
लखनऊ। एक कहावत है कि लौट के बुद्धू घर को आए…जान बची तो लाखों पाए। यह भी एक जुमला है कि चौबे गए छब्बे बनने और दूबे बनकर लौट आए। आज की तारीख़ में उपरोक्त दोनों कहावतें नीतीश कुमार पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं। यह तो सभी को मालूम है कि नीतीश बहुत ही अतिमहात्वाकांक्षी राजनेता है। चेयर के लिए नीतीश का अपना कोई फ़लसफ़ा नहीं है। नीतीश मन ही मन यह ख्वाहिश पाले हुए थे कि बेंगलुरू की मीटिंग में उन्हें संयोजक बनाया जाएगा, फिर वे जोड़-तोड़ करके प्रधानमंत्री के तख्त पर लोकसभा चुनाव के बाद आसन्न हो जाएँगे। लेकिन कांग्रेस ने 18 जुलाई को बेंगलुरू में जता दिया कि उनकी हैसियत क्या है। हुआ यह कि 17 जुलाई की शाम होते-होते बेंगलुरू का ताज होटल किसी सियासी होटल में तब्दील हो चुका था। नीतीश कुमार, लालू यादव, उनके साहबजादे तेजस्वी, अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, डी. राजा, एमके स्टॉलिन समेत अपने-अपने प्रांत के नेताओं का वहाँ जमावड़ा हो चुका था। कांग्रेस होने वाली इस मीटिंग में मेज़बान की भूमिका अदा कर रही थी। रात्रि विश्राम के अगली सुबह चाय, कॉफी और नाश्ता के बाद 26 दलों की आपस में बात शुरू हुई। मगर इस मीटिंग के पहले ही कांग्रेस ने ऐसा सियासी बम विस्फोट करवाया कि नीतीश का चेहरा स्याह पड़ गया। बेंग्लुरू में अनेक वीआईपी रास्तों की दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर-बैनर रात में ही किसी ने लगा दिया था, जिसमें नीतीश की तस्वीर थी। उस फ़ोटो के नीचे मोटे-मोटे हर्फों में अंग्रेज़ी के शब्द ‘अनस्टैबिल’ लिखे हुए थे। यानी की अस्थिर। साथ ही अगुवानी पुल जो ध्वस्त हो गया था, जिसमें 1700 करोड़ खर्च हुए थे, उसकी भी तस्वीर थी। बस क्या था? नीतीश का पारा हाई हो गया। बैठक में सीटिंग व्यवस्था से भी नीतीश चिढ़े हुए थे। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी ब्लूप्रिंट पर चर्चा होगी। वहाँ भी उन्हें निराशा हाथ लगी। अर्थात् वहाँ कांग्रेस ने नीतीश की सूरत-ए-हाल ‘आया ऊँट पहाड़ के नीचे’ वाली कर दी।
बेशक नीतीश कुमार ने तकऱीबन एक साल से विरोधी दलों की एकता का अलख जगाकर उनका कप्तान बनने का ताना-बाना बुना था। उनकी प्रथम पहल 23 जून को राजधानी पटना में देखने को मिली भी थी तब 15 पार्टियों के नेताओं ने इसमें शिरकत की थी। मगर बीते 18 जुलाई को बेंगलुरू में इस मुतल्लिक जो बैठक हुई, उसमें नीतीश विपक्ष की इस बारात में दुल्हे के फूफा के रोल में थे। दरअसल हिंदू लडक़े की शादी के दौरान अमूमन देखा जाता है कि दूल्हे का फूफा हमेशा नाक-भौं चढ़ाए रहता है। बात-बात में लोगों के उलझ पड़ता है। उसकी त्यौरियाँ अक्सर तनी रहती है। बेंगलुरू में यही शक्ल नीतीश ने बना रखी थी। कांग्रेस ने उस मजलिस में अपनी ज़बरदस्त डॉमिनेंस से नीतीश कुमार को सकते में डाल दिया। यानी कांग्रेस ने पूरी मीटिंग को ही हाईजैक कर लिया। फिर उन लोगों ने अपने इस गठबंधन का नाम इंडिया (INDIA) दिया गया और नीतीश के संग मंत्रणा भी नहीं की। हालाँकि नीतीश ने इसका नाम IMM (इंडियन मेन फ्रंट) सुझाया था। नाम बदलने से नाराज़ नीतीश सपना संजोए हुए थे कि उन्हें विरोधी ख़ेमे की तरफ़ से संयोजक का पद मिल जाएगा। मगर कांग्रेस ने उनकी अनदेखी कर दी। उधर लालू का गेम था कि नीतीश संयोजक का दारोमदार सँभालेंगे और फिर उन पर दबाव डालकर तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रथ पर सवार कर देंगे। पर मामला यू-टर्न ले लिया। नतीजतन मुँह फुलाए लालू यादव, नीतीश कुमार और तेजस्वी फौरन पटना लौट आए। अब नीतीश एंड कम्पनी तरह-तरह का बहाना बना रही है। क्या है पूरा मामला इससे रूबरू करा रहे हैं रतीन्द्र नाथ।
नतीजतन कुमार ने मारे क्रोध के खामोशी की चादर ओढ़ ली और हवाई जहाज़ का समय हो गया है, का बहाना बनाकर वह लालू और तेजस्वी के साथ पटना लौट आए। मगर ‘नया लुक’ अपने पाठकों को यह बताना चाहता है कि इस बहाने से बिहार के सीएम जनता की आँख में धूल झोंक रहे थे। क्योंकि वो चार्टर प्लेन से गए थे, जिसका कोई टाइम नहीं होता है। उसके सवार जब पहुँचते हैं, तभी वह कूंच करता है। उधर लालू को भी कांग्रेस ने ज़बरदस्त धोबियापाट दिया। लालू को अब लग रहा है कि उनका बेटा सीएम नहीं बन पाएगा। इसकी पृष्ठभूमि यह रही है कि लालू चाहते थे नीतीश संयोजक बन जाएं और तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी का रास्ता साफ़ हो जाए। कांग्रेस ने नीतीश को राजनीतिक रूप से डुबाने के संग ही लालू की राजनीति को भी तगड़ी मार लगाने का फिलवक्त काम किया है। अब देखना है कि मुम्बई में मीटिंग की तारीख़ कब मुकर्ऱर होती है। जदयू सुप्रीमो तो संयोजक बनने से रहे, लेकिन यह हो सकता है कि 11 सदस्यों में जो टीम बनने वाली है, बतौर मेम्बर उन्हें जगह मिल जाए। संभव है वहां सीट शेयरिंग के साथ ही साझा कार्यक्रमों का फ़ॉर्मूला भी तय हो जाए। अभी जो स्थिति है उससे तो यही लगता है कि सियासी एकता के सूत्रधार से सियासी अंधकार तक नीतीश को पहुँचाने में कांग्रेस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
…भीतर फाँके तीन
महान कवि अब्दुल खानखाना रहीम की एक कविता है- ‘रहिमन प्रीत न कीजिए जस खीरा ने कीन। ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फाँके तीन। बहरहाल आज यही सूरत-ए-हाल बिहार में मौजूदा नीतीश सरकार की हो चुकी है। नीतीश द्वारा पाला बदलने के कय़ास, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से पटना में बंद कमरे के भीतर डेढ़ घंटे तक की बातचीत, शिक्षा विभाग के कडक़ मिज़ाज व ईमानदार अपर मुख्य सचिव केके पाठक एवं वज़ीर-ए-तालीम चंद्रशेखर के बीच भयंकर रस्साकशी के समेत अनेक सियासी मसले के दौरान बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के प्रथम दिन नीतीश कुमार अपनी गाड़ी में लालू के दोनों लाल तेजस्वी और तेज प्रताप यादव के साथ विधानसभा पहुँचे तो मीडियाकर्मियों ने उनकी बाइट लेनी चाही। नीतीश के ऐसा करने के पीछे लालू को यह दिखाना था कि हम एक हैं। मगर ‘नया लुक’ ने तफ़तीश की तो पाया कि BJP ने नीतीश के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। चतुर सुजान नीतीश ने जनता के सामने यह दर्शाने की कोशिश किया कि महागठबंधन ख़ासकर राजद और जदयू एक है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि ऊपर से फि़ट-फाट, लेकिन नीचे से मोकामा घाट।
रंगा सियार का रंग झाड़ा कांग्रेस ने
बिहार के अधिकांशत: लोग नीतीश कुमार को सियासत का रंगा सियार कहते हैं। वो अब तो पलटूराम और कुर्सी कुमार के नाम से नवाज़े जाने लगे हैं। कहां चले थे जय प्रकाश नारायण की कर्मभूमि पटना से 26 दलों के अगुआ बनने, वहाँ 18 जुलाई 2023 को कांग्रेस ने इनकी कलई खोलकर रख दी। दरअसल बेंग्लुरू में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की लीडरशिप तले भाजपा विरोधी तमाम क्षेत्रीय दलों की मीटिंग थी। बेशक उस बैठक में गठबंधन के नाम पर अंतिम मोहर लग गई, लेकिन उसके पहले बेंग्लुरू की सडक़ों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे, जिनमें बिहार के वज़ीर-ए-आला को पलटूराम बताया गया था। पोस्टर-बैनर पर इस महानुभाव की फ़ोटो भी लगी थी। यहीं नहीं बिहार में खगडिय़ा-अगुवानी-सुल्तानगंज के बीच निर्माणाधीन पुल जो ढह गया था, उसकी तस्वीर भी उस पोस्टर पर चस्पा थी। 1717 करोड़ की लागत से बनने वाले पुल का एक हिस्सा पहले भी गिरा था। इसलिए इस बॉक्स का शीर्षक रंगा सियार… दिया गया है। अपने को नीतीश ईमानदार कहते हैं। बहरहाल मीटिंग शुरू होने से पहले पुलिस प्रशासन ने आनन-फ़ानन नीतीश के पोस्टरों को हटाया। कर्नाटक में कांग्रेस की हुकूमत है। बेंग्लुरू उसकी राजधानी है। चप्पे-चप्पे पर CCTV कैमरे लगे हैं। स्पष्ट है यह करतूत BJP की नहीं हो सकती। तो क्या कांग्रेस ने नीतीश को एक्सपोज़ करने वास्ते यह खेल किया? यह सवाल राजनीतिक गलियारों में तेज़ी से चर्चा में है। यहीं नहीं ‘नया लुक’ को ख़बर है कि उस मीटिंग में नीतीश को बोलने भी नहीं दिया गया। कहीं इसमें लालू की भूमिका तो नहीं थी, कांग्रेस से साठ-गांठ करके बेइज्जत करने की। कांग्रेस समझ चुकी है कि नीतीश के लिए BJP ने दरवाज़ा बंद कर लिया है। लालू के चक्रव्यूह में नीतीश अब बुरी तरह फँस चुके हैं। उनके लिए इस चक्रव्यूह को भेद पाना फिलवक्त मुमकिन नहीं लग रहा है।
मोदी मंत्रिमंडल में रौशन होगा ‘चिराग’
चिराग़ पासवान। मुल्क के दलित दिग्गज रहे दिवंगत राम विलास पासवान के इकलौते सुपुत्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘हनुमान’। आठ अक्टूबर 2020 को रामविलास ने दुनिया को अलविदा बोला था। उम्मीद थी कि उनकी भरपाई वास्ते मोदी उनके चिराग़ और बिहार के जमुई से सांसद जूनियर पासवान को अपनी काबीना में जगह देंगे। मगर सभी राजनीतिक विश्लेषक तब चौंक गए थे, जब जुलाई 2021 में चिराग़ को दरकिनार करते हुए पीएम ने रामविलास के अनुज और हाजीपुर के सांसद पशुपति पारस को कैबिनेट में शामिल कर लिया था। चिराग़ को बदला लेने वास्ते नीतीश ने ऐसा खेल रचा था। इसके पहले ही रामविलास द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के दो फाड़ हो चुके थे। एक ग्रुप बना चिराग़ का जिसका नाम पड़ा लोजपा (रामविलास), जबकि दूसरा धड़ा पारस का था, जो अस्तित्व में आया। ग़ौरतलब है कि नीतीश को इस बात से चिढ़ थी कि अक्टूबर-नवम्बर 2020 के असेम्बली इलेक्शन के दौरान चिराग़ ने तकऱीबन हर सीट पर कैंडिडेट खड़ा कर नीतीश के गेम को खऱाब कर दिया था। जदयू तीसरे नम्बर पर आ गई थी। बावजूद इसके साल 2022 में गोपालगंज एवं कुढऩी विधानसभा उपचुनाव के दरमियान हनुमान की भूमिका निभाते हुए चिराग़ ने BJP का साथ दिया था, तब NDA की जीत हुई थी। अब पासा पलटने वाला है। चिराग़ की पकड़ अपनी जाति के दुसाध यानी वोटरों पर है, उसे ही ध्यान में रखकर BJP आलाकमान ने इस नौजवान को मंत्रिपरिषद में बिठाने का फैसला कर रखा है। इस मुतल्लिक चिराग़ ने अपने दल की बैठक भी बुलाई थी। सभी ने एक स्वर से निर्णय उन्हीं पर छोड़ दिया है। भारत के गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय इसी जुलाई चिराग़ पासवान से मिले हैं। इस सूरत में सौ फ़ीसदी संभावना लग रही है कि पारस की छुट्टी केंद्रीय मंत्रिमंडल से हो सकती है। गौरतलब है कि बिहार में दुसाध पाँच फ़ीसदी हैं और इस बिरादरी पर चिराग़ का जादू सिर चढक़र बोल रहा है। स्पष्ट है कि चिराग़ के आ जाने से NDA को पाँच प्रतिशत और वोटों का इज़ाफ़ा हो जाएगा।
ललन ले डूबेंगे नीतीश को
नीतीश के थिंक टैंक यूँ तो तीन-चार सियासतदां हैं। जिन्हें नीतीश की किचन कैबिनेट का हिस्सा भी कहा जाता है। इनमें जल संसाधन मंत्री संजय झा, वजीर-ए-खजाना विजय चौधरी, भवन निर्माण के मिनिस्टर अशोक चौधरी शामिल हैं। मगर नीतीश के असली थिंक टैंक कोई हैं तो उनका नाम है-ललन सिंह। वह आज की तारीख में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वर्ष 2009-10 में ललन सिंह ने नीतीश से अपना पिंड छुड़ा लिया था। उस दौरान कई राजनीतिक घाट का उन्होंने पानी पिया। उस घड़ी ललन अपनी हर तकऱीर में नीतीश के खिलाफ आग उगलते थे तथा बोलते थे- ‘इस शख्त के पेटवा में दांत हैं और इसे तोडऩा मुझे बख़ूबी आता है।’ मगर पुरानी कहावत है कि सियासत में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है, न मुस्तकिल दुश्मन। अंतत: लौटकर ललन ने नीतीश को अपना नेता मान लिया। नीतीश ने भी कभी इन्हें बिहार सरकार में मंत्री तो कभी लोकसभा की चेयर प्रदान की। यह ललन सिंह ही थे, जिन्होंने RCP सिंह को नीतीश के दरबार से रुखसत करवाया था।
आज RCP, BJP में हैं। बताते चलें कि ललन और RCP में छत्तीस का रिश्ता तबादला उद्योग को लेकर हुआ था। सब अपने मनमाफिक अफ़सरों को ख़ास जगह पोस्ट करना चाहते थे। फिर ललन और ऊर्जा मंत्री विजेंदर यादव के इशारे पर नीतीश ने BJP को टा-टा कर लालू से अगस्त 2022 में साठ-गांठ कर ली। ललन का एकसूत्रीय कार्य है नीतीश ने अपना बदला लेना। इसी कारण उन्होंने नीतीश को लालू के चक्रव्यूह में ऐसा फँसाया है कि मुख्यमंत्री की हालत सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। दरअसल ललन जदयू को तोडऩे की फिऱाक़ में हैं। पिछले जून माह में यकबयक नीतीश राजभवन पहुँचे और लगभग उसी वक्त सुशील मोदी की गाड़ी राजभवन को कूंच की तो लगा कोई खिचड़ी पक रही है। लेकिन ‘नया लुक’ ने अपनी तफ़तीश में पाया कि जदयू के तीस विधायक को लेकर ललन उसका विलय राजद में कराना चाह रहे थे। नतीजतन नीतीश ने तयशुदा रणनीति के तहत राजभवन का रुख़ आनन-फ़ानन किया। सुशील मोदी नीतीश के कहने पर वहाँ पहुँचे थे या महज़ इत्तेफाक था, यह कोई नहीं जानता। मगर यह हक़ीक़त है कि मोदी और कुमार आज भी प्रिय दोस्त हैं। सम्भव है ललन को हडक़ाने के उद्देश्य से ही नीतीश ने मोदी को बुलावा भेज दिया हो, क्योंकि राजनीति में साम, दाम, दंड भेद सब कुछ चलता है।
चिराग़ को देख सियासतदां जल उठे
चिराग़ पासवान दिवंगत राजनेता रामविलास पासवान के पुत्र हैं। बिहार के जमुई से लोकसभा सीट सांसद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘हनुमान’ माने जाते हैं। दरअसल बीते 18 जुलाई को जहां एक ओर बेंगलुरु में मोदी विरोधी नेताओं की मीटिंग दिन में हुई, वहीं उसी शाम राजधानी दिल्ली का विशाल अशोका होटल NDA नेताओं की बैठक का गवाह बना। शाम का धुँधलका गहराते ही 38 दलों के नेता मोदी की गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे। नरेंद्र मोदी अपने लाव-लश्कर के साथ पहुँचे। सबसे पहले राष्ट्रीय लोक जनता दल के उपेंद्र कुशवाहा ने उनका खैरमकदम किया। PM ने कुशवाहा से हाथ मिलाया। फिर एक-एक कर नेताओं से वो मिलने लगे। लेकिन मोदी की निगाहें किसी ख़ास को खोज रही थीं। अचानक उनकी नजऱ चिराग़ पासवान पर पड़ी। उन्होंने इशारों से उन्हें बुलाया। चिराग़ ने आते ही उनके चरण स्पर्श किए, बस क्या था? नरेंद्र मोदी ने उन्हें फ़ौरन उठाया, उनके गालों पर हाथ फेरा तथा गले लगा लिया। स्पष्ट है कि चिराग़ को ऐसा प्यार देकर मोदी ने दलितों के बीच यह संदेश दे दिया कि दलित उनके प्रिय है। ग़ौरतलब है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दरम्यान मोदी ने अपनी कांस्टीचुएंसी वाराणसी में दलितों के पाँव पखारे थे। वैसे यह वही चिराग़ हैं, जिन्होंने साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जगह-जगह लोजपा कैंडिडेट उतारकर नीतीश को औक़ात बता दी थी। नीतीश तीसरे नम्बर पर आ गए थे। यही कारण है कि चिराग़ को नीतीश क़तई देखना नहीं पसंद करते हैं। हालाँकि इसमें दो राय नहीं कि कल चिराग़ को देखकर सियासतदां जल उठे हैं। चाहे वह सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के। कहा भी जाता है कि अगर कोई तुम्हें देखकर जलता है तो समझो प्रगति कर रहे हो।
कुशवाहा… महागठबंधन को करेंगे स्वाहा
बिहार की राजनीति चूँकि पूरी तरह जातीय चाशनी में डूबी हुई है। उसे आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजऱ पार्टियाँ ‘कैश’ कराने में पिल पड़ी है। लालू का जहां ‘एम’ ‘वाई’ यानी ‘माई’ मतलब मुस्लिम यादव समीकरण सौ फ़ीसदी दुरुस्त है, वहीं इसकी काट के वास्ते BJP भी अपने पुराने साथियों को साधने में जुट चुकी है। इसकी असली कड़ी है कुशवाहा वोट यानी कोइरी मतों को भाजपा द्वारा अपने पाले में लाना। ग़ौरतलब है कि प्रदेश में जहां 12 फ़ीसदी यादव और 16 प्रतिशत मुसलमान हैं। वहीं कोइरी तकऱीबन आठ परसेंट हैं। लिहाज़ा लालू के इस 28 प्रतिशत को बैलेंस करने के लिहाज़ से BJP ने ज़बरदस्त कुशवाहा कार्ड खेला है। यहाँ भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान सम्राट चौधरी को सौंप रखी है, जो कोइरी विरादरी से हैं। उपेंद्र कुशवाहा भी राजग के कुनबे में लौट गए हैं। जुलाई के दूसरे सप्ताह में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री नागमणि ने दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की। उसके बाद नागमणि ने बताया कि मुलाक़ात काफ़ी अच्छी रही। नागमणि पूर्व मंत्री जगदेव प्रसाद के साहबजादे हैं। नीतीश काबीना में भी मंत्री थे। कालांतर में नागमणि ने शोषित इंक़लाब पार्टी की स्थापना की। बक़ौल नागमणि, NDA के साथ उनका गठबंधन तकऱीबन तय है, फिर तो नीतीश का भट्ठा ही बैठ जाएगा।
दरअसल कभी नीतीश ने ही लव-कुश समीकरण की बुनियाद रखी थी। लव मतलब कुर्मी जो तीन फ़ीसदी हैं। कुश यानी कोइरी, जो आठ प्रतिशत है। लवकुश की इस सोशल इंजीनियरिंग ने बिहार के सीएम को गद्दी तक पहुँचाने में मदद की थी, किंतु आज यह उनसे टूट चुका है। नीतीश से कुर्मी भी सख्त नाराज़ हैं। नालंदा निवासी इंजीनियर रामचंद्र जो कि ख़ुद राजनेता हैं और वहाँ से चुनाव भी लड़ चुके हैं, ‘नया लुक’ से कहते हैं- ‘मैं स्वयं नीतीश की कुर्मी बिरादरी से आता हूँ। इस शख्स ने कुर्मियों के बच्चों की पढ़ाई बर्बाद कर दी, क्योंकि यहाँ के सभी सरकारी विद्यालय सड़े हुए हैं। साथ ही रोजग़ार नहीं दिया, वरना कुर्मी एक नम्बर पर रहते। आज यह जाति सबसे आखिऱी पायदान पर है। नीतीश को इस बार 25 फ़ीसदी से ज़्यादा कुर्मी वोट नहीं मिलेगा…। वह भी वोट देने वाले लोग बुजुर्ग और बूढ़े रहेंगे, नौजवान नहीं।’ सनद रहे कि यहाँ तीन प्रतिशत कुर्मी है। उधर अगड़ी बिरादरी कऱीब 15 फ़ीसदी है। यानी साफ़ है कि 15 प्रतिशत सवर्ण, आठ परसेंट कोइरी के अलावे दो फ़ीसदी कुर्मी (कुछ नीतीश के साथ जाएँगे।) को लेकर ‘एम-वाई’ की बराबरी करीब-करीब कर लेंगे। स्पष्ट है कि कुशवाहा की तिकड़ी सियासत में नीतीश को कहीं स्वाहा न कर दे। मगर एक पेंच यह है कि उपेंद्र कुशवाहा और नागमणि में पटती नहीं है। देखना यह होगा कि BJP आलाकमान इन दोनों दिग्गजों को कैसे एक साथ लेकर चलती है।
पलटू चाचा और दोनों भतीजा
नीतीश कुमार को बिहार के लोग कुर्सी कुमार, पलटूराम, दलबदलू सिंह, कुशासन बाबू और मौक़ापरस्त मुख्यमंत्री से नवाज़ रहे हैं। यह सिलसिला 2017 से चालू हैं, जब जुलाई में उसी वर्ष उन्होंने राजद को झटका देकर BJP के संग सरकार गठित कर ली थी। फिर 2022 के अगस्त में नीतीश कुमार ने पलटी मारी और लालू ख़ेमे में चले गए। अभी यहाँ राजद और जदयू की सरकार है। लेकिन बार-बार यह कहते हैं कि ललन सिंह और विजेंदर यादव के कहने पर उन्होंने लालटेन की लौ रौशन की थी। मगर इसमें तनिक भी शह, संदेह और सुबहा नहीं है कि कई मुद्दों पर दोनों दलों में गम्भीर मतभेद हैं। दोनों पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप के दौर लगातार जारी हैं। इसी जद्दोजहद के दरम्यान सियासी फिज़़ा में यह बात तैरने लगी कि नीतीश पाला बदल सकते हैं।
तब तेजस्वी तफऱीह के वास्ते विदेश गए थे। यह ख़बर भी उड़ी कि नीतीश को केंद्र में जाने का न्यौता लेकर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पटना आए थे और बंद कमरें में नीतीश से उन्होंने डेढ़ घंटे तक गुफ़्तगू की थी। चर्चा थी कि नीतीश को रेल मंत्रालय या कोई अच्छी मिनिस्ट्री मिलेगी। बदले में नीतीश सीएम की कुर्सी BJP के लिए छोड़ देंगे। लेकिन नीतीश ने भी शर्त रखी कि वे मुख्यमंत्री के तख्त से उतर जाएँगे, बशर्ते भाजपा सुशील कुमार मोदी को उस पर आसीन करे। BJP को यह नागवार लगा। अंतत: बात बिगड़ गई, इसी की भरपाई के लिए और पब्लिक को दिखाने के वास्ते नीतीश ने इसी वर्षाकालीन सत्र के पहले ही दिन यानी 10 जुलाई की सुबह लालू के दोनों लाल तेजस्वी तथा तेज़ प्रताप को अपनी सरकार गाड़ी में बिठाकर विधानसभा पहुँचे। इससे यह भी साफ हो गया कि नीतीश गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं।
माँझी पार लगाएँगे कश्ती
माँझी। यानी जीतनराम। सूबे के पूर्व वज़ीर-ए-आला। उनकी गिनती ऑल इंडिया हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं में होती है, क्योंकि कांग्रेस, राजद, जदयू का दामन इन्होंने थामा और छोड़ा भी। नीतीश ने साल 2014 की 20 मई को माँझी के हवाले सीएम की कुर्सी सौंप दी थी। दरअसल उनकी लोकसभा 2014 में बुरी तरह हार हुई थी। नीतीश हैं तो राजनीति में कहीं से भी नैतिक नहीं, किंतु दिखाने वास्ते हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने यह खेल खेला था। जीतनराम को सीएम बनाने के वास्ते नीतीश ने एक तीर से कई शिकार किए। एक दलितों के बीच अच्छा संदेश जाएगा।
दूसरा- वह माँझी को उसी तरह नचाते रहेंगे, जिस तरह मदारी बंदर को नचाता है। मगर माँझी ने नीतीश एवं ललन के फऱमान पर काम करने से मना कर डाला तो ठीक नौ महीने बाद 20 फऱवरी 2015 को इनका पत्ता सीएम के तख्त से काट दिया गया था। बाद में मांझी ने ‘हम’ यानी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया। फिर नीतीश से सट गए। नवम्बर 2020 के बिहार विधानसभा इलेक्शन में कुमार BJP की मदद से सीएम बने। अगस्त 2022 में नीतीश ने पलटी मारी और लालू के संग मंत्रिपरिषद का निर्माण किया तो राजद की मदद से वो एमएलसी हुए। माँझी के बेटे डॉ. संतोष सुमन को काबीना में जगह मिली। जीतन गया सुरक्षित सीट से टिकट आगामी लोकसभा चुनाव के लिए माँगने लगे। इसी के पश्चात नीतीश से उनका मतभेद हो गया और सुमन ने जून 2023 में नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। अब माँझी राजग के संग मार्च कर रहे हैं। 18 जुलाई 2023 को दिल्ली में NDA की जो बैठक हुई, उसमें माँझी ने शिरकत की। मुसहर वोट पर इनकी पकड़ है, जो सूबे में चार फ़ीसदी हैं। देखना है NDA की कश्ती पार लगाने में इस माँझी को कहां तक सफलता मिलती है।