डॉ दिलीप अग्निहोत्री
कुछ दिन पहले पटना में विपक्षी नेता गठबंधन बनाने के लिए मिले थे। सबकी अपनी अपनी महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। कोई भी किसी दूसरे को प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहता। इसलिए पटना में बात नहीं बनीं। एक और बैठक होगी। उसके पहले ही महाराष्ट्र का महाआघाड़ी दूसरी बार बिखर गया। पहली बार एकनाथ शिंदे ने कथित सेक्युलर राजनीति से परेशान होकर महा आघाड़ी को छोड़ दिया था। अब एनसीपी को छोड़कर अजित पवार शिंदे-बीजेपी सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार के साथ करीब तीस विधायकों के समर्थन का दावा किया जा रहा है। परिवारवाद से पृथक विरासत का सम्मान दिखाई दे रहा है। पहले उद्धव ठाकरे को छोड़ कर एकनाथ शिंदे भाजपा के साथ आ गए थे। अब अजित पवार ने परिवारवादी पार्टी का परित्याग कर दिया है।
परिवार आधारित पार्टियों के इतिहास में नए अध्याय जुड़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे ने कुर्सी के लिए वैचारिक विरासत का परित्याग कर दिया था, जबकि भाजपा ने परिवारवाद से पृथक विचारधारा को सम्मान दिया। एकनाथ शिंदे की ताजपोशी इसका प्रमाण था। परिवार के उत्तराधिकारी देखते रहे,सत्ता का हस्तांतरण परिवार के बाहर हुआ था। इसके साथ ही विरासत पर दावेदारी भी बदल गई थी। उद्धव परिवार के लोगों पर विचारों की अवहेलना करने का आरोप लगा। इसके जवाब में उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। जिन्हें बाहरी कहा गया,वह विचारधारा पर अमल का संदेश दे रहे है। महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के अनुयायी एकनाथ शिंदे भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने थे। इस प्रकार भाजपा ने साबित किया कि था कि उसके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं बल्कि विचारधारा का महत्त्व है। एकनाथ शिंदे ने बाल ठाकरे की विरासत पर अमल का मंसूबा दिखाया, जबकि उद्धव ठाकरे ने इसे पीछे छोड़ दिया था। उन्होने कहा था कि हिंदुत्व की भूमिका और राज्य के विकास पर हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की भूमिका के आधार पर राज्य के विकास के लिए वे काम करेंगे। इसी प्रकार अजित पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। कुछ दिन पहले शरद पवार अपनी पुत्री को उत्तराधिकारी घोषित किया था। देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित भी उपमुख्यमंत्री बन गए। यह सरकार देवेन्द्र फडणवीस के मुख्यमंत्री काल में शुरू किए गए जनहित कार्यों को आगे बढ़ा रही है।
बाल ठाकरे की शिवसेना और भाजपा के बीच स्वाभाविक गठबंधन था। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दों पर परस्पर सहमति थी। लेकिन उनके उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे ने विचारों की जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी को महत्त्व दिया। इसलिए वह एनसीपी और कांग्रेस की शरण में चले गए थे। उद्धव जानते थे कि कांग्रेस और एनसीपी का संख्याबल अधिक है। ऐसे में वह नाममात्र के ही मुख्यमन्त्री रहेंगे। गठबंधन की कमान शरद पवार के नियन्त्रण में थी। वही अघोषित रूप में सुपर सीएम थे महाराष्ट्र में ढाई वर्ष बाद बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को सम्मान मिला। भाजपा ने उनके विचारों पर आगे बढ़े एकनाथ शिंदे को मुख्यमन्त्री बनाया है। बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे ने इस विरासत को एनसीपी और कांग्रेस पर न्यौछावर कर दिया था। उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए सिद्धांतों का परित्याग कर दिया था। बाल ठाकरे के हिन्दुत्व की बात महाआघाड़ी गठबंधन में करना गुनाह हो गया था। बाल ठाकरे सेक्यूलर नेताओं के निशाने पर रहते थे। पाकिस्तान, अनुच्छेद 370, अयोध्या जन्म भूमि मंदिर आदि मुद्दो पर उनके विचार स्पष्ट थे लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उद्धव ठाकरे ने इनकी चर्चा पर विराम लगा दिया था। इतना ही नहीं ऐसे अनेक विषयों पर वह सेक्युलर नेताओं की जुगलबन्दी करते थे। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी राजनीति में वंशवाद का मुखर विरोध करते रहे हैं। उनके अनुसार यह प्रजातंत्र के लिए घातक है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में भी उन्होंने इसे मुद्दा बनाया था। यहां मतदाताओं ने वंशवाद को नकार दिया। महाराष्ट्र में एक नई मिसाल कायम हुई है। यहां परिवार से बाहर के व्यक्ति ने राजनीतिक विरासत संभाली है। इसका दूरगामी प्रभाव होगा। भाजपा को छोड़कर यहां सभी पार्टियां व्यक्ति या परिवार पर आधारित है। इन सबके लिए महाराष्ट्र का घटनाक्रम एक सबक है।
विधानसभा चुनाव में स्पष्ट जनादेश नरेंद्र मोदी एवं देवेंद्र फडणवीस को मिला था। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लालच में भाजपा को छोड़कर विपक्ष के साथ सरकार बनाई थी। भाजपा ने महाराष्ट्र की जनता की भलाई के लिए बड़े मन का परिचय देते हुए एकनाथ शिंदे का समर्थन करने का निर्णय किया था। देवेन्द्र फडणवीस ने भी बड़ा मन दिखाते हुए मंत्रिमंडल में शामिल होने का निर्णय किया था। जो महाराष्ट्र की जनता के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है। भाजपा ने ये निर्णय लेकर एक बार फिर साबित कर दिया है कि कोई पद पाना हमारा उद्देश्य नहीं है अपितु नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश और महाराष्ट्र की जनता की सेवा करना हमारा परम लक्ष्य है। इस संदर्भ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि था कि भारतीय जनता पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस में आरएसएस के संस्कार हैं, इसी वजह उन्होंने आज उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। आरएसएस तथा भाजपा में आदेश महत्वपूर्ण रहता है। केंद्रीय भाजपा से आदेश मिलने के बाद उन्होंने इसका पालन किया है। फडणवीस का यह कदम राजनीति में तथा अन्य दलों के लोगों के लिए सीखने जैसा ही था। विधानसभा का चुनाव शिवसेना व भाजपा ने साथ मिलकर लड़ा था और राज्य के नागरिकों ने राज्य में शिवसेना भाजपा को ही सरकार बनाने के लिए मतदान किया था।
लेकिन उद्धव ठाकरे ने जनादेश का अपमान किया था। ढाई वर्ष महाराष्ट्र में अराजकता का माहौल रहा। उस सरकार की विदाई महाराष्ट्र के हित में है। एकनाथ शिंदे ने पिछली सरकार की असलियत बतायी थी। कहा था कि पिछली सरकार में वह नगर विकास मंत्री थे,लेकिन काम करने में मर्यादा थी। लेकिन उन पर अनावश्यक दबाब रहता था। भाजपा व शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन लगातार हमको कमजोर किया जा रहा था। इसी वजह से शिवसेना के करीब चालीस विधायकों ने नाराजगी जताई थी। उद्धव ढाई वर्षो तक वह शरद पवार के दबाब में रहे थे। एक बार फिर पवार ने दबाब बनाया इस्तीफा देने से रोक दिया। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे तथा महाराष्ट्र विधानमंडल सचिवालय को पत्र लिखकर विशेष अधिवेशन बुलाए जाने का आदेश दिया था। शरद पवार के दबाब में राज्यपाल के इस आदेश को शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इससे भी उद्धव ठाकरे की फजीहत हुई। चलते चलते हिन्दुत्व की याद आई थी कैबिनेट की अंतिम बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद जिलों तथा नवी मुंबई विमानतल का नाम बदल कर क्रमशः संभाजी नगर और धाराशिव तथा डीबी पाटिल विमानतल किए जाने को मंजूरी दी गई लेकिन उद्धव ने बहुत देर कर दी थी। आज अजित ने भी महाराष्ट्र के ज़न मानस को समझा है।