शासन ने सजा देने के बजाए दिला दिया तोहफा!

  • कारागार विभाग के आला अफसरों का कारनामा
  • डीजी और DIG की संस्तुति के बाद भी नहीं हुई कोई कार्यवाही
  • शासन की कार्यप्रणाली पर उठने लगे सवाल

आर के यादव

लखनऊ। जो जितना बड़ा बेईमान उसको उतना बड़ा सम्मान। यह बात सुनने में भले ही अटपटी लग रहो हो लेकिन जेल विभाग के आला अफसरों ने यह कारनामा सच कर दिखाया। कई मामलो की जांच में दोषी पाए वरिष्ठ अधीक्षक को विभाग के उच्चाधिकारियों ने दंडित करने के बजाए विभाग के सर्वोच्च प्लेटिनम (हीरक) पदक से सम्मानित कर दिया। यह मामला विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।

मामला राजधानी की जिला जेल से जुड़ा है। वर्तमान समय में इस जेल की कमान वरिष्ठ अधीक्षक आशीष तिवारी के हाथों में है। यह प्रदेश एकमात्र ऐसे अधीक्षक है जो सबसे लंबे समय से राजधानी की जिला जेल में जमे हुए हैं। इनके कार्यकाल के दौरान कैदियों की फरारी, विदेशी कैदी की गलत रिहाई, जेल के गोदाम में भारी मात्रा में नगदी बरामद होने और बंगलादेशी बंदियों की ढाका से फंडिंग जैसी तमाम घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं के सुर्खियो में रहने के बाद भी शासन ने कोई कार्रवाई ही नहीं की। सूत्रों का कहना है कि जेल में तैनात होने के कुछ ही दिनों बाद ही आदर्श कारागार से जिला जेल में रंगाई-पोताई के लिए बाहर निकाले गए दो कैदी सुरक्षाकर्मियों का चकमा देकर फरार हो गए। इन फरार कैदियों का अभी तक कोई सुराग ही नहीं लगा।

इसके साथ ही जेल में दो राइटरों की भिडंत के बाद मिली सूचना पर जब जेल प्रशासन के अधिकारियों ने गल्ला गोदाम की तलाशी कराई तो वहां से उन्हें करीब 35 लाख रुपए की नगदी बरामद हुई। यही नहीं लखनऊ जेल में बंद बंगलादेश बंदियों की ढाका से वाया कोलकाता होते हुए होने वाली फंडिंग के मामले की एटीएस ने की। इसी दौरान जेल प्रशासन के अधिकारियों ने एक विदेश कैदी समेत तीन बंदियों की गलत रिहाई कर दी। पिछले दिनों जेल में बंदियों के हमले से घायल हुए एक बंदीरक्षक की उपचार के दौरान मौत हो गई। इसके अलावा बीते दिनों राजधानी की जिला जेल से सनसाइन सिटी की पावर ऑफ आटर्नी के जेल से बाहर जाने के मामले को न्यायालय ने गंभीरता से लिया। न्यायालय ने मामले की जांच कराकर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। विभाग के तत्कालीन आईजी जेल ने मामले की जांच जेल मुख्यालय में तैनात लखनऊ परिक्षेत्र के तत्कालीन डीआईजी को जांच सौंपी। जांच में उन्होंने अधीक्षक समेत कई अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए निलंबन और विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की।

सूत्र बताते है कि इसके अलावा जेल के बंदियों ने जेल के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार की सामूहिक शिकायत की। इसकी जांच भी डीआईजी को सौंपी गई। जांच अधिकारी ने जब दस्तावेज मांगे तो अधीक्षक ने यह कहकर ही उन्हें निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है इसलिए उन्होंने दस्तावेज देने से ही साफ इंकार कर दिया। इस अनुशासनहीनता की शिकायत जब आईजी से की गई तो उन्होंने शासन को दोषी अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की संस्तुति की। आईजी जेल की लखनऊ जेल के वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही की यह दूसरी संस्तुति थी। इसके अलावा जेल के अंदर भारी मात्रा में नगदी बरामद होने के मामले में भी वरिष्ठ अधीक्षक समेत अन्य दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की संस्तुति की गई। इन तमाम घटनाओं और संस्तुतियों के बाद भी शासन में बैठे अफसरों ने कोई कार्रवाई तो नहीं की बल्कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जेल के दोषी वरिष्ठ अधीक्षक आशीष तिवारी को विभाग के सबसे बड़े प्लेटिनम (हीरक) पदक से सम्मानित जरूर कर दिया। विभाग में चर्चा है कि विभाग में जो जितना बड़ा बेईमान है, उसको उतने ही बड़े सम्मान से नवाजा जा रहा है। इससे ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों का मनोबल टूट रहा है।

सजा के बजाए दे दिया तोहफा

राजधानी की जिला जेल में अनियमिताएं, भ्रष्टाचार और लूट मचाने वाले वरिष्ठ अधीक्षक आशीष तिवारी को शासन और मुख्यालय के अफसरों ने सजा के बजाए तोहफा ही दिया है। लखनऊ जेल में  तिवारी बतौर अधीक्षक तैनात हुए थे। वरिष्ठ अधीक्षक पद पर प्रोन्नति के बाद भी शासन ने इन्हें स्थानांतरित नहीं किया गया, जबकि प्रोन्नति के बाद स्थानांतरित किए जाने का प्रावधान है। कार्यवाही करने के बजाए उन्हें मंडल का नोडल अधिकारी बनाकर उन्हें तोहफा जरूर दे दिया गया।

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