मृत्यु पूर्व दिया गया बयान विश्वसनीय होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक बेटे और दो भाइयों की हत्या के मामले में आठ वर्षों से जेल में बंद उत्तर प्रदेश के बिजनौर निवासी व्यक्ति की दोषसिद्धि और मौत की सजा रद्द कर उसे तत्काल रिहा करने का गुरुवार को आदेश दिया। न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह होने की स्थिति में वह बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता, इसे केवल साक्ष्य का एक हिस्सा माना जा सकता है। शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने 36 पन्नों के फैसले में कहा, कि मरने से पहले दिया गया बयान सच होने का अनुमान रखते हुए पूरी तरह से विश्वसनीय होना चाहिए और आत्मविश्वास जगाने वाला होना चाहिए। जहां इसकी सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि मरने से पहले दिया गया बयान सच नहीं है, इसे केवल साक्ष्य के एक टुकड़े के रूप में माना जाएगा। लेकिन यह अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत ने एक बेटे और दो भाइयों को जलाने के आरोप से इरफान को यह कहते हुए बरी कर ‘जीवनदान’ दिया कि दो पीड़ितों के मरने से पहले दिए गए बयान प्रमुख गवाहों की गवाही से मेल नहीं खाते थे। बेटे और भाई 2014 में इरफान की दूसरी शादी करने के कथित तौर पर खिलाफ थे। जलाने की यह घटना 5-6 अगस्त‌‌ 2014 की दरमियानी रात को इरफान के बिजनोर स्थित घर पर हुई थी। इरफान पर अपने बेटे इस्लामुद्दीन और दो भाइयों इरशाद और नौशाद की मौत में उसकी कथित भूमिका के लिए निचली अदालत ने दोष सिद्धि के बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। शीर्ष अदालत ने इरफ़ान की अपील को स्वीकार करते हुए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर निर्भर मामले में मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर कानूनी स्थिति,भारतीय और विदेशी दोनों तरह के फैसलों का हवाला दिया है। (वार्ता)

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