राजेश श्रीवास्तव
देश में इन दिनों राजनीति दो धु्रवों में बंट गयी है। एक तरफ एनडीए है जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं तो दूसरी ओर वह सारे दल एकजुट हो रहे हैं जो मोदी या भाजपा विरोधी हैं। जहां विपक्षी दलों में कई छोटे-छोटे सूरमा हैं जो अपने-अपने गढ़ में किसी को घुसने नहीं देना चाहते, जिसके चलते कोई बड़ा मन दिखाकर यह नहीं कह रहा कि उसकी अपनी सीमा को तोड़कर वह विपक्ष को एकजुट करेगा। उप्र में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी कांग्रेस को कुछ भी देने को तैयार नहीं। बसपा अपने को तय नहीं कर पा रही कि वह किसके साथ खड़ी होगी। यानि दोनों अलग-अलग रहेंगे यह तय है, कांग्रेस भी अकेले ही लड़ेगी। कम से कम अभी तक के तो समीकरण यही कह रहे हैं। यह हाल अकेले उप्र का ही नहीं। दिल्ली की आप अध्यादेश को लेकर हैरान है वह भी इसके गिरने की स्थिति में विपक्ष का हिस्सा नहीं बनना चाहेगी। कमोवेश यही हाल ममता बनर्जी, नीतिश कुमार आदि का भी है । यानि कुल मिलाकर कहें कि अभी तक का एकजुट हो रहा विपक्ष सत्तारूढè भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में दिखायी ही नहीं दे रहा है। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा अपने को बहुत आगे रख कर चल रही है। जहां विपक्ष अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। वहीं भाजपा ने अपना एजेंडा भी सेट कर लिया है।
2024 के लिए भाजपा ने अयोध्या में जनवरी में भव्य रूप से तैयार हो रहे राम मंदिर को अपना तुरुप का पत्ता मान लिया है तो उसकी तरकश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी), पसमांदा मुस्लिम सरीखो तीर भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के आम चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया। पीएम ने एक तरफ पसमांदा मुसलमानों की चर्चा करते हुए तुष्टिकरण पर कांग्रेस की पिछली सरकारों को घेरा। दूसरी तरफ बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी छेड़ दिया। यूसीसी का मुद्दा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का एक ऐसा बचा हुआ वादा है जिसे पूरा किया जाना अभी बाकी है। मोदी सरकार की प्राथमिकता लिस्ट में यूनिफॉर्म सिविल कोड टॉप पर है और उस दिशा में जल्द फैसला हो सकता है।
पीएम ने कहा कि जो भी तीन तलाक के पक्ष में बातें करते हैं। तीन तलाक की वकालत करते हैं, ये वोट बैंक के भूखे लोग मुस्लिम बेटियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि तीन तलाक है तो सिर्फ महिलाओं की बात हो रही है। लेकिन नुकसान सिर्फ बेटियों को नहीं होता। 8-10 साल बाद अगर तीन तलाक दे दिया और बेटी घर वापस आती है तो सोचिए उस मां-बाप पर क्या बीतती है। उस भाई का क्या होगा। तीन तलाक से पूरा परिवार तबाह हो जाता है। पीएम ने कहा कि इसका इस्लाम से संबंध होता तो दुनिया का कोई मुस्लिम देश तीन तलाक खत्म नहीं करता। मुस्लिम बहुल देशों में भी तीन तलाक बंद कर दिया गया है। पीएम ने हाल के अपने दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि मिस्र में 90 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान समाज है और वहां 80-90 साल पहले तीन तलाक की प्रथा को समाप्त कर दिया गया। अगर तीन तलाक इस्लाम का जरूरी अंग है तो पाकिस्तान में क्यों नहीं होता, इंडोनेशिया में क्यों नहीं होता, कतर, जॉर्डन, सीरिया, बांग्लादेश में इसे बंद क्यों कर दिया गया? मोदी ने कहा कि मुसलमान बेटियों पर तीन तलाक का फंदा लटकाकर कुछ लोग उन पर हमेशा अत्याचार करने की खुली छूट चाहते हैं। यही लोग तीन तलाक का समर्थन भी करते हैं इसलिए मुस्लिम बहन-बेटियां भाजपा के साथ खड़ी रहती हैं।
पीएम ने पसमांदा मुसलमानों की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा कि वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने पसमांदा मुसलमानों का जीना मुश्किल कर रखा है। वे तबाह हो गए, उन्हें कोई फायदा नहीं मिला है। वे कष्ट में गुजारा करते हैं। उनके ही धर्म के एक वर्ग ने पसमांदा मुसलमानों का इतना शोषण किया है, लेकिन देश में इस पर चर्चा नहीं हुई। पसमांदा को आज भी बराबरी का हक नहीं मिलता। उन्हें नीचा और अछूत समझा जाता है। पसमांदा मुसलमान पिछड़े होते हैं। पीएम ने एक-एक करके पसमांदा मुसलमानों की जातियां गिनाईं। इस भेदभाव का नुकसान पसमांदा की कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा। लेकिन भाजपा सबका विकास की भावना से काम कर रही है। घर हो या स्वास्थ्य, मुसलमानों भाई-बहनों को भी पूरी सुविधा मिल रही है। पीएम ने यूं ही पसमांदा मुसलमानों की बात नहीं की। दरअसल, देश के 8० फीसदी से ज्यादा मुसलमान पसमांदा हैं। ये आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ताकत में पीछे रह गए हैं और भाजपा 2०24 से पहले उन्हें अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश कर रही है।
इस तरह से देखिए तो पीएम ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले छोटी जातियों को भाजपा के साथ लाने की पहल की है। समान नागरिक संहिता की काफी समय से देश में मांग हो रही है। इसके अलावा पीएम ने पसमांदा मुसलमानों, दलितों, महादलितों की बात छेड़कर ‘सबका साथ सबका विकास’ वाला एजेंडा सामने रखा है। इस सारी कवायद से आप यह मान सकते हैं कि दस साल मोदी सरकार के सत्ता में रहने के बावजूद विपक्ष भाजपा की राजनीतिक शैलियों को समझ नहीं पा रहा है। ऐसे में वह 2024 में सरकार को कितनी बड़ी चुनौती दे पायेगा, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी। फिलहाल आग दोनों तरफ बराबर लगी है।