
- आज के दिन नदी मे खड़े होकर होती है श्रावणी
- बहनें भाई को व विप्र सभी को बांधेंगे रक्षा सूत्र
- रात्रि मे 8.58बजे के बाद शुरु -रक्षासूत्र का बंधन
भगवान का प्रथम मानवीय अवतार भगवान वामन के रूप मे विप्र के रूप में था। भगवान वामन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को प्रह्लाद के पौत्र महाराजा बलि के दरवाजे पर आए। बलि यज्ञ कर रहा था भगवान वामन को देख उनकी पूजा अर्चना की । बड़ा दानी था इसलिए वामनावतारी श्रीहरि को दान देने का संकल्प किया..तो गुरु शुक्राचार्य ने रोकने की कोशिश की बलि दानशील स्वभाव के कारण किसी ब्राह्मण को निराश कैसे वापस जाने देता।
शुक्राचार्य कमंडलु की टोंटी मे सूक्ष्म रूप से चले गए,ताकि संकल्प हेतु जल न निकले। बलि ने कुश से टोंटी साफ कर दिया। जिसे रास्ता खुला किंतु शुक्राचार्य की एक आंख जाती रही। तीन पग पृथ्वी के बहाने विश्वरूप बन न कर तीन तीनो लोक ले लिए दक्षिणा मे उसका शरीर भी दान मेले लिया। फिर प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का स्वामी बनाया। वर मांगने को कहा तो बलि ने उनके द्वारा नित्य प्रात :दर्शन देने की याचना की। परिणाम स्वरुप भगवान को द्वार पाल बनना पड़ा। बाद मे महालक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बांध कर बलि के भवन से पति को छुड़ाया। आज पूर्णिमा को ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म करेंगे। सभी मित्रो कों रक्षा सूत्र बंधन कर ईश्वर से सुरक्षा दिये जाने की प्रार्थना करता हू़ं।