उमेश तिवारी
काठमांडू। नेपाल के अग्निपथ योजना से असहमत होने के कारण एक साल से रुकी गोरखा सैनिक भर्ती को लेकर असमंजस बढ़ गया है। नेपाल सभी दलों की आम सहमति से फैसला लेगा, लेकिन यह कब लिया जाएगा, यह तय नहीं है। दूसरी ओर अग्निपथ योजना के तहत गोरखाओं की भर्ती पर असहमति के बाद कोई कूटनीतिक पहल नहीं की गई है। नेपाल के विदेश मंत्री एनपी सऊद ने कहा है कि वह गोरखा भर्ती पर उचित समय पर फैसला लेंगे। नेपाल की संसद की अंतर्राष्ट्रीय संबंध समिति में अपनी बात रखते हुए उन्होंने भारतीय गोरखा सैनिकों की भर्ती पर सर्वदलीय सहमति की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि आम सहमति के आधार पर फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि गोरखा भर्ती खोलने को लेकर भारत के साथ कोई कूटनीतिक पहल नहीं हुई है।
भारत में सैन्य भर्ती को लेकर कानून में बदलाव के बाद अगस्त 2022 से नेपाल से गोरखा सैनिकों की भर्ती बंद कर दी गई है । भारत की अग्निपथ योजना के तहत गोरखाओं की भर्ती पर नेपाल की असहमति के बाद इसे रोक दिया गया। जब तक नेपाल सहमत नहीं होगा, तब तक गोरखा भर्ती नहीं खुलेगी । नेपाल ने यह रुख अपनाया है कि गोरखाओं की भर्ती पुराने कानून के मुताबिक की जानी चाहिए।
अग्निपथ योजना के अनुसार भर्ती होने वालों में से केवल 25 प्रतिशत को चार साल के बाद भारतीय सेना में स्थायी रूप से तैनात किया जाएगा और बाकी को एक निश्चित राशि के साथ घर वापस भेज दिया जाएगा। गोरखा सैनिकों की भर्ती करते समय 60 नेपाल से और बाकी भारत से चुने जाते हैं। इस भर्ती को नेपाल और भारत के बीच एक खास रिश्ते के तौर पर भी देखा जा रहा है । हर साल नेपाल से हजारों युवा भारतीय गोरखा सेना में शामिल होने के लिए तैयारी करते हैं। भर्ती स्थगित होने से वे निराश हैं। निलंबित अवधि के भीतर गोरखा सैनिकों की तीन बार भर्ती की जानी चाहिए थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।