- आज रात को अवतरित होंगे श्रीकृष्ण
- भाद्रपद की काली अंथियारी रात
- गर्जन तर्जन के साथ होरही मूसला धार वर्षा
- मथुरा के कारागार के गर्भ गृह मे अवतरित होंगे श्रीहरि
- जगत का तारन हार हैं श्रीकृष्ण
- जेल के फाटक खुले पहरे दार सोये हथकड़ी खुली
- बसुदेव ने शिशु कृष्ण को यशोदा के घर पहुंचाया
- कन्या को लेकर लोटे बसुदेव
- कंस ने आठवी संतान धरती पर पटका
- आकाश वाणी कर विंध्याचल पहुंची कन्या
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
श्रीकृष्ण का जन्म होगा आज आधी रात को…भाद्रपद कृष्ण पक्ष अषृटमी तिथि, अर्धरात्रि को, बुधवार दिन,रोहिणी नक्षत्र… संयोग से सभी योगो के आज रात मे संयोग बन रहे हैं। समाज मे कंस का भय, बसुदेव देवकी के संकट निवारण के लिए श्रीहरि का स्मरण…करते रहे प्रजाजन… हे प्रभो! इस बार इनके संतान की रक्षा कर दो। बहुत सही पीड़ा बसुदेव देवकी ने,..। सभी बच्चे जन्म लेतै ही मार दिये जाते हैं। हाय..हाय..कैसी बिडंबना.. मामा के हाथो भांजों का वध? मृत्यु के भय से कंस ने अपनी ही सबसे प्रिय बहन को जेल मे डाल दिया। बंदीगृह मे बहन बहनोई कैद हैं। कभी भी होसकता है प्रसव.. नौ माह पूरे होगए… दसवां चल रहा। उनके पास तो कोई दाई भी नहीं…कैसे होगा? क्या होगा? असमंजस मे मथुरा वासी…।
84 कोस ब्रज मे बस एक ही चर्चा। व्यथित है बसुदेव यशोदा भी… हे भगवान! अब क्या होगा? केसे होगी शिशु की रक्षा? अच्छा हो कुछ दिन और गर्भ मे रह ले… सुरक्षित तो है। फिर जन्म लेगा तो क्या होगा?? सोच कर कांप गए दंपति। कंस दिन रात मृत्यु के भय मे… सालों से नींद गायब है.. इस बार तो देवकी का आठवां गर्भ जन्म लेगा… इसी के बारे में…आकाशवाणी ने चेताया था। रात मे एक बार फिर जेल हो आऊं? बंदियों को आगाह कर दूं? आवाज सुनते ही सूचित करें.. तुरंत जाऊंगा..उसे गला घोट कर मार दूंगा.. नहीं नहीं पटक कर मारूंगा। क्या करुं नींद नहीं आरही। बाहर घटाटोप अंधकार है… आंधी तूफान है… बादल रह रह कर कर गर्ज रहे.. अब तो वर्षा भी शुरू होगई। थोड़ी देर सो लूं। यही ऊहा पोह कंस की नींद उड़ा चुका था। कई बार ज्योतिषियो को दिखा भी चुका था। वे बोले अभी कोई मारकेश नहीं लगा है!.. सरकार निश्चिंत रहिये !! 11-12 साल बाद लगेगा। तब उपाय कर लिया जाएगा। लेकिन कंस निश्चिंत सो न सका।
आज बसुदेव देवकी की भी नींद उड़ी है. देवकी को आज रात में….रह रह कर पीड़ा की लहर उठ रही..पर देवकी कंहर भी तो नहीं सकती। रक्षक जग जाएंगे..रोने की आवाज सुन कर कंस को जगा देंगे.? हे राम! क्या करें?…..हे हरि! रक्षा करो! हे भगवान अब क्या होगा? चीत्कार कर उठा देवकी का हृदय दर्द की तेज लहर उठी…चीख उठी देवकी…बसुदेव दौड़े आए… क्या हुआ? कैसी आवाज ऽ..श् श् श् …! नहीं देवकी…!! साहस रखो.!. पीड़ा सहन करो..!!आकाश वाणी सत्य होगी तो शिशु को कुछ नहीं होगा। बचा लेंगे भगवान।
अवतरित हुए साक्षात्…श्रीहरि! नारायण..श्रीकृष्ण!!
… बाहर तेज आंधी पानी.. बिजली की रह रह कर कड़क! अचानक कारागार के कक्ष मे तेज रोशनी हूई… दिखे चतुर्भुज नारायण…! आहा कैसा दिव्य मनमोहक स्वरुप..? आवाज आई ‘बसुदेव! शिशु के जन्म लेते ही यमुना पार गोकुल चले जाना। नंद के घर यशोदा के पास सोते समय ही शिशु को रख देना और उनके पास सोई बच्ची को उठा लाना! कंस के सामने उसे ही प्रस्तुत करना!!.. सावधान! इसमे कोई चूक न हो!’ बसुदेव देवकी स्तब्ध! अरे यह क्या कह गए? यह तो साक्षात् नारायण हैं। अचानक अंधेरे मे मशाल की लौ हिली, बिजली कड़की और शिशु का रूदन सुनाई पड़ा.. देवकी ने शिशु के मुंह ढक लिए… ओह! शिशु चुप होगया.. मंद स्मिति मुख पर दिखी। यह क्या था? बसुदेव देवकी की हाथ पैर की बेड़ियां खुल गईं.. ओह! पहरे दार भी ऊंघने लगे.. जेल के फाटक बिना चूं चरर मरर.. किए आज खुल गए।
बसुदेव धीरे से उठे शिशु के जन्म के बाद जिस सूप मे धान रख कर नाल काटने वाली को बुलाने जाना पड़ता है.. उस सूप का धान पलटा और उसी मे कपड़ा बिछा कर शिशु को लिटाया ओर बसुदेव जी उसे नंद के घर ले चले.. चुपके से … कोई आवाज किए बिना। जेल के सातो फाटक एक एक कर खुलते गए.. बसुदेव बाहर होते गए। यमुना घाट पर आगए.. कोई नाव नहीं.. वर्षा की बूंदे अचान थमीं,यमुना मे घुस गए… फिर वर्षा तेज ..कालिंदी की उफनाती तेज धार .. कुछ मंद पड़ने लगी… पानी गले तक आ पहुंचा…बसुदेव घबराये,.? फिर आश्चर्य नदी की धार मंद पड़ने लगी… कालिंदी ने गहरे जल से उथले जल मे पहुंचा दिया… जाने कितनी तेज गति होगई बसुदेव की… पानी मे चलते हुए गोकुल के समीप आकर बाहर निकले.. सीधे नंद के घर पहुंचे,.. आश्चर्य नंद के घर का दरवाजा खुला था…यंत्रवत यशोदा के शयन गृह मे जाकर उनके पार्श्व मे शिशु को सुलाया..कन्या को उठाया सूप मे रखा और वापस चुपके से चल दिए।
…गति तेज हे तेज होती गई.. नदी ने मार्ग दिया मथुरा पहुंचे… कारागार के फाटक अभी भी खुले थे.. सातों दरवाजे पार कर बसुदेव ने कन्या देवकी को थमा दी। जेल के सातो फाटक बंद होचुके थे। हथकड़ियां फिर ज्यों की त्यों…। कन्या रोने लगी.. लगातार.. बसुदेव देवकी के चुप कराने पर भी नहीं रूकी…पहरे दार हड़बड़ा कर जगे …भगे कंस के पास..! देवकी ने संतान को जन्म दे दिया! महाराज उठिए!!.. कंस भयानक सपना देख रहा था.. शोर सुन कर जगा.. भगा जेल की तरफ! …. पहुंच गया बैरक मे। देवकी के हाथ मे शिशु देख झपट्टा मार कर उसके हाथ से छीन लिया शिशु!! अरे यह तो कन्या निकली! .. देवकी बिलख उठी!! नहीं नही़ भैया! यह तो कन्या है तुम्हारा क्या बिगाड़गी? एक पल को रुका कंस.. देने लगा तो फिर बड़बड़ाया..कन्या भी तो मार सकती है? नहीं नहीं.. आठवीं संतान है.. छोड़ना मूर्खता होगी। बसुदेव चुप खड़े आंसू गिराते हुए देवकी को संभाल रहे थे। कंस ने कन्या को धरती पर पटक दिया… चीत्कार कर उठी देवकी!! भैय्या..ऽऽ! यह क्या? कन्या छिटक कर ऊपर चली गई.. आवाज आई,,! अरे अभागे कंस…! तुम्हारा मारने वाला धरती पर आचुका है…!!! संभल जा….ऽ.! देखते ही देखते …कन्या आकाश मार्ग से.. विंध्याचल की पहाडियो मे समां गई।