कोर्ट की भांति, अब शरीअत के मुताबिक माफिया को सजा हो!

के. विक्रम राव


कानून ने तो अपना कर्तव्य कर दिया। पर असली दंड इन इस्लामी मुजरिमों को कब मिलेगा ? वे हत्या, लूट, जबरन वसूली, फिरौती, डकैती आदि के दोषी हैं। शरीअत में ये सभी अक्षम्य पाप हैं। अब अदालती प्रक्रिया तो खत्म हो गई, मगर कोर्ट का काम मुख्तार, अतीक, दाऊद अहमद आदि को केवल सजा देने से समाप्त नहीं हो जाता। उसके नैतिक और समाजशास्त्रीय पहलू भी हैं। माफियाओं को सजा दे दी, लेकिन उनको उकसाने वाले, उत्प्रेरक, सहअपराधी, भागीदार, संरक्षक जो व्यक्ति रहे वे सब सजा की परिधि में कैसे लाये जाएंगे ? यहां मसला उनके कातिलों और गॉडफादरों (मदर भी) का है। उदाहणार्थ बहुजन समाज पार्टी जिसने इन मुजरिमों को संसद में भेजा था। सम्मान दिलवाया। डॉ. भीमराव अंबेडकर और कांशीराम के सपनों को पूरा करने का जिम्मा मुख्तार और दाऊद को दिया गया था। उन राजनेताओं और धनपशुओं का क्या जिन्होंने इन कानून के दुश्मनों का पालन, पोषण, और संवरण किया ?

कोर्ट से आम नागरिक की अपेक्षा थी कि वे भारतीय दंड संहिता : 1860 के अनुच्छेद पांच पर अवश्य ध्यान देंगी। इसके अनुसार किसी भी आपराधिक कृत्य को करने हेतु किसी को भी उकसाना, प्रोत्साहित करना और सहायता करना कानूनन दंडनीय है, एबेटमेंट (Abetment) के गुनाह के रूप में जाना जाता है। किसी भी प्रकार की सजा देने और किसी भी किस्म के अपराधों के लिए किसी को भी उत्तरदायी ठहराते हुए आपराधिक कानून अपने आप में बहुत स्पष्ट है। अपराध करने के पीछे के मास्टरमाइंड को केवल इस आधार पर मुक्त नहीं किया जाना चाहिए कि अपराध में वह व्यक्ति क्रियाशील नहीं था। मसलन तीनों गुनहगारों अतीक अहमद, मुख्तार अहमद अंसारी और दाऊद अहमद के जुर्मो पर चर्चा करें। दाऊद तो बहुजन समाज पार्टी के माननीय सांसद रहे। बहन कुमारी सुश्री मायावती के वे आत्मीय रहे। उसकी सीनाजोरी की तो कोई सानी नहीं। सरेआम राजधानी लखनऊ के संपन्न क्षेत्र रिवर बैंक कॉलोनी के पास पर्यटन स्थल, केंद्रीय संरक्षित शहीद स्मारक (बेली गारद) से सटे क्षेत्र को कब्जिया कर पचास करोड़ रुपए की छः-मंजिला भवन बना दिया। लखनऊ विकास प्राधिकरण के अफसरानों की मिली भगत रही। योगी सरकार ने जलवा दिखा दिया बुलडोजर के द्वारा।

गौर करें बहुचर्चित अहमद ब्रदर्स : अतीक और अशरफ पर। यदि दोनों गोलियों के शिकार न हुए होते तो वे खलीफा बन जाते, परम पावन इशोपासक ! उनकी काली कमाई से पनप रहे लोग उन्हें मजहबी नेता बना रहे थे। भाग्यशाली रहे प्रयागराज के नागरिक कि अतीक की बेवा शाइस्ता परवीन तीर्थनगरी की प्रथम नागरिक (महापौर) बनते-बनते बच गई। बसपा की प्रत्याशी नामित हो ही रही थी। अल्लाह का शुक्र है कि संगम नगरी पर कालिमा नहीं लगी। शाइस्ता परवीन यूपी पुलिस के “मोस्ट वांटेड” सूची में है। पचास हजार का इनाम उसके सर पर है। मामूली सिपाही मोहम्मद हारून की सात संतानों में सबसे बड़ी शाइस्ता है। आज अरबों की संपत्ति की मालकिन है। सूत्रों का मानना है कि यदि वह जीवित पकड़ी गई तो उसके पति के काले धंधे, जग जाहिर हो जाएंगे। वह उन बड़े नेताओं के नाम बता देगी, जो उसके मरहूम शौहर की माफियागीरी के लाभार्थी रहे।

अब नंबर आता है अदालतों और इन माफियाओं के सियासी आकाओं का। ये न्यायतंत्र इतने वर्षों तक ढीली कार्यवाही क्यों करता रहा ? उच्च न्यायालय को जांच करनी चाहिए। उन इस्लामी तंजीमों का, अकीदों के मरकज का, सम्माननीय दारुल उलूम (देवबंद) के फतवा विभाग पर खास गौर हो। मुसलमानों के जीवन के हर पहलू पर निर्देश जारी करने वाले इस दारुल उलूम से आग्रह है कि वे इन तीन अकीदतमंदों, नमाजियों, पापी मुसलमानों (अतीक अहमद, दाऊद अहमद, मुख्तार अंसारी आदि) को काफिर करार दें क्योंकि उन लोगों ने इस्लाम के बुनियादी आस्थाओं, ईमान और सदाचार का बड़ा घोर उल्लंघन किया है। बदनाम किया है। अदालत ने सबूत के कानूनी आधार पर उन्हें अपराधी करार दिया है। अब मजहबी गुनाह की सजा देने के लिए कोई अन्य जांच की जरूरत नहीं है। कोर्ट सब साबित कर चुका है। ये माफिया लोग इस्लाम के नाम पर कलंक हैं। साधारण अकीदतमंद मुसलमान की छवि धूमिल करते हैं।

अचरज तो इस बात पर होगा कि इतने वर्षों से इतनी मुद्दत से ढेर सारी इस्लामी तंजीमें और खामोश क्यों रहीं ? ये दानिश्वर, दानिशमंद, मौलवी मुल्ले, मुतबहिहर साजिशन मौन धारण किए रहे। भर्त्सना न सही, आलोचना भी नहीं की। शुरू में ही वे इन माफियाओं को चेतावनी दे सकते थे कि वे सब अल्लाह और उसके पैगंबर के उपदेशों की खुल्लम-खुल्ला अवहेलना कर रहे हैं। ऐसा जरायम पेशा इस्लाम पर गंभीर प्रहार करता है। तौहीन करता है। अगर ये सारे आलिम, मौलाना, ईमानदार लोग सक्रिय होते तो सारी मिल्लत की इतनी बदनामी न होती। वे सब अब अल्लाह की अवहेलना के अपराध में अदालती कटघरे में खड़े किए जाएंगे। जवाबदेही होगी।
इस संदर्भ में दरगाह आला हजरत बरेली के ताजा फतवा (3 मार्च 2023) का उल्लेख हो। इसमें नाम बदलकर गैर-मुस्लिम युवतियों से संपर्क करने को अवैध करार दिया गया है। शरीअत के मुताबिक जीवन बिताने की सख्त हिदायत दी गई है। (“हिंदुस्तान टाइम्स” लखनऊ, 7 मार्च 2023, कलम 7 और 8 में)। इसी फतवा की रोशनी में इन माफियाओं को तो और भी सख्त सजा मिलनी चाहिए।

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