राजेश श्रीवास्तव
जब भारत ने चंद्रयान-तीन को लॉन्च किया था तो पूरी दुनिया की नजर भारत पर थी, क्योंकि भारत ने लैंडिग के लिए साउथ पोल को चुना था। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ने चांद पर लैंडिग तो की थी, लेकिन कोई भी देश साउथ पोल पर लैंड नहीं कर पाया। भारत ने ऐसा करके एक नया इतिहास रच दिया। और शनिवार की सुबह तो भारत के लिए दुनिया के फलक पर छाने की थी । चांद के बाद भारत ने अपना पहला सूर्य मिशन लॉन्च कर दिया। भारत से पहले कई देशों ने सूर्य मिशन लॉन्च किए हैं, लेकिन चांद की तरह सूरज की सतह पर किसी भी देश का यान नहीं पहुंच पाया। भारत का आदित्य-एल1 भी सूरज और पृथ्वी के बीच का सफर तय करेगा। यहीं से वो सूरज की तमाम गतिविधियों पर नजर रखेगा। 15 अगस्त 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो भारत अन्न की कमी से जूझ रहा था। ऐसे में भारत को दुनिया के कोने-कोने से खाद्यान्न का आयात करना पड़ा। कुछ ही दशकों ने भारत ने दुनिया में जबरदस्त वापसी की और अपने आप को एक कृषि प्रधान देश के रूप में स्थापित किया। वैज्ञानिकों और किसानों के अथक मेहनत का परिणाम निकला कि भारत कुछ ही दशकों में खाद्यान्न का निर्यात करने लगा।
इसके बाद एक-एक करके भारत ने दूसरे सेक्टर में भी अपनी ताकत दिखाई। 75 सालों के बाद आज भारत डिफेंस से लेकर अन्य सेक्टर में आत्मनिर्भर हो गया है। लाख अड़चनों और सियासी विरोध के बावजूद भारत ने खुद को परमाणु संपन्न देश के रूप में भी स्थापित कर लिया। आज भारत पूरी दुनिया में लीडर के तौर पर उभरा है। इसे 21वीं सदी को भारत की सदी कहा जा रहा है। कदम-कदम पर भारत इसको साबित भी कर रहा है। इसकी एक बानगी अगस्त में देखने को मिली, जब भारत ने अपने मून मिशन को पूरा किया और चांद के साउथ पोल पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिग की। ये कारनामा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। आजादी के 76 सालों के बाद भारत ने अर्थव्यवस्था से लेकर साइंस के सेक्टर में कई ऐसे झंडे गाड़े हैं, जिनका पूरी दुनिया में कोई जवाब नहीं है। 1947 से 1975 तक देश को कई संस्थान ऐसे मिलें, जिन्होंने नई दिशा दी । 1947 में मिली आजादी के बाद भारत में आईआईटी, आईआईएम, एम्स, डीआरडीओ और इसरो जैसे कई टॉप इंस्टीट्यूशंस की शुरुआत हुई। देश की पहली पंचवर्षीय योजनाओं में वैज्ञानिक विकास की योजनाओं पर फोकस रखा गया। इसके साथ ही, भारत के लोगों के अथक परिश्रम ने देश को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। भारत जब ब्रितानी हुकूमत से आजाद हुआ, तब देश गरीबी, भुखमरी और कुपोषण के साथ कई महामारी वाली बीमारियों की मार झेल रहा था। खाद्यान्न की कमी थी और इसके लिए हम दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर थे। खेती के लिए भारत को ट्रैक्टर तक के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। इसके बाद भारत ने 1953 में ट्रैक्टर बनाने के लिए एचएमटी ट्रैक्टर्स की स्थापना की। खेती में आधुनिकीकरण होते ही, 8० के दशक की शुरुआत में हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न के सेक्टर में आत्मनिर्भर बना दिया और दूसरे भारत खाद्यान्न मंगवाने लगे।
1965 में भारत में नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड की स्थापना की गई। इसके कोशिशों के बाद 70 के दशक ऑपरेशन फ्लड शुरू हुआ। 2000 तक आते-आते भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध का प्रोड्यूसर बन गया। 1950 के दशक में बना भाखड़ा नंगल बांध आज भी सिविल इंजीनियरिग का एक बेजोड़ नमूना है। यह बांध उत्तर भारत के राज्यों का आज भी एक लाइफलाइन है। जब दुनिया परमाणु संपन्नता की ओर बढ़ चुकी थी और भारत ने आजादी की सांस ली थी। हालांकि तभी भारत के परमाणु कार्यक्रम के संस्थापक होमी जहांगीर भाभा ने इस सेक्टर में काम शुरू कर दिया था। एक एक्सीडेंट में होमी भाभा का निधन हो गया और भारत का परमाणु संपन्न होने का सपना इंतजार बन गया। इसके बाद आया साल 1974, जब भारत ने पोखरण में ऑपरेशन स्माइलिग बुद्धा किया और भारत एक परमाणु संपन्न देश बन गया। इसके करीब 24 सालों बाद 1998 में भारत ने दूसरा परमाणु टेस्ट ऑपरेशन शक्ति किया। इसके बाद भारत ने खुद को पूरी तरह से परमाणु संपन्न देश घोषित कर दिया। इस बीच भारत को दुनिया में कई प्रतिबंधों को भी झेलना पड़ा। फिर भी भारत एक शक्ति बनकर उभरा। आज भारत में सात परमाणु उर्ज़ा संयंत्र काम कर रहे हैं, जिसकी संख्या 16 तक किए जाने का प्लान है। आजादी के तुरंत बाद ही भारतीय स्पेस प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई ने भी स्पेस से जुड़े इंस्टीट्यूशन की नींव रख दी। इसके बाद साल 1975 में भारत ने अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए कई रिसर्च सेंटर और स्पेसपोर्ट बना लिया था। 1969 में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन की स्थापना हो चुकी थी।
एक अप्रैल 1975 को इसरो को आधिकारिक नाम दिया गया और 19 अप्रैल को भारत ने सोवियत रूस के जरिए पूरी तरह स्वदेशी सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ को अतंरिक्ष में भेजा। इनके सफल होने के बाद ‘इंडियन नेशनल सैटेलाइट सिस्टम’ का रास्ता खुल गया। 1958 में भारत में ‘डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन’ की स्थापना हुई। इससे पहले कई ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां थी, लेकिन डीआरडीओ ने अपग्रेडेड फाइटर प्लेन, आर्टिलरी, टैंक बनाने के लिए शुरू किया गया। 1980 तक के संघर्षों को पार करते हुए डीआरडीओ ने अपनी लिस्ट में मिसाइलों की एक बड़ी रेंज खड़ी कर दी। इसके साथ ही भारत ने कई बीमारियों से भी लड़ाई लड़ी। मलेरिया, हैजा, पोलियो और टीबी से लड़ते हुए इसकी वैक्सीन बनाई और इन बीमारियों को हराया। 1975 से भारत के वैज्ञानिक कार्यक्रमों ने धीमी गति से दोबारा रफ्तार बढ़ाई। 1975 के बाद स्पेस सेक्टर में भारत ने सफलता के कई झंडे गाड़े। साल 2000 तक 25 सालों में भारत ने भास्कर एक, भास्कर दो, इनसैट-2B, आईआरएस-1B और इनसैट 3B को लॉन्च किया। 1984 में स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा भारत की ओर से अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बने। इन सफलताओं के साथ भारत ने सुपर कंप्यूटर भी डेवलप किए। इस समय देश में सबसे तेज सुपर कंप्यूटर परम सिद्धि एआई है, जिसे 1991 में बनाया गया था। 2000 में भारत ने अपने लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी का सफल परीक्षण कर लिया था। इसके बाद 2008 में भारत ने चांद पर अपना पहला मिशन चंद्रयान-एक भेजा और ऐसे करने वाला भारत दुनिया का 5वां देश बन गया।
भारत की दुनिया में अहमियत बढ़ गई। क्योंकि किफायती दामों में दुनिया के सैटेलाइट भारत से लॉन्च होने लगे। 2013 में मिशन मंगलयान लॉन्च हुआ, जिसने नौ महीने की सफल यात्रा के बाद मंगल के परिधि में प्रवेश किया। 2017 में इसरो ने घ्SLठ्ठ-ए37 के साथ 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। 2018 में ही भारत ने गगनयान की घोषणा की, जिसमें कहा गया कि भारत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को धरती की उपकक्षा तक लेकर जाएगा और वापस लेकर आएगा। इसके बाद साल 2019 में चंद्रयान-2 चांद की सतह पर गया, जो आंशिक रूप से असफल हो गया। महज चार सालों के बाद, 14 जुलाई 2023 इसरो ने चंद्रयान-3 लॉन्च किया, जिसने 23 अगस्त 2023 को चांद के साउथ पोल पर सफलता से लैंड किया। इसने चांद की सतह पर सल्फर, एल्यूमिनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैग्नीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन की खोज कर ली। अब यह वह भारत नहीं है, इसकी ओर पूरी दुनिया निगाह लगाये है और इसके वैज्ञानिकों पर भी और उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है।