आशीष द्विवेदी
लखनऊ। आज भारत में कुपोषण की दर चौंकाने वाली हद तक घट चुकी है। बावजूद इसके हमारा देश दुनिया में अविकसित और कमज़ोर बच्चों का सबसे बड़ा ठिकाना है। देश में राज्यों के बीच बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक और भौगलिक विविधताएं हैं। इसी के चलते कुपोषण के खिलाफ जंग में जीत हासिल करने के लिए पोषण अभियान जैसी कोशिशों की ज़रूरत पड़ रही है। साल 2017 में राष्ट्रीय पोषण अभियान को सरकार ने कुपोषण के खिलाफ़ जंग के रूप में शुरू किया। सरकार के इस कदम की महत्ता तब समझ में आती है, जब हम आंकड़ों की तरफ देखते हैं।
साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए। इस बड़ी संख्या में भारत के करीब 22.4 करोड़ यानी 29 फीसदी भारतीय शामिल थे। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े खाद्य उत्पादक देश के लिए यह आंकड़े डरावने थे। वहीं संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वल्र्ड’ के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-१९ जैसी बड़ी महामारी के बाद भूख और रोटी के प्रति संघर्ष और तेज हुआ है। यानी आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में ऊपर से तो सब ठीक है, लेकिन जमीन पर संघर्ष अभी भी तेज है। देश में करीब 4.66 करोड़ अविकसित और 2.55 करोड़ कमजोर बच्चे रहते हैं। यह तब और पीड़ादायक हो जाता है, जब पता चलता है कि देश की राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से ज्यादा कुपोषित बच्चे रहते हैं।
भगवद्गीता के शब्दों में ‘अन्नाद भवन्ति भूतानि’ (अर्थात् प्राणियों का जन्म भोजन से होता है)। यह गहन उद्धरण पोषण के महत्व और समाज में जरूरतमंदों की सेवा पर जोर देता है। इसी वाक्य को ध्यान में रखकर पोषण ट्रैकर ऐप्प का निर्माण शुरू हुआ, जो अब यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि कोई भी बच्चा या माता कुपोषण का शिकार नहीं होने पाएंगे। सरकार एक-एक को खोजकर पोषण देगी, बशर्ते वह आधार कार्ड धारक हों।
नजर ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की ओर डालें तो आंकड़ें और भी डरावने हैं। 116 देशों में भारत का नम्बर ९४वें स्थान पर दिखा। इस आंकड़े में देश नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी बदतर स्थिति में दिखा। नेशनल फैमिली हेल्थ का सर्वे भी नरेंद्र मोदी सरकार के विपक्ष में खड़ा था। इन्हीं आंकड़ों से डरे-सहमे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने एक ऐसे ऐप्प का निर्माण किया, जो असल में जमीन तक पहुंच गया। यहां पूर्व मुख्यमंत्री राजीव गांधी की वह बात- ‘जमीन तक केवल 15 पैसा पहुंचता, बाकी सब कमीशन में बंट जाता है।’ फेल दिखी। सर्वे के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि शारीरिक विकास की चुनौती का सीधा ताल्लुक उम्र से दिखता है। यह समस्या 18 से 23 महीने के बच्चों के बीच सबसे ज़्यादा होती है। लखनऊ के मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय निरंजन कहते हैं कि सही समय पर शुरु हुआ स्तनपान, उम्र के मुताबिक पूरक भोजन, टीकाकरण और विटामिन ए सप्लीमेंट्स, पोषण के लिहाज से बेहद ज़रूरी हैं। इन्हीं परेशानियों से निजात पाने के केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप्प का ईजाद किया है, जिसमें गर्भवती, धात्री, नवजात शिशुओं समेत कुपोषण में भारत की नाक कटवाने वाले सभी सम्मिलित हो जाते हैं।
संतकबीरनगर के सुदूर गांव लखनोहर की आंगनवाड़ी कार्यकत्र्री चंद्रकला द्विवेदी कहती हैं कि इस ऐप्प से कई बड़े बदलाव सम्भव हो सके। अब आधार कार्ड और मोबाइल से पूरा देश एक जगह जुट गया है। आंगनवाड़ी कार्यकत्र्री जितना होम विजिट करती है, टीकाकरण करती हैं और विकास एवं पोषण सम्बन्धी सामानों का वितरण करती हैं, सब एक जगह बैठकर देखा जा सकता है। इस पारदर्शी व्यवस्था से निश्चित तौर पर देहातों की महिलाओं को बहुत फायदा होगा। खासकर वो जो गर्भवती और धात्री हैं। उनके लिए टेक होम राशन (THR) और ग्रोथ मॉनिटरिंग की व्यवस्था काफी लाभदायक साबित हो रही है।
वहीं बुंदेलखंड के बांदा जिले की अलीगंज क्षेत्र निवासी आंगनवाड़ी कार्यकत्र्री गुडिय़ा बताती हैं कि मिसकैरेज, बच्चे का जन्म, नव पंजीकरण की जानकारी होने से बड़ा फायदा लोगों को मिल रहा है। खासकर नवजात में लम्बाई-वजन नापने के बाद ही कई कमियां पता चल जाती है और उसका इलाज शुरू हो जाता है। प्रतापगढ़ के CMO जीएम शुक्ला कहते है कि पोषण ट्रैकर एप्प से कुपोषित बच्चे के जन्म के पहले दिन से ही उसकी धात्री मां का ख्याल सरकार रखना शुरू कर देती है। साथ ही छह जानलेवा बीमारी के टीकाकरण का विवरण भी मिल जाता है। इसके अलावा गर्भवतियों की पहचान के समय हाई रिस्क प्रैगनेंसी का पता चल जाता है, जो प्रसूता की कई बार जान बचा चुका है।
गौरतलब है कि यह ऐप्प अब असली गेम चेंजर साबित हो रहा है। पोषण ट्रैकर शरीर के वजन, कद, टीकाकरण रिकॉर्ड, पूरक पोषण और स्वास्थ्य जांच जैसी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाती हैं। साथ ही यह पोषण सेवाओं की प्रदायगी को भी ट्रैक करता है और परिभाषित संकेतकों की रीयल टाइम निगरानी को भी सुविधाजनक बनाता है। इसके अलावा, ऐप सबसे विशिष्ट रूप से उपभोक्ताओं को जन्म की तैयारी, प्रसवोत्तर देखभाल, स्तनपान और पूरक आहार सहित आवश्यक सेवाओं पर विशेष परामर्श वीडियो के माध्यम से शिक्षित करता है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी कहती हैं कि भारत में कोई भी बच्चा कुपोषित न रहे और उसकी धात्री मां को पोषण मिलता रहे, इसलिए यह कवायद की गई। पोषण ट्रेकर का प्रमुख उद्देश्य लाभार्थियों के डेटा को एकत्र करके और उनकी पोषण संबंधी जरूरतों की निगरानी करके कुशल प्रबंधन सुनिश्चित कराना है। यह ऐप्प न केवल उनके काम की गुणवत्ता को बढ़ाता है, बल्कि कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित कर त्रुटियों की संभावना को कम कर देता है। वह कहती है कि पोषण ट्रैकर की असाधारण विशेषता यह है कि वह प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं पर भी विचार करता है। इस ऐप का उपयोग करके, पंजीकृत प्रवासी श्रमिक अपने वर्तमान निवास स्थान से ही निकटतम आंगनवाड़ी केंद्र का आसानी से पता लगा सकते हैं।
गौरतलब है कि 57 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों ने मोबाइल फोन के माध्यम से ‘वन नेशन, वन आंगनवाड़ी’ कार्यक्रम के लिए पंजीकरण कराया है। यह वृद्धि न केवल पोषण ट्रैकर की प्रभावशीलता और पहुंच को रेखांकित करता है, बल्कि पारदर्शिता, जवाबदेही और सुविधा के विशाल अनुपात को भी रेखांकित करती है, जो उन जरूरतमंदों तक पहुंचती है और कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में किसी को भी पीछे नहीं छोड़ती। पोषण ट्रैकर इस बात का जीवंत प्रमाण है कि कैसे प्रौद्योगिकी सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में क्रांति ला सकती है और डिजिटल हस्तक्षेप और ई-शासन के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधिकतम पारदर्शिता, जवाबदेही, रहन-सहन में आसानी, अधिक से अधिक नागरिक भागीदारी के दृष्टिकोण और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
अंतिम व्यक्ति भी हो रहा संतुष्ट
लाभार्थी निवारण तंत्र पोषण 2.0 का एक अभिन्न अंग है। लाभार्थियों की संतुष्टि को प्राथमिकता देते हुए पोषण ट्रैकर एक प्रभावी लाभार्थी निवारण तंत्र को एकीकृत करता है। लाभार्थी अब वेब और एप्लिकेशन के माध्यम से सीधे फीडबैक साझा कर रहे हैं। साथ ही पोषण हेल्पलाइन (14408) की स्थापना ने सर्विस फीडबैक में नई क्रांति ला दी है। लाभार्थियों ने आधार सत्यापन, पोषण ट्रैकर एप्लिकेशन के साथ तकनीकी मुद्दों और कई विषयों पर लगभग 41 हजार 456 इनबाउंड कॉल दर्ज की हैं। साथ ही यह ऐप्प टेक-होम राशन (THR) वितरण के लिए SMS अलर्ट भी भेजता है। अब तक यह तकरीबन 75 लाख लाभार्थियों को SMS भेज चुका है।
बांग्लादेशी बिगाड़ रहे आंकड़ें
साल 1980 में भारत में अविकसित बच्चों की तादाद 66.2 प्रतिशत थी। पांच साल पहले तक वह घटकर 38.4 फ़ीसद पर आ गई थी। अगर पुडुचेरी, दिल्ली, केरल और लक्षद्वीप को छोड़ दें, तो बाक़ी सभी राज्यों के शहरी इलाक़ों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र में शारीरिक रूप से कमज़ोर बच्चों की संख्या अधिक है। इस बीच, बीते 10 बरसों में पांच साल से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। लखनऊ के प्रख्यात आयुर्वेदिक चिकित्सक और वीर सावरकर मंच के संयोजक डॉ. अजय दत्त शर्मा कहते हैं कि इस बीच बांग्लादेश से रोहिंग्या मुसलमान भारी संख्या में भारत लाए गए। वो नदियों के किनारे, नालों के आसपास झुग्गी-झोपड़ी डालकर बस जाते हैं और सडक़ों के चौक-चौराहों पर भीख मांगते हैं। इनकी बढ़ती संख्या के चलते देश में शहरी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक हुई है।
क्यों पड़ी ‘पोषण ट्रैकर’ की जरूरत
देश में शून्य से पांच साल के बच्चों में वजऩ की समस्या पर ग़ौर करें, तो एक खास अंतर दिखता है। आदिवासी समुदायों में इसकी दर सबसे ज्यादा 27.4 फ़ीसद है, तो ‘अन्य दर्जा’ धार्मिक अंतर का है, जहां ये 29.16 प्रतिशत है। सबसे ज़्यादा गऱीब आबादी में वजऩ की कमी की समस्या सबसे ज़्यादा यानी 23.5 फ़ीसद है, जो राष्ट्रीय औसत से दो प्रतिशत ज्यादा है।
नवजात शिशुओं के लिए ज्यादा कारगर
मई 2023 में पोषण ट्रैकर ने आंगनवाड़ी केंद्रों में तकरीबन सात करोड़ बच्चों का मापन किया, जिससे गम्भीर रूप से दुबलापन होने के स्तर का काफी कम होने का पता चला है। केवल 2.27 फीसदी बच्चे गम्भीर रूप से दुबले थे, जो NFHS-5 के 7.06 परसेंट की तुलना में उल्लेखनीय सुधार है। कुल मिलाकर दुबलेपन का प्रसार 7.14 प्रतिशत रहा जो पिछली 19.3 फीसदी की दर से काफी कम है।