जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
जन्माष्टमी पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा होती है। जन्माष्टमी के दिन लोग उपवास रखते हैं और कृष्ण के लिए प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात में जागरण कर मनाते हैं। जन्माष्टमी का त्योहार भगवान कृष्ण के जन्म के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसे कृष्णष्टमी या गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कृष्ण के अनुयायियों के लिए जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत महत्व रखता है। यह त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। जन्माष्टमी का त्योहार देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में धूम-धाम से मनाया जाता है।
दो दिन का शुभ मुहूर्त
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी तिथि भ्रम है। चूंकि यह पर्व दो दिन होता आया है। इसलिए स्मार्त के लिए छह और वैष्णव के लिए सात सितंबर को जन्माष्टमी का पर्व मनाने की व्यवस्था दी जा रही है। पंडितों के अनुसार मध्यरात्रि में अष्टमी के संयोग से ही जन्माष्टमी होती है। क्यों कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात के 12 बजे माना गया है।
जयंती योग में व्रत रखने का महत्व
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि जयंती योग में जन्माष्टमी का व्रत करने काफी महत्व है। इस दिन श्री कृष्ण की अराधना से तीन जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
कब बनता है जयंती योग
जब भी अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, तो उसे जयंती योग कहा जाता है। मान्यता है कि इस योग में जन्माष्टमी का व्रत रखने वालों को वैकुंठ धाम मिलता है। पितरों को प्रोतयोनि से मुक्ति मिलती है।