हिन्दू धर्म में क्यों महत्व है लाल रंग का

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता 

वैज्ञानिकों के अनुसार रंग तो मूलत: पांच ही होते हैं- कला, सफेद, लाल, नीला और पीला। काले और सफेद को रंग मानना हमारी मजबूरी है जबकि यह कोई रंग नहीं है। इस तरह तीन ही प्रमुख रंग बच जाते हैं- लाल, पीला और नीला। आपने आग जलते हुए देखी होगी- उसमें यह तीन ही रंग दिखाई देते हैं। हिन्दू धर्म में इन तीनों ही रंगों को महत्व है, क्योंकि इन्हीं में हरा, केसरिया, नारंगी आदि रंग समाए हुए हैं। लाल रंग के अंतर्गत सिंदुरिया, केसरिया या भगवा का उपयोग भी कर सकते हैं।

लाल रंग

हिन्दू धर्म अनुसार लाल रंग उत्साह, सौभाग्य, उमंग, साहस और नवजीवन का प्रतीक है। लाल रंग उग्रता का भी प्रतीक है।

यह रंग अग्नि, रक्त और मंगल ग्रह का रंग भी है।

हिन्दू धर्म में विवाहित महिला लाल रंग की साड़ी और हरी चूड़ियां पहनती है।

प्रकृति में लाल रंग या उसके ही रंग समूह के फूल अधिक पाए जाते हैं।

लाल रंग माता लक्ष्मी को पसंद है। मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं।

रामभक्त हनुमान को भी लाल व सिन्दूरी रंग प्रिय हैं इसलिए भक्तगण उन्हें सिन्दूर अर्पित करते हैं।

मां दुर्गा के मंदिरों में आपको लाल रंग की ही अधिकता दिखाई देगी।

लाल के साथ भगवा या केसरिया सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग भी है।

यह रंग चिरंतन, सनातनी, पुनर्जन्म की धारणाओं को बताने वाला रंग है।

विवाह के समय दुल्हन लाल रंग की साड़ी ही पहनती है और दूल्हा भी लाल या केसरी रंग की पगड़ी ही धारण करता है, जो उसके आने वाले जीवन की खुशहाली से जुड़ी है।

केसरिया रंग त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है। शिवाजी की सेना का ध्वज, राम, कृष्ण और अर्जुन के रथों के ध्वज का रंग केसरिया ही था। केसरिया या भगवा रंग शौर्य, बलिदान और वीरता का प्रतीक भी है।

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