जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
गोगा नवमी वाल्मीकि समाज का मुख्य पर्व है। इस दिन गोगादेव की पूजा से संतान प्राप्ति की राह आसान होती है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को गोगा नवमी मनाई जाती है। ये वाल्मीकि समाज का मुख्य त्योहार है, इस दिन वाल्मीकि समाज के लोग अपने आराध्य गोगादेव यानी जाहरवीर का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन नागों की पूजा का भी विधान है। इस साल गोगा नवमी आठ सितंबर 2023 को मनाई जाएगी। गोगादेव को वीर पराक्रमी और सिद्धों का शिरोमणि कहा जाता है।
गोगा नवमी का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि सात सितंबर 2023 को शाम चार बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन आठ सितंबर 2023 को शाम पांच बजकर 30 मिनट पर इसका समापन होगा।
सुबह का मुहूर्त: सुबह 07,36 – सुबह 10.45
दोपहर का मुहूर्त: दोपहर 12.19 – दोपहर 01.53
शाम का मुहूर्त: शाम 05.01 – शाम 06.35
क्यों मनाते हैं गोगा नवमी?
राजस्थान में गोगा नवमी का विशेष महत्व है हालांकि मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में भी इसे मनाया जाता है। कथा के अनुसार यहां गोगाजी को सांपों का देवता भी कहा जाता है और इस रुप में इन्हें पूजा भी जाता है। कहते हैं गोगादेव की पूजा से निसंतान दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है। गोगादेव के पास नागों को वश में करने की शक्ति थी, इनकी पूजा से सर्प के डसने का भय नहीं रहता। इन्हें गुरु गोरखनाथ का परम शिष्य माना जाता है। इसे गुग्गा नवमी भी कहते हैं।
गोगा नवमी की पूजा विधि
गोगा नवमी के दिन सुबह उठकर स्नान के बाद मिट्टी से गोगादेव की मूर्ति बनाएं या फिर तस्वीर की पूजा करें। गोगा देव को चावल, रोली, वस्त्र आदि अर्पित करें। खीर, चूरमा या गुलगुले का भोग लगाएं। इस दिन घोड़े को दाल खिलाने की परंपरा है।
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गोगा नवमी का महत्व
ऐसी मान्यता है की जाहरवीर गोगा जी की पूजा करने से जातक का जीवन सर्पदंश से सुरक्षित हो जाता हैं। गोगा जी कि कृपा से जातक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
- संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती हैं।
- बच्चों वाली महिलाओं के बच्चे दीर्धायु होते है, गोगाजी उनके बालकों के जीवन की रक्षा करते हैं।
- सौभाग्यवती स्त्रियों को अखण्ड़ सौभाग्य प्राप्त होता हैं।
- घर परिवार में सुख-समृद्धि आती हैं।
विशेष : ऐसी लोक मान्यता है कि यदि किसी के घर में सर्प आ जायें, तो उसे गोगा जी की तस्वीर या मूर्ति पर कच्चे दूध के छींटें लगा देने चाहिये। इससे सर्प बिना किसी को कोई नुकसान पहुँचाये चला जायेगा।
गोगा नवमी की कहानी
गोगा नवमी की यह कहानी बहुत ही प्रचलित है। लोक कथा के अनुसार जाहरवीर गोगा जी के विवाह के लिये राजा मालप की पुत्री सुरियल को पसंद किया गया था। परंतु राजा मालप ने अपनी बेटी का विवाह गोगाजी से करने से मना कर दिया। यह बात जानकर गोगा जी को बहुत दुख हुआ। तब गोगा जी ने यह बात अपने गुरू बाबा गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) को कह सुनायी। गोगा जी बाबा गोरखनाथ के प्रिय शिष्य थे, उनके दुख के निवारण के लिये गुरू गोरखनाथ ने वासुकि नाग का आह्वान किया और उससे कहा की वो जाकर राजा मालप की पुत्री सुरियल को ड़स ले। वासुकि ने वैसा ही किया।
वासुकि नाग के विष की काट राजा मालप के वैध के पास नही थी। इसीलिये वहाँ का कोई वैध उस विष के प्रभाव को काट नही सका। अपने पुत्री के जीवन पर संकट आया देखकर राजा मालप बहुत दुखी हो गयें। तब गुरू गोरखनाथ के कहे अनुसार वासुकि नाग एक साधू का वेष लेकर राजा मालप के पास पहुँचे और उनसे कहा कि मैं तुम्हारी पुत्री का उपचार करके उसके प्राणों की रक्षा कर सकता हूँ, परंतु तुम्हे इसके बदलें मुझे एक वचन देना होगा। राजा मालप ने उनसे पूछा कि आप मेरी पुत्री के जीवन की रक्षा करने के बदलें में क्या चाहते हैं?, आप जो माँगेंगे मैं आपको ना नही करूँगा। तब साधू के वेष में आये वासुकी नाग ने उनसे कहा कि आपको अपनी पुत्री का विवाह राजा जेवरसिंह के पुत्र जाहरवीर गोगाजी से करना होगा। राजा मालप ने अपनी स्वीकृति दे दी। तब साधू वेष धारी वासुकी नाग ने उन्हे गुग्गल मंत्र का जाप करने के लिये कहा। गुग्गल मंत्र के जाप के प्रभाव से राजकुमारी का स्वास्थ्य ठीक होने लगा और उस पर से विष का प्रभाव समाप्त हो गया। तब राजा मालप ने अपने वचन का पालन करते हुये, अपनी पुत्री सुरियल का विवाह गोगाजी से कर दिया।