जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
सावन मास की संकष्टी चतुर्थी का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने और व्रत करने से आपके सभी संकट दूर होते हैं और सुखी संपन्न रहने का गणपति आशीर्वाद देते हैं। सावन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गजानन संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस बार 6 जुलाई को सावन की संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। इस साल इसका धार्मिक महत्व बहुत खास माना गया है। दरअसल सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और गणेशजी भगवान शिव के पुत्र कहलाते हैं। इसलिए सावन में जो संकष्टी चतुर्थी आती है उसकी मान्यता है बहुत खास मानी जाती है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने से आपके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है और आपको शुभ लाभ की प्राप्ति होती है। अगर आप व्रत करते हैं तो आपको इस दिन पूजा के दौरान संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा जरूर पढ़नी चाहिए। गणेशजी के पूजा के वक्त चतुर्थी पर रात के वक्त चंद्रमा की पूजा भी की जाती है।
संकष्टी चतुर्थी की तिथि और मुहूर्त
सावन की संकष्टी चतुर्थी 6 जुलाई को सुबह 6 बजकर 31 सुबह पर आरंभ होगी। इसका समापन 7 जुलाई को रात में 3 बजकर 13 मिनट पर होगा।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी कष्टों को हरने और संकटों को दूर करने वाली मानी जाती है। इस व्रत को करने से आपके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। गणपति आपके सभी कार्यों में आ रही विघ्न बाधाएं दूर करके उन्हें सफलतापूर्वक पूर्ण करवाते हैं। आपके जीवन से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की पूजाविधि
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और चाय पानी पिए बिना स्वच्छ वस्त्र धारण करके हाथ में जल लेकर गणेशजी के सामने व्रत करने का संकल्प लें।
पूजास्थल पर लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद गणेशजी का अभिषेक करें, चंदन लगाएं और वस्त्र अर्पित करें। अगर आप प्रतिमा पर वस्त्र नहीं अर्पित कर सकते हैं तो मन में श्रृद्धा भाव रखते हुए कलावा अर्पित करें।
उसके बाद फल-फूल, 21 दूर्वा, अक्षत, धूप-दीप, गंध आदि अर्पित करें और मोदक का भोग लगाएं। उसके बाद गणेश चालीसा का पाठ करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा सुनें। फिर आरती।
शाम की पूजा में एक बार फिर से गणेशजी की इस विधि से पूजा करें और आरती करें। उसके बाद चंद्रोदय पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।