
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
लखनऊ। सृजन की इच्छा शक्ति ने काम शक्ति का स्फुरण कराया पुरुष ओर प्रकृति के सम्मिलन से बिंदु विस्तार को प्राप्त हुआ। आकाशीय नौग्रहो की शक्तियां रश्मि रूप मे एकत्र हुई…मां के गर्भ मे संतान ने आकृति ली। पंचधा प्रकृति की शक्तियों ने पांच माह सूक्ष्म आकार लेने मे लगाये । अंगो का निर्माण हुआ तो ईश्वर ने उसमे चेतना जागृत करनेसे सूक्ष्म रूप मे प्रवेश लिया,जिसे आत्मा कहते हैं। आत्मा के प्रवेश करते हे पिंड जागृत हुआ और अंगो का विकास तेजी से होने लगा। फिर तो ज्ञानेंद्रियो ने उसे गतिशील बना दिया।
नौमाह बीतनै के बाद गर्भस्थ शिशु बाह्य जगत मे आया। जो आकार हमने नौ माह मे पाया देवी ने नौदिनों मे पा लिया। पांच दिन पिंड निर्माण मे लगे छठवें दिन ज्ञानेंद्रियां जागृत हुई। तीन दिन मे तीन गुणों ने विस्तार पाया। नौ दिनों मे देवी ने पूर्ण स्वरूप मे दर्शन दिए। फिर जगत की विध्वंसक आसुरी शक्तियो का दमन हुआ और रचनात्मिका दैवी शक्तियो ने देवताओ को रचनात्मक कार्यो मे प्रवृत्त किया। मनुष्य ही नहीं हर प्राणी सुरक्षित हुए।इस तरह संसार मे सत्य, शिव और सुंदरता का चारो तरफ दर्शन होने लगा।
जयदेव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेष देवगण शक्तिसमूह मूर्त्या ।
तामम्बिकामखिल देवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।