अजा एकादशी आज  बन रहे : दो शुभ योग, रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग

  • रवि पुष्य समेत दो शुभ योग में अजा एकादशी
  • कब होगा एकादशी व्रत का पारण?

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


अजा एकादशी का व्रत हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को वैकुंठ की प्राप्ति होती है और उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य फल मिलता है। इस व्रत में भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं। इस बार अजा एकादशी के दिन रवि पुष्य समेत दो शुभ योग बन रहे हैं। पंचांग के अनुसार, इस साल अजा एकादशी व्रत के लिए भाद्रपद कृष्ण एकादशी तिथि नौ सितंबर शनिवार को शाम 07 बजकर 17 मिनट पर शुरू हो रही है और यह तिथि 10 सितंबर को रात 09 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि को देखते हुए अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर रविवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाएगी और अजा एकादशी व्रत कथा सुनी जाएगी।

रवि पुष्य समेत 2 शुभ योग में अजा एकादशी

इस वर्ष अजा एकादशी के दिन दो शुभ योग रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। रवि पुष्य योग शाम 05 बजकर 06 मिनट से बन रहा है, जो अगले दिन सुबह 06 बजकर 04 मिनट तक है। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग 10 सितंबर को शाम 05:06 बजे से लेकर 11 सितंबर की सुबह 06:04 बजे तक है। ये दोनों ही योग कार्यों के लिए शुभ माने जाते हैं।

अजा एकादशी का पूजा मुहूर्त

अजा एकादशी व्रत का पूजा मुहूर्त सुबह 07 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ है। जो लोग इस दिन व्रत रखेंगे, वे सुबह 07:37 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट के बीच कभी भी अजा एकादशी की पूजा कर सकते हैं। इस समय में लाभ-उन्नति मुहूर्त सुबह 09:11 बजे से सुबह 10:44 बजे तक और अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 10:44 बजे से दोपहर 12:18 बजे तक है।

कब होगा एकादशी व्रत का पारण?

व्रत का पारण 11 सितंबर सोमवार को सूर्योदय के साथ होगा। उस दिन आप व्रत का पारण सुबह 06 बजकर 04 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट के बीच कभी भी कर सकते हैं। उस दिन द्वादशी तिथि रात 11 बजकर 52 मिनट तक है।

अजा एकादशी व्रत का महत्व क्या है?

अजा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप मिटते हैं। भगवान विष्णु के अशीर्वाद से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर भगवान विष्णु के चरणों में स्थान पाता है।

अजा एकादशी की पूजा विधि

अजा एकादशी का व्रत करने के लिए उपरोक्त बातों का ध्यान रखने के बाद व्यक्ति को एकाद्शी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए। उठने के बाद नित्यक्रिया से मुक्त होने के बाद, सारे घर की सफाई करनी चाहिए और इसके बाद तिल और मिट्टी के लेप का प्रयोग करते हुए, कुशा से स्नान करना चाहिए। स्नान आदि कार्य करने के बाद, भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान श्रीविष्णु जी का पूजन करने के लिये एक शुद्ध स्थान पर धान्य रखने चाहिए। धान्यों के ऊपर कुम्भ स्थापित किया जाता है। कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है और स्थापना करने के बाद कुम्भ की पूजा की जाती है। इसके पश्चात कुम्भ के ऊपर श्रीविष्णु जी की प्रतिमा स्थापित कि जाती है। प्रतिमा के समक्ष व्रत का संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेने के पश्चात धूप, दीप और पुष्प से भगवान श्रीविष्णु की जाती है।

अजा एकादशी की कथा :   अज एकादशी की कथा राजा हरिशचन्द्र से जुडी़ हुई है। राजा हरिशचन्द्र अत्यन्त वीर प्रतापी और सत्यवादी ताजा थे। उसने अपनी सत्यता एवं वचन पूर्ति हेतु पत्नी और पुत्र को बेच देता है और स्वयं भी एक चाण्डाल का सेवक बन जाते हैं। इस संकट से मुक्ति पाने का उपाय गौतम ऋषि उन्हें देखते हैं। महर्षि ने राजा को अजा एकादशी व्रत के विषय में बताया। गौतम ऋषि के कथन सुनकर राजा मुनि के कहे अनुसार विधि-पूर्वक व्रत करते हैं।

इसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत के प्रभाव से उसको पुन: राज्य मिल गया। अन्त समय में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया। यह सब अजा एकाद्शी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करते है तथा रात्रि में जागरण करते है। उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते है और अन्त में स्वर्ग जाते है। इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है।

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