प्रहलाद ने कहा, जी पिता जी। जब राजा ने उस स्तंभ को तोड़ दिया। उस समय भगवान नरसिंह अवतार में उस स्तंभ से प्रकट हुए। उसके बाद ब्रह्मा जी के वरदान को ध्यान में रखते हुए नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस दिन के बाद ही इस तिथि को नरसिम्हा जयंती के रूप में मनाया जाता है।

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