- लालित्य के साथ अर्थबोध की गुणवत्ता बनी रही
- असत्य और नृशंसता के प्रति विद्रोह
- समाज को दिशा देने वाली रचनाएं मिलीं
- सत्ता और शासन को चुनौती देने वाली
भारतेंदु बाबू ने कहा ‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल’.. सभी तरह से उन्नत हम तब कहलायेंगे.. जब हमारी अपनी कोई भाषा हो। वह भाषा है ,मातृभाषा हिंदी। भारतेदु हरिश्चंद्र ने लेख,नाटक लिखे ही ब्रजभाषा मे कवितायें भी लिखीं। गोस्वामी तुलसी दास ने ‘रामचरित मानस ‘ हिंदी अवधी भाषा मे लिख कर सभी वेद पुराण उपनिषदों का निचोड़ ही लिख दिया जो कालजयी कृति सिद्ध हुई। सदियों तक लोग इससे प्रेरणा पाते रहेंगे। प्रताप नारायण मिश्र ने बैसवाड़ा में कवितायें और उर्दूनिष्ठ गद्य लिखे तो बालकृष्ण भट्ट ने संस्कृत निष्ठ हिंदीमे लिखा। सूर ने ब्रजभाषा मे सूरसागर ,सूर सारावली आदि लिख कर हिंदी भाषा को समृद्ध किया। महाबीर प्रसाद द्विवेदी ने वर्तनी संबंधी त्रुटियां ही दूर नहीं कीं,वरन हिंदी साहित्य को शुद्ध संस्कारित कर प्रस्तुत होने दिया। इस तरह एक एक शब्द वर्तनी और वाक्य विन्यास पर निगरानी की।
यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त ने खड़ी बोली मे ‘साकेत’ लिखा जिसमे ब्रजभाषा की तरह लालित्य और अवधी की तरह काव्य सौष्ठव था। उसके बाद अधिकांशत:खड़ी बोली हिंदी मे ही लेखन का दौर चल गया। राष्ट्रीय चेतना जगाने के साथ उस दौर मे कवियों और साहित्य कारो ने अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाया। छायावाद काल मे हिंदी साहित्य अपने प्रौढा़वस्था मे था। सुमित्रानंदन पंत ,जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा और सूर्य कांथ त्रिपाठी ने कालजयी रचनायें कीं। यह हिंदी काल का स्वर्ण युग था। सियाराम शरत गुप्त के ईसावास्य उपनिषद का संस्कृत से हिंदी मे कविता मे अनुवाद किया सहज परवाह पूर्ण कवितायें लिखीं। रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजली के अंग्रेजी से हिंदी मे अनूदित साहित्य की तरह बंगला, उड़िया, तमिल, तेलगु ,कन्नड़,मराठी,गुजराती आदि भाषाओं के साहित्यों के हिंदी मे अनूदित ग्रंथो ने भी हिंदी को खूब समृद्ध किया।
यद्यपि प्रगति वाद काल मे साहित्य पर मार्क्सवाद का प्रभाव देखा गया। फिर साहित्य मे नये नये प्रयोग हुए..फिर भी हिंदी को समृद्ध करने मे इन सबकी अहम भूमिका रही। प्रयोग वाद काल मे अनेअ तरह के प्रयोग हुए। आजादी के संधिकाल में तीनों तारसप्तकों के कवियों ने कम शब्दों मे अधिक आकाश बांधा। इस तरह हिंदी साहित्य ने वैश्विक जगत मे अपना स्थान बना लिया। वर्ड्सवर्थ, शेली ,कीट्स ,वायरन आदि को पढ़ते हैं तो हमारे हिंदी मे लिखी कवितायें उनसे कमतर नहीं उनसे भी आगे दीखती हैं।
रामधारी सिंह दिनकर की सामाजिक सोच उनकी कविताओं मे उजागर हुई लोक चेतना को जगाने मे उनके साहित्य ने एक अलग स्थान बनाया। कविता आम लोगों के बीच रही। हिंदी साहित्य में प्रकृति का सौदर्य तो दिखा ही सामाजिक यथार्थ भी झांकता रहा। हिंदी कविता की तरह गद्य साहित्य मे भी खूब विकास हुआ। गद्य तथा पद्य में मन्मथनाथ गुप्त,मुंशीप्रेमचंद, यशपाल, लक्ष्मी कांत वर्मा, गजानन माधव मुक्तिबोध ,अज्ञेय आदि की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को चरमोत्कर्षपर पहुंचा दिया। यहां चाटुकारिता पूर्ण रचनाएं नहीं सामाजिक ताने बाने मे बुनी कवितायें थी और साहित्य में यथार्थ बोध के साथ अन्याय के प्रति विद्रोह था। हिंदी साहित्य ने सामाजिक यथार्थ प्रस्तुत किए हैं और सत्ता को सदा सबक भी दिया है। अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाई,कभी अत्याचार का साथ नहीं दिया है। यद्यपि भूषण बिहारी का भी एक युग रहा। जब कवि राजाश्रित हुए पर
जो साहित्य सत्ता की चाटुकारिता करता रहा हो उसे हमने अच्छा साहित्य कभी नहीं माना है। हम सदा मानते रहे हैं साहित्य वही है.. ‘हितेन सह सहितम्। सहितस्य भाव; साहित्यम् ।’ जिससे समाज का हित हो.. जो समाज की चेतना जगा सके वह साहित्य है्।