के. विक्रम राव
नरसिम्हा राव के व्यक्तित्व के सम्यक ऐतिहासिक आंकलन में अभी समय लगेगा। मगर इतना कहा जा सकता है कि तीन कृतियों से वे याद किए जाएंगे। पंजाब में उग्रवाद चरम पर था। रोज लोग मर रहे थे। एक समय तो लगता था कि अन्तर्राष्ट्रीय सीमा अमृतसर से खिसकर अम्बाला तक आ जाएगी। खालिस्तान यथार्थ लगता था। तभी मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह और पुलिस मुखिया के.पी. सिंह गिल को पूर्ण स्वाधिकार देकर नरसिम्हाराव ने पंजाब को भारत के लिए बचा लिया। एक सरकारी मुलाजिम सरदार मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त कर नरसिम्हा राव ने आर्थिक चमत्कार कर दिखाया। मनमोहन सिंह स्वयं इसे स्वीकार चुके है। तीसरा राष्ट्रहित का काम नरसिम्हा राव ने किया कि गुप्तचर संगठन ‘‘रॉ’’ को पूरी छूट दे दी कि पाकिस्तान की धरती से उपजते आतंकी योजनाओं का बेलौस, मुंहतोड़ जवाब दें। अर्थात् यदि पाकिस्तानी आतंकी दिल्ली में एक विस्फोट करेंगे तो लाहौर और कराची में दो दो विस्फोट होंगे।
नरसिम्हा राव कितने भ्रष्ट रहे? वे प्रधानमंत्री रहे किन्तु अपने पुत्र को केवल पैट्रोल पम्प ही दिला पाये। एक अकेले बोफोर्स काण्ड में तो साठ करोड़ का उत्कोच था| अपनी आत्मकथा रूपी उपन्यास के प्रकाशक को इस भाषाज्ञानी प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को स्वयं खोजना पड़ा था। नक्सलियों से अपने खेतों को बचाने में विफल नरसिम्हा राव दिल्ली में मात्र एक फ्लैट ही बीस साल में साझेदारी में ही खरीद पाये। तो मानना पडे़गा कि नरसिम्हा राव आखिर सोनिया के कदाचार की तुलना में अपनी दक्षता, क्षमता, हनक, रुतबा, रसूख और पहुंच के बावजूद कहीं उनके आसपास भी नहीं फटकते। राजीव फाउंडेशन, जिसकी जांच हो रही है, को नरसिम्हा राव ने सौ करोड़ दिया था| माँ, बेटा, बेटी को बड़ा आवास और सुरक्षा दिया था| बोफोर्स काण्ड को समाप्त कराने हेतु नरसिम्हा राव ने अपने विदेशमंत्री माधवसिंह सोलंकी के हाथ स्वीडन के प्रधानमंत्री के नाम सन्देश भेजा था| राज फूटा तथा बेचारे सोलंकी की नौकरी चली गयी|
मगर जीते जी नरसिम्हा राव की जो दुर्गति कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की वह हृदय विदारक है। उससे ज्यादा खराब उनके निधन पर किया गया बर्ताव रहा है। नरसिम्हा राव के शव को सीधे हैदराबाद रवाना कर दिया ताकि कहीं राजघाट के आसपास उनका स्मारक न बनाना पड़े। नरसिम्हा राव के नाती एन.वी. सुभाष ने व्यथा व्यक्त की कि हर मौके पर नीचा दिखाने, छवि विकृत करने और उनकी उपलब्धियों को हल्का बताने की प्रवृत्ति से सोनिया तथा राहुल बाज नहीं आते| मिट्टी के तेल से शव दहन करने और पार्टी कार्यालय (24 अकबर रोड) के फुटपाथ पर शव डाल देने तथा राजघाट पर शव दहन से मना करने का उल्लेख भी इस नाती ने किया| मात्र सांसद रहे संजय गाँधी की भी राजघाट पर समाधि बनवाइ गयी है| इस पूर्व प्रधानमंत्री को अभी तक भारत रत्न से विभूषित नहीं किया गया| जबकि खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, गायिका लता मंगेशकर, फ़िल्मी सितारे एम. जी. रामचंद्रन आदि को नवाजा जा चुका है| अतिरिक्त प्रधानमन्त्री पद पर आते-जाते रहे, गुलजारी लाल नन्दा भी नहीं छूटे।
इसी विचारक्रम में याद आता है यह बात 14 मार्च 1998 की है। अपनी अकर्मण्यता और लिबलिबेपन के कारण नरसिम्हा राव ने कांग्रेस पार्टी को सरकार में ड्राइवर सीट से उतर कर कन्डक्टर बना डाला था। सत्ता के खेल में ताल ठोकनेवाले अब ताली पीटते रहे। खाता-बही संभालने वाले बक्सर के सीताराम केसरी ने वरिष्ठ और विद्वान नरसिम्हा राव से गद्दी छीन ली थी। खुद अध्यक्ष बन गये। मगर इतिहास ने तब स्वयं को दुहराया। दो वर्ष बाद सोनिया गांधी ने अपने दल बल सहित कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के कमरे का ताला तोड़कर खुद कुर्सी हथिया ली। सीताराम केसरी ने बस इतना विरोध में कहा कि यदि “सोनियाजी इशारा कर देती” तो वे खुद बोरिया-बिस्तर समेट लेते। सेवक अपनी औकात समझता है। तो बिना किसी चुनाव प्रक्रिया के, बिना नामंकन के, बिना वैध मतदान के, सोनिया गांधी 25 वर्ष पूर्व स्वयंभू पार्टी मुखिया बन गई। सवा सौ साल की विरासत पर सात साल के बल पर काबिज हो गई। बीच में राहुल गांधी भी आए थे। अब शीघ्र प्रियंका सत्ता पाकर कुनबावाली पार्टी का त्रिभुज पूरा बनाएगी।