सोलह बरस में लुटेरों का चेहरा न साफ कर सकी पुलिस

  • श्रीनाथजी ज्वैलर्स में हत्या कर लूट का मामला
  • दर्जन भर स्टेशन अफसर कर चुके हैं जांच

ए अहमद सौदागर

लखनऊ। माना जाता है कि हत्यारा मौका – ए – वारदात पर कोई न कोई सुबूत जरुर छोड़ता है, लेकिन गुमनामी में खो चुकी कई संगीन वारदातें इसकी तस्दीक नहीं करती। सर्विलांस से लेकर मुखबिर तंत्र का पूरा जोर लगाने के बावजूद पुलिस के नाकाम रहने की कहानी अलीगंज के डंडहिया बाजार स्थित श्रीनाथजी ज्वैलर्स की दुकान में वर्ष 2007 में हुई लूट की वारदात है। 16 बरस में कई स्टेशन अफसरों ने छानबीन की। क्राइम ब्रांच से लेकर वरिष्ठ अधिकारी भी जांच-पड़ताल में जुटे, लेकिन नतीजा सिफर।

,,, पूरे घटनाक्रम पर एक नजर,,,

डंडहिया बाजार स्थित श्रीनाथजी ज्वैलर्स की दुकान में 13 अगस्त 2007 की रात दुकान बंद होने वाली थी। भीतर दुकान मालिक नीरज रस्तोगी व अन्य कर्मचारी काउंटर से सामान समेट रहे थे। इसी दौरान अचानक बाहर गोली चलने की आवाज सुनाई पड़ी। अगले क्षण घनी आबादी के बीच सकरी रोड पर स्थित इस दुकान के गेट पर खड़े गार्ड खीरी निवासी राकेश को गोली मारने के बाद बदमाश भीतर दाखिल हो चुके थे जबकि गेट पर खड़े अन्य बदमाश खड़े थे। बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की, जिसमें नीरज रस्तोगी, कर्मचारी सीतापुर निवासी राजन शुक्ला व चंद्रिका प्रसाद घायल हो गए। इसके बाद बदमाश लाखों के गहने बटोर कर भाग निकले।

सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस घायलों को इलाज के लिए अस्पताल भेजा, जहां गार्ड राकेश व कर्मचारी राजन की मौत हो गई ‌
अलीगंज थाने में नीरज रस्तोगी की पत्नी नीतू रस्तोगी की ओर से हत्या, जानलेवा हमले व लूट की रिपोर्ट दर्ज हुई। वारदात की सूचना पाकर तत्कालीन आईजी जोन, डीआईजी एसएसपी, एएसपी, सीओ व स्टेशन अफसर सहित क्राइम ब्रांच की टीम तक मौके पर पहुंची और छानबीन शुरू हुई। गौर करें तो शुरुआत में पुलिस ने सर्विलांस से लेकर मुखबिर तंत्र व पांच दर्जन से अधिक संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ हुई।
वारदात में राजधानी लखनऊ से सटे जनपद सीतापुर व हरदोई के गिरोह का हाथ होने की आशंका जताने के बाद पुलिस गैर जिलों की खाक छानती रही, लेकिन महीनों फिर साल बीतने के बाद बदमाशों की तफ्तीश पहेली बन गई।घटना से लेकर 16 बरस के भीतर कई क्राइम मीटिंग में श्रीनाथजी ज्वैलर्स कांड की चर्चा गंभीरता से हुई।

इस मामले में तत्कालीन एसओ अलीगंज ओमप्रकाश शर्मा के अलावा बाद में यहां थानाध्यक्ष बने विजयवीर सिंह सिरोही, महेशचंद्र गौतम, पीके सिंह, मधुर मिश्रा, कल्याण सिंह सागर व सतीश सिंह सहित कई विवेचकों ने इस सनसनीखेज मामले के राजफाश के लिए अपने पूरे तंत्र को लगाया, लेकिन पुलिस अभी स्थानीय बदमाशों पर केंद्रित नहीं हो सकी। गैर जिलों की तलाश पुलिस को उसके अपने मुखबिरों ने भी खूब भटकाया पर पुलिस योजनाबद्ध तरीके से घनी आबादी वाले बाजार के बीच घटना करने वाले बदमाशों के स्थानीय लिंक को भी कभी तलाश नहीं सकी। जानकारों की मानें तो पुलिस हार मानकर पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल अंतिम रिपोर्ट लगा खामोश बैठ गई। यह तो बानगी भर और भी कई घटनाओं में बदमाशों की तलाश में अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन आज तक क़ातिल या फिर लुटेरे पुलिस के हाथ नहीं लग सके। उदाहरण के तौर पर गोसाईगंज में डबल मर्डर या फिर मड़ियांव में दो महिलाओं की हुई हत्याकांड का मामला।

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