जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
आधुनिक प्रतिस्पर्धा के युग में युवाओं के लिए ज्योतिष मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। ज्योतिष में रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों के चयन के संबंध में अनेक सूत्र मिलते हैं। जिनके आधार पर किसी भी जातक के संबंध में यह निर्णय करना आसान हो जाता है कि उसका कार्यक्षेत्र क्या रहेगा। अनेक माता-पिता अपनी संतान को डाक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते हैं, जिसमें ज्योतिषीय मार्गदर्शन लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
ज्योतिष में शक्तिशाली योग
यदि आप अपनी संतान को डाक्टर बनाना चाहते हैं तो उसकी जन्म कुंडली के योग देखना आवश्यक है। ऐसे कुछ योग यहां प्रस्तुत हैं, जिससे करियर चयन करने में माता-पिता को सुविधा रहेगी।
सुदर्शन पद्धति से विचार करने पर यदि कर्मेश, सूर्य अथवा भौम के नवांश में स्थित है।
यदि दशम स्थान पर लग्र में वृश्चिक राशि हो तथा चंद्र मंगल की युति हो।
यदि शनि की सूर्य एवं राहु पर दृष्टि, युति आदि हो।
सूर्य एवं भौम की पंचम भाव में युति हो तथा शनि अथवा राहु षष्ठस्थ हो तो जातक सर्जन होता है।
लग्र में वृषभ अथवा वृश्चिक राशि का सूर्य चिकित्सा शास्त्र के प्रति रुचि जागृत करता है।
कारकांश कुंडली के चतुर्थ स्थान में अथवा पंचम स्थान में राहु तथा शनि गुलिक स्थिति हो तथा कर्मेश की भी इन पर दृष्टि हो तो चिकित्सीय योग बनता है।
वृश्चिक राशि में बुध तथा तृतीय भाव पर चंद्र की दृष्टि जातक को कुशल मनोचिकित्सक बनाती है।
यदि आत्मकारक ग्रह के नवांशस्थ चंद्र पर शुक्र एवं बुध दोनों की दृष्टि हो तो जातक कुशल फिजीशियन बनता है। इस योग के निर्मित होने पर जातक होम्योपैथी का डाक्टर भी बनता है।
यदि श्रवण नक्षत्र का शुक्र हो तो जातक किसी मैडीकल रिसर्च इंस्टीच्यूट में कार्यरत होता है।
यदि सिंह लग्र में उच्च का मंगल स्वनवांशस्थ हो तो जातक शल्य चिकित्सा में प्रवीण होता है।
यदि कुंभ लग्र में वृश्चिक दशम भाव में मंगल हो तो जातक सफल सर्जन बनता है।
यदि बुध सम राशि का हो और लग्र विषम राशि की हो तथा धनेश मार्गी हो और अनुकूल स्थान में हो तो जातक विख्यात चिकित्साशास्त्री बनता है।
यदि गुरु की दृष्टि केंद्रस्थ मंगल पर हो तो जातक चिकित्सा व्यवसाय में आता है।
यदि सिंह या धनु लग्र में धन स्थान का सूर्य हो तथा षष्ठेश अनुकूल स्थान में स्थित हो।
यदि मिथुन, तुला अथवा कुंभ लग्र हो तथा बुध तृतीय भावस्थ हो और कोई राजयोग निर्मित हो रहा हो तो जातक सफल चिकित्सा शास्त्री बनता है।
कर्क लग्र में षष्ठ स्थान में गुरु एवं केतु की युति हो तो जातक होम्योपैथ बनता है।
सिंह लग्र की कुंडली में अष्टम भाव में सूर्य हो तो भाग्यस्थ शुक्र हो तो जातक डाक्टर बनता है।
द्वादशस्थ उच्च का शनि भी चिकित्सा क्षेत्र से जुडऩे का संकेत देता है।
बुध तृतीयस्थ हो, शुक्र द्वितीय भाव में और सूर्य बुध या सूर्य शुक्र की युति हो।
एकादशस्थ मंगल हो और तृतीयेश पंचमस्थ हो तो जातक स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ बनता है।
पंचम भाव में राहु-सूर्य अथवा बुध के साथ स्थित हो तथा कर्मेश की इन पर दृष्टि हो तो जातक सफल चिकित्सक बन सकता है।
एकादशेष एवं षष्ठेश की युति एकादश भाव में हो तो जातक चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ता है।
कर्क लग्र की कुंडली में गुरु दशमस्थ हों तथा सूर्य धनस्थ हों और मंगल से इनकी युति हो तो जातक सफल चिकित्सक बनता है।
मीन लग्र की कुंडली में लग्र में धन भाव में भाग्य में अथवा कर्म भाव में गुरु मंगल की युति चिकित्सक बनाती है।
जल तत्व की लग्र कुंडली में सप्तमस्थ मंगल चिकित्सक होने की द्योतक है।
कर्क लग्र की कुंडली में द्वादश भाव में शुक्र एवं बुध की युति चिकित्साशास्त्र से जुडऩे की द्योतक है।
यदि कुंडली में षष्ठभाव में कर्क राशि का सूर्य, सिंह राशि का सप्तमस्थ मंगल तथा वृश्चिक राशि का दशमस्थ शनि हो तो जातक निश्चित रूप से डाक्टर बनता है।
पंचम भाव में मिथुन, तुला या कुंभ का बुध हो तथा कर्मेश कर्मस्थ हो तो जातक प्रख्यात चिकित्साशास्त्री बनता है।
उक्त ग्रह योग सम्पूर्ण नहीं हैं। केवल कुछ प्रमुख योगों का संकलन मात्र है। अत: यदि किसी जातक को डाक्टर बनने का निर्णय करना हो तो उसे किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श अवश्य करना चाहिए।