जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
बहुला चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा के साथ ही गाय की पूजा भी की जाती है। संकष्टी चतुर्थी होने की वजह से इस दिन गणेशजी की पूजा का महत्व है। भगवान कृष्ण की गौशाला में एक गाय थी बहुला, उसमें नाम पर इस चतुर्थी का नाम बहुला चतुर्थी पड़ा।
बहुला चतुर्थी कब है
बहुला चतुर्थी 3 सितंबर को मनाई जाएगी। भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी इसी दिन होने की वजह से इस दिन बहुला चतुर्थी मनाई जाएगी। भगवान गणेशजी की पूजा इस दिन करने से आपके संकट दूर होते हैं और आपको शुभ लाभ की प्राप्ति होती है।
बहुला चौथ का मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रमास की चतुर्थी का आरंभ दो सिंतबर की रात को 8 बजकर 49 मिनट पर होगा और अगले दिन इसका समापन शाम को 6 बजकर 24 मिनट पर होगा। मान्यताओं के अनुसार बहुला चौथ की पूजा शाम के वक्त की जाती है और चंद्रमा को देखकर व्रत पूरा किया जाता है।
बहुला चतुर्थी का महत्व
बहुला चतुर्थी के बारे में कहा जाता है यह व्रत सत्य और धर्म की जीत का व्रत है। संतान के सुख और तरक्की के लिए यह व्रत बहुत ही लाभकारी माना जाता है। बहुला चतुर्थी के दिन गाय की पूजा करना भी शुभफलदायी और धनदायक माना जाता है। बहुला चौथ के दिन ग्वाले अपनी गाय को नहीं दोहते हैं बल्कि उसका दूध बछछ़े को पीने के लिए छोड़ देते हैं। इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा के साथ ही बहुला नाम की धर्म परायण गाय की भी पूजा की जाती है।
बहुला चतुर्थी की पूजा विधि
बहुला चतुर्थी के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और यदि आपके घर में गाय है तो नहलाधुलाकर उसकी सेवा करें और उसे हरे चारे के साथ गुड़ खिलाएं। पूरे दिन उपवास रखकर शाम के वक्त गणेशजी, कृष्णजी और गौमाता की पूजा करें। उसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दें और दूर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत से भगवान श्रीगणेशजी का पूजन करें। इस प्रकार बहुला चतुर्थी का व्रत करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और धन में वृद्धि होती है।
बहुला चौथ की व्रत कथा
भगवान कृष्ण अपनी गौशाली की बहुला नाम की कामधेनु गाय से बहुत स्नेह करते थे। एक बार उन्हें बहुला की परीक्षा लेने का विचार मन में आया। बहुला एक दिन वन में चरने गई। भगवान कृष्ण शेर का रूप धरकर अचानक से उसके सामने आ गए और उस पर हमला बोल दिया। यह देखकर बहुला बहुत सहम गई और शेर से विनती करने लगी कि उसका बछड़ा भूखा होगा और उसे दूध पिलाना है। बहुला ने कहा कि आज वह अपने बच्चे को दूध पिलाकर कल वह खुद शेर के पास आ जाएगी और फिर शेर उसका शिकार कर सकता है। बहुला का अपने बछडे़ के प्रति स्नेह देखकर शेर ने उसे जाने दिया।
अगले दिन बहुला अपने बछडे़ को दूध पिलाकर शेर के पास वापस आ गई। शेर कर रूप धरने वाले भगवान कृष्ण बहुला की धर्म परायणता और वचन बद्धता को देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उसको कहा कि कलियुग में तुम्हारी भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूजा होगी। इस पूजा से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होगी। यह कहकर भगवान ने बहुला को वापस उसके बच्चे के पास भेज दिया। यही वजह है कि इस दिन बहुत से ग्वाले अपनी गाय का दूध नहीं निकालते और उसे बछछ़े के लिए छोड़ देते हैं।