जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
हमारे सनातन हिंदु धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में बताय गया है। सूर्य औऱ चंद्रमा के एक साथ होने से अमावस्या की तिथि होती है, जब सूर्य और चंद्रमा के बीच का अंतर शून्य हो जाता है तो अमावस्या का शुभ संयोग बनता है। दरअसल चन्द्रमा की 16वीं कला को ‘अमा’ कहा गया है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। अमा के कई नामों की चर्चा होती है, जैसे- अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। आप इसको इस प्रकार से भी समझ सकते कि अमावस्या के दिन चन्द्र दिखाई नहीं देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा जाता है, तब इसे ‘कुहू अमावस्या’ भी कहा जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं। अमावस्या प्रत्येक माह में एक बार ही आती है। यानी वर्ष के 12 महीने में 12 अमावस्याएं होती हैं। धर्म शास्त्रों की बात करें तो अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है।
प्रमुख अमावस्या कौन सी हैं-
प्रमुख अमावस्याएं : सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि मुख्य अमावस्या होती है।
सोमवती अमावस्या: सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन व्रत रखने से चंद्र का दोष दूर होता है। और इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दिन खासकर महिलाओं को विशेष रूप से अपने पति के लंबे जीवन के लिए सोमवती अमावस्या का व्रत करना चाहिए।
भौमवती अमावस्या: मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा गया है। भौम अर्थात मंगल। इस दिन व्रत रखने से कर्ज का संकट समाप्त होता है।विशेषकर इस दिन धन धान्य की कामना और कर्ज से मुक्ति के लिए व्रत रखा जाता है।
मौनी अमावस्या: मौनी अमावस्या का सनातन धर्म में बड़ा विशेष महत्व है जो कि माघ माह में आती है। इसे आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन गंगा तट पर स्नान,दान आदि का बड़ा महत्व बताया गया है।
शनि अमावस्या: – शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं।
महालय अमावस्या: महालया अमावस्या को पितृक्ष की सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन अन्न दान और तर्पण आदि करने से पूर्वजों प्रसन्न होते हैं।
हरियाली अमावस्या: महादेव के प्रिय माह श्रावण में हरियाली अमावस्या आती है। जिसे महाराष्ट्र में गटारी अमावस्या , तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में चुक्कला और उड़ीसा में चितलागी अमावस्या कहते हैं। इस दिन पौधा रोपण करने का महत्व है। इस दिन पितरों की शांति हेतु भी पूजा अनुष्ठान किए जाते हैं।
दिवाली अमावस्या : कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली अमावस्या कहते हैं। इस अमावस्या के समय दीपोत्सव मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन रात सबसे घनी होती है। मूल रूप से यह अमावस्या माता कालीका से जुड़ी हुई है इसीलिए उनकी पूजा का महत्व है। इस दिन लक्ष्मी पूजा का महत्व भी है। कहते हैं कि दोनों ही देवियों का इसी दिन जन्म हुआ था।इसी दिन दिवाली का मुख्य त्योहार देश भर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
कुशग्रहणी अमावस्या: कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। इस दिन को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। पिथौरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
अन्य सभी अमावस्याएं दान और स्नान के महत्व की हैं। वह जिस वार को आती है उसी वार के नाम से जानी जाती है। मूलत: इनके नाम 12 माह के नामों पर आधारित भी होते हैं।
अमावस्या पर रखी जाने वाली सावधानियां : अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। अमावस्या के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन, मदिरापान से दूर रहना चाहिए।