के. विक्रम राव
बेजान होती सोनिया-कांग्रेसी विपक्ष की सांसे लौट आयीं। श्रेय जाएगा असमिया लोकसभाई गौरव गोगोई को। इस 40-वर्षीय युवा कांग्रेसी ने अपनी 138-वर्षीय पार्टी को ऑक्सीजन दे दिया। उनके स्व. वकील पिता तरुण गोगोई असम के 15-वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे। इतनी लंबी अवधि तक के एकमात्र। प्रतिपक्ष का प्रस्ताव भले ही पौने दो सौ वोटों से खारिज हो जाए (329 बनाम 142 सांसद), मगर यह कदम मौजूदा शुष्क सियासत को रुचिकर और रसवंत बना देगा। कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर रचना “झांसी की रानी” की पंक्ति को फेर कर पेश करें : “बूढ़ी कांग्रेस में आयी फिर से नई जवानी थी।” हालांकि 53-वर्षीय अधवैसी राहुल गांधी और उनकी 51-वर्षीया अनुजा प्रियंका को यह उपयोगी राजनीतिक अनुभव देर से प्राप्त हो रहा है।
मगर कहीं कांग्रेसियों को चुनावी चारा इसमें न दिखने लगे जैसा सितम्बर 1999 में हुआ था। मोदी कभी रणछोड़ नहीं होंगे, भले ही यह नाम गुजरात से ही आया है, क्योंकि मथुरा से भागकर कृष्ण द्वारका चले गए थे, मगधपति जरासंध के खौफ से। संसद में मोदी मोर्चा लेंगे। उनकी प्रगति की द्रुतगति को अटल बिहारी वाजपेयी तक अवरुद्ध नहीं कर पाए थे। तो अब किसकी मजाल है ? गौरव गोगोई लोकसभा में कांग्रेस दल के उपनेता हैं। बड़बोले पार्टी नेता सत्तर-साल के अधीर रंजन चौधरी से कई गुना बेहतर वक्ता तथा चिंतक भी। गौरतलब बात है कि अमेरिका में शिक्षित गौरव और उनकी ब्रिटिश पत्नी एलिजाबेथ कोलबर्न नृत्य के बड़े प्रेमी हैं।
मौजूदा लोकसभा में प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव पर सोनिया-कांग्रेस वह तिकड़म नहीं कर सकेंगी जो अटल सरकार के समय 1999 में किया था। उस वक्त राजग की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी। अन्नाद्रमुक नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अटल सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। तब लोकसभा में मतदान पर सोनिया-कांग्रेस ने बड़े अनैतिक और अनियमित तरीके से राजग की सरकार गिराई थी। वह घृणित और शोचनीय था। ओडिसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिरिधर गोमांग ने राज्य विधानसभा में एक ओर तो मत-विभाजन में भाग लिया था। मगर अपनी लोकसभाई सदस्यता बनाई रखी थी। जब संसदीय वोटिंग हुई तो इस मुख्यमंत्री ने अटल सरकार के विरुद्ध वोट दिया। उनके ही एक वोट से राजग सरकार चली गई। सदन के अध्यक्ष जी.एम.सी. बालयोगी (तेलुगू देशम पार्टी) ने भी इस मुख्यमंत्री को सदन से निकाला नहीं। उसी क्षण सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का प्रयास किया था। शायद वे बन भी जाती। मगर बाद में मुलायम सिंह यादव ने सोनिया को प्रधानमंत्री बनने में समर्थन नहीं दिया। हालांकि उन्होंने राजग के विरुद्ध सदन में वोट दिया था। भारत इस यूरेशियायी महिला की गुलामी से बच गया।
अगले सोमवार के दिन मोदी सरकार के विरुद्ध पेश होने वाला प्रस्ताव लोकसभा के इतिहास में 27वां होगा। मगर पिछले 15 वर्षों में पहला। आश्चर्य है कि सोनिया-कांग्रेस गत नौ सालों में मोदी के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव भी नहीं ला पाई। इसीलिए सोशलिस्ट नेता डॉ. राममनोहर लोहिया का कथन स्मरणीय रहता है कि रोटी की तरह सरकार को भी उलटना पलटना चाहिए। वर्ना रोटी जल जाती है। सरकारें निरंकुश हो जाती हैं। याद रहे जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव पहली बार 1963 में पेश हुआ था, आजादी के 16 सालों बाद। तभी लोहिया भी कन्नौज से उपचुनाव में लोकसभा पहुंचे थे। अमरोहा से निर्वाचित आचार्य जेबी कृपलानी इसके प्रस्तावक थे।
भारतीय संसद में नेहरू सरकार के विरुद्ध पेश प्रथम अविश्वास प्रस्ताव पर डॉ. लोहिया के भाषण में कई तथ्य उल्लिखित हैं।कहीं प्रधानमंत्री अहंकारी न हो जाए ! अतः ऐसे खास आधारभूत कारण आवश्यक होते हैं। इस प्रथम अविश्वास प्रस्ताव के पीछे एक खास घटना भी थी। संसद में नेहरू का आतंक इसका विशेष कारण था। एक बार वरिष्ठ प्रजा सोशलिस्ट सांसद प्रो. हेम बरुआ के प्रश्न के उत्तर में पं. नेहरू ने अत्यंत रूखे ढंग से कहा : “आप बैठ जाओ इससे अधिक उत्तर नहीं दिया जा सकता है।” हेम बरुआ तो बैठ गए। इस अहंकारी जवाब से डॉ. लोहिया तिलमिला गए। उन्होंने कहा : “प्रधानमंत्री नौकर है, सदन मालिक है। नौकर को मालिक को संतुष्ट करना होगा।” संसदीय जीवन में पहली बार प्रधानमंत्री को ऐसा सुनना पड़ा। अविश्वास प्रस्ताव आचार्य कृपलानी ने प्रस्तुत किया था। लोहिया एक घंटा बोले थे। समय की सीमा थी, सदस्यों ने अपना समय देकर लोहिया को विस्तार से बोलने का अवसर दिया था। नेहरू कागज व कलम लेकर लोहिया के भाषण को नोट कर रहे थे। नेहरु की अज्ञानता का उपहास करते हुए लोहिया ने कहा : “हजारों एकड़ जमीन बेकार पड़ी है जिसे जोत कर खेती लायक बनाया जा सकता है, किंतु प्रधानमंत्री ने नया नुस्खा दिया है : गमले में खेती करो। मकान की छत पर खेती करो।
” संपूर्ण सदन हंस दिया। नेहरू की अज्ञानता पर यह जबरदस्त हमला था। लोहिया ने कहा प्रधानमंत्री के कुत्ते पर आठ रुपए प्रतिदिन खर्च होता है, जबकि 27 करोड़ लोग की आमदनी तीन आने रोज है।” तो सदन स्तब्ध हो गया। नेहरू ने उत्तर देना चाहा तो लोहिया ने यह कहकर कि खेती और कल कारखाने का ज्ञान आपको बहुत कम है, नेहरू को बिठा दिया। एक बार फिर नेहरू ने जब अपनी बात कही चाही तो लोहिया ने कहा : “जिस अर्थशास्त्री ने आपको नोट दिया है, वह गलत है। बहुत पछताओगे।” अविश्वास प्रस्ताव पर लोहिया के ऐतिहासिक भाषण पर पूरा संसद मंत्रमुग्ध था। यहां तक कि कांग्रेसी भी प्रसन्न थे। डॉ. लोहिया ने उनकी भावना जान ली थी इसीलिए उन्होंने कहा : “मेरे विरोध में और इस सरकार के समर्थन में वह चाहे जितनी तालियां बजाए किन्तु घर जाकर वे कहेंगे कि लोहिया ने खूब भाषण दिया। उसने हमारे दिल की बात कह दी। अब लोकसभा में जवाहरलाल नेहरू और राममनोहर लोहिया सरीखे कद्दावर नेता और वक्ता रहे नहीं। अतः मौजूदा लोकसभा में इस प्रथम अविश्वास प्रस्ताव पर वादविवाद कितना प्रभावी होगा, यह अत्यंत श्रवणीय, दिलचस्प और देखने लायक रहेगा। टीवी शो अत्यधिक लुभावना होगा।