राफेल की उड़ान

डॉ दिलीप अग्निहोत्री


भारतीय वायु सेना ने यूपी सरकार के समय ही राफेल विमानों की खरीदा को अपरिहार्य बताया था। यह भी कहा गया था कि फ्रांस के साथ यह सौदा बिना समय गंवाए करना चाहिए। क्योंकि चीन की रक्षा तैयारियों के दृष्टिगत  भारत को देर नहीं करनी चाहिए। लेकिन यूपीए सरकार इस पर कोई निर्णय नहीं कर सकी। नरेंद्र मोदी सरकार ने वायु सेना और रक्षा विशेषज्ञों के सुझाव को गंभीरता से लिया। राफेल सौदे को पूरा किया गया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस पार्टी का हंगामा हैरान करने वाला था। चीन हमारा शत्रु है। वह नहीं चाहता था कि भारत को राफेल मिले। उसे पता था कि इससे भारतीय वायु सेना की शक्ति बढ़ जाएगी। काग्रेस पार्टी ने भी राफेल सौदे पर निशाना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन नरेंद्र मोदी राष्ट्रहित में जो उचित समझते हैं, वही करते हैं। इसे विषयों पर विपक्षी हंगामे को वह नजरअंदाज करते हैं। राफेल सौदा भी सम्पन्न हुआ। तब भारत को छत्तीस राफेल मिले थे। उस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस गए थे। उन्होंने भारतीय परम्परा के अनुरूप राफेल विमान का पूजन किया था।उस पर स्वस्तिक बनाया था। वैसे भारत की विपक्षी पार्टियों को यह भी पसन्द नहीं आया था। अब फिर राफेल की उड़ान आगे बढ़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा सामरिक द्रष्टि से भी बहुत उपयोगी रही। फ्रांस के साथ भारत की नब्बे हजार करोड़ रुपये के रक्षा सौदे हुए। चीन और पाकिस्तान पहले की तरह फिर परेशान हुए।

इस समझौते के अंतर्गत भारत को छब्बीस राफेल लड़ाकू विमान मिलेंगे। इसके अलावा तीन स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को भारत में बनाने पर सहमति बनी।इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में  चीन की गतिविधियों को देखते हुए भारत को भी रक्षा जरुरतों को पूरा करना था। भारतीय नौसेना ने आईएनएस विक्रांत पर तैनाती के लिए छब्बीस राफेल समुद्री लड़ाकू विमान खरीदने की सिफारिश की थी। नरेंद्र मोदी की यात्रा से भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक और राजनीतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हुए हैं। हिंद प्रशांत  क्षेत्र और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत और फ्रांस समान हित हैं। दोनों ने इस क्षेत्र में साझा रणनीति पर अमल के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता के चलते भारत के विरोधी देशों को फ्रांस कोई हथियार नहीं देता  हैं। इतना ही नहीं वह भारत विरोधियों के साथ मंच भी साझा नहीं करता है। नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा और छब्बीस राफेल की चर्चा ने पुराना प्रसंग ताजा कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी के रुख से साफ था कि वह राफेल सौदे को पूरा नहीं होने देगी। कांग्रेस लगातर बाधा पैदा कर रही थी। चौकीदार चोर के नारे लगवाये जा रहे थे। निराधार सवाल पूछे जा रहे थे। सरकार सभी का तथ्यों के आधार पर जबाब दे रही थी। लेकिन कांग्रेस का मकसद तो हंगामा करना था। तब राफेल डील में दसॉ ने एचएएल से निर्मित होने वाले लड़ाकू विमान की गारंटी लेने से मना कर दिया था। उसका कहना था कि एचएएल के साथ मिलकर भारत में एक लड़ाकू विमान बनाने में उसे ढाई गुना अधिक समय लगता। उसने किसी और पार्टनर को चुनने के लिए देश की ऑफसेट नीति का सहारा लिया। इस ऑफसेट पार्टनर नीति को पूर्व की यूपीए सरकार ने 2013 में बनाया था। राहुल अपनी सरकार के निष्फल दाम बता कर बहुत खुश होते हैं। लेकिन खरीदने में नाकाम क्यों रहे, इस सवाल का कोई जबाब नहीं देते। कांग्रेस सरकार पहले ही दस वर्ष की देर कर चुकी थी, इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार को इन पर तेजी से कार्य करना पड़ा।

वर्ष 2016 में जो सौदा हुआ, उसके आधार पर बेयर एयरक्राफ्ट अर्थात युद्धक प्रणालियों से विहीन विमान का दाम यूपीए की कीमत से नौ प्रतिशत कम था और हथियारों से युक्त विमान यूपीए की तुलना में भी बिल प्रतिशत सस्ता था। कहा गया कि कांग्रेस पार्टी को आफसेट के बारे में भी पता नहीं है। आफसेट का मतलब है कि किसी विदेशी से सौदा करते हैं तो कुछ सामान अपने देश में खरीदना होता है। राफेल में तीस से पचास प्रतिशत सामान भारत में खरीदने की बात है। कुल आफसेट उनतीस हजार करोड़ रुपये का है जबकि, राहुल एक लाख तीस करोड़ होने का आरोप लगा रहे है। आफसेट तय करने का काम विमान तैयार करने वाली कंपनी का है। राहुल गांधी राफेल खरीद प्रक्रिया जानने को बेताब थे। उसका भी जबाब मिल चुका था राफेल की खरीद के दौरान पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया। अनुबंधन वार्ता समिति, कीमत वार्ता समिति आदि की चौहत्तर बार बैठकें हुई। सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी दी गई। इसके बाद यह रक्षा खरीद परिषद में गया और फिर सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति की मंजूरी ली गई। यूपीए के रक्षा मंत्री ने पूरी प्रक्रिया के बाद कहा था कि इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। इसका जबाब राहुल को देना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय के बाद राहुल के सभी सवाल बेमानी हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सरकार ने उसे विमानों के दाम सीलबंद लिफाफे में दिए थे। उसने इन्हें देखा और हम संतुष्ट हुआ। कोर्ट ने फैसला दिया इस मामले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।  राहुल गांधी ने राफेल पर जितने भी सवाल उठाए थे, उनका अनेक बार जबाब आ चुका था। फ्रांस सरकार ने उनकी बात को झूठा बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल डील में कुछ भी गलत नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद राहुल गांधी से सच्चाई स्वीकार करने की अपेक्षा थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तो कोई संशय या सवाल बचा ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे का दाम और प्रक्रिया उचित है। राहुल चिल्ला रहे थे

कि चौकीदार चोर है। लेकिन वह यह नहीं बता रहे थे कि नेशनल हेराल्ड,अगस्ता वेस्टलैंड से संबंधित लोगों को क्या कहा जाए। कुछ भी हो नरेंद्र मोदी सरकार ने तब संकल्प से सिद्धि का प्रमाण दिया था। पहले छत्तीस विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुए थे। अब छब्बीस विमान और शामिल होंगे। भारत और फ्रांस ने साझा बयान में कहा कि अफ्रीका, हिंद महासागर क्षेत्र, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में विकास के लिए दोनों देश मिलकर काम करना जारी रखेंगे। पेरिस में स्थित अपने दूतावास में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन का  तकनीकी ऑफिस स्थापित करेगा।

दोनों देश स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए इस रणनीतिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक एक संतुलित और स्थिर व्यवस्था कायम करने का संकल्प लेते हैं। देशों ने ‘भारत-फ्रांस हिंद-प्रशांत रूपरेखा’ का मसौदा जारी किया। इस रूपरेखा के मसौदे में कहा गया है कि भारत और फ्रांस रणनीतिक रूप से अहम ‘रेजिडेंट पावर’ है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी वाले प्रमुख भागीदार हैं। यह ऐसे समय में जारी किया गया है जब इस रणनीतिक क्षेत्र में चीन की गतिविधियां बढ़ रही है। भारत और फ्रांस ‘हिंद महासागर क्षेत्र में भारत-फ्रांस सहयोग के संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण पर दृढ़ हैं। प्रशांत क्षेत्र में अपने संयुक्त प्रयासों का विस्तार करने के लिए तैयार हैं। आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों को मजबूत बनाया जा रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा वैश्विक और निःशुल्क पहुंच सुनिश्चित करना, इस क्षेत्र में समृद्धि और स्थिरता की साझेदारी बनाना, अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन को आगे बढ़ाना, क्षेत्र में और उससे परे अन्य लोगों के साथ काम करते हुए, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए क्षेत्र में एक संतुलित और स्थिर व्यवस्था का निर्माण करना है।

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