- खलीलुर्हमान के किले के पश्चिमोत्तर मे स्थित मंदिर
- संप्रति मंदिर का सुंदरीकरण व देख भाल कर रहा ट्रस्ट
- जनपद की आत्मा कहलाती है मां समय माता
खलीलाबाद में काम करते हुए(52वर्ष पूर्व) कुछ दिन बीते थे,तो मुझे पता लगा मेंहदावल चौराहे पर एक समय जी का स्थान है। जो खलीलुर्रहमान के किले के समीप एक पोखरे के किनारे है। उसके बारे मे बहुत सी कथायें सुनीं। बहुश्रुतियों मे यह भी था कि लोगों की आस्था इस पिंडी मे देख खलीलुर्हमान जो मुगल शासक का चकलेदार था,यहां टैक्स वसूली के लिए रखा गया था उसने गोंडा से दूध के धार के साथ यहां मूर्ति मंगवाई और रखा दिया। पहले इस मंदिर पर छत नहीं थी।चबूतरे पर खुले मे रखा गया था। लोग आकर पूजा अर्चना करते रहे। दीवाल या छत जब जब बनाया गया,वह गिर जाता था। तब एक दिन बाराबंकी से आकर खलीलाबाद मे बसे जैन मतावलंबी सेठ रामनारायण के स्वप्न मे देवी जी आईं। उन्होंने छत और दीवाल बनवाने का आदेश दिया उन्होंने लोगों से वार्ताकर दीवाल और छत बनवाये। यह टिक गया तो सेवा पूजा मे मुख्य भुमिका सेठ जी की रही। वे सफाई चूना कली आदि हर वर्ष कराते रहे। मंदिर के पीछे एक विशाल काय पीपल का वृक्ष था। पोखरे के तट पर मुस्लिम समाज के लोग कर्बला बनाये थे। पूर्व प्रधान और पूर्व नगर पालिका के चेयरमैंन अब्दुल कादिर नूरी ने मुझे एक व्यक्तिगत बात चीत मे बताया। कि बहुधा उनके समाज के लोग ताजिया ऊंची बनवा देते। उसे कर्बला तक लेजाने मे पीपल की डाल काटने की नौबत आजाती,तो दो समुदाय के बीच टकराहट होजाती । उन दिनों हिंदू समाज के लोग वहां गुड़िया पीटते थै,जहां इस समय कर्बला है। हमने समझा बुझा कर स्थान बदल दिया। कर्बला की भूमि मेहदावल रोड पर स्थित गुड़िया पीटने वाले स्थान पर कर दिया। और गुड़िया पीटनै का काम मंदिर के पीछे पोखरे के तट पर कर दिया। जिससे हमेशा के लिए विवाद खत्म होगया।
समय का चक्र बदला तो नगर पालिका के चेयरमैन रामकृपालु रूंगटा हुए। उन्होंने मंदिर का काया कल्प कराना चाहा,पर डरते भी थे। मां समय जी उनकी सेवा स्वीकार करेंगी या नहीं? सेठ रामनारायण का परिवार भी इस श्रद्धा के अनुगत था,कि उनकी सेवा बनी रहे। समझा बुझा कर आमलोगों मे गणमान्य व्यक्तियों को लेकर एक ट्रस्ट बना। नगर के मनीषी आध्यत्मिक गृहस्थ संत आचार्य रामसुभग ओझा जी के संरक्षकत्व में …। ट्रस्ट ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जिनकी सेवा मां समय जी ने स्वीकार कर ली। आज उस स्थान का भव्य स्वरूप है। जो इस जनपद के लिए आत्मा का ही स्वरूप है।
यहां दूर दूर से श्रद्वालु नित्य दर्शन के लिए आते हैं। रविवार और मंगल वार को विशेष रूप से धार चढ़ाने,कड़ाही चढ़ाने, मुंडन ,जनेऊ और विवाहादि के अवसर पर पारंपरिक रस्में निभाते है़। नवरात्रि के समय भारी भीड़ होती है। यह देख ट्रस्ट ने धर्मशाला, यज्ञ स्थल आदि भी बनवा दिये। नगर पालिका के सहयोग से शुद्ध पेयजल और समीप मे शौचालय आदि भी बनवा दिये गए हैं। संप्रति शासन से मिले धन से पोखरे के सुंदरी करण का भी काम शुरु होचुका है।