जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पतिनी अमावस्या, भाद्रपद अमावस्या व पिठोरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पुरोहित वर्ष भर कर्मकाण्ड कराने के लिए, नदी, घाटियों से कुशा नामक घास उखाड़ कर घर लाते है। कुशा घास को उत्तराखंड में कांस कहते है। कुशा का वैज्ञानिक नाम एराग्रोस्टिस सिनोसुरोइड्स कहते है। धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह वर्ष भर तक पुण्य फलदायी होती है। बिना कुशा घास के कोई भी धार्मिक पूजा निष्फल मानी जाती है। इसलिए कुशा घास का उपयोग हिन्दू पूजा पद्धति में प्रमुखता से किया जाता है। इस दिन तोड़ी गई कोई भी कुशा वर्ष भर पवित्र रहती हैं।
कुशोत्पाटिनी अमावस्या का महत्व
ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि सही व शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य कभी निष्फल नहीं होता, उसके सफल होने की पूर्ण संभावना होती है। ऐसे कई विशेष मुहूर्त होते हैं जैसे गुरुपुष्य, रविपुष्य, सर्वार्थसिद्धि योग, त्रिपुष्कर योग आदि। शास्त्रानुसार हमारे हिन्दू कर्मकांडों में ‘पावित्री का विशेष महत्व बताया गया है। बिना पावित्रीधारण किए कोई कर्मकांड पूर्ण नहीं माना जाता है।
‘पावित्री कुशा से बनी अंगूठी अथवा स्वर्ण से बनी अंगूठी को कहा जाता है। ‘पावित्री बनाने के लिए कुशा को उखाड़ा जाता है। यह कार्य केवल अमावस्या को ही संपन्न किया जाता है। अमावस्या को उखाड़ा गया कुशा एक माह तक पवित्र व शुद्ध माना गया है। शास्त्रानुसार तीर्थ स्नान, संध्योपासन, पूजन, जप, होम, पितृकर्म, तर्पण आदि में पावित्री धारण करना आवश्यक है।
‘पावित्री धारण के नियम…
स्वर्ण से बनी ‘पावित्री (अंगूठी) कुशा की पावित्री’ से अधिक शुद्ध मानी जाती है।
‘पावित्री’ पहनकर भोजन करने से उसका त्याग करना आवश्यक होता है।
दो कुशों से बनी ‘पावित्री’ को दाहिने हाथ की अनामिका के मूल में धारण किया जाता है।
तीन कुशों से बनी ‘पावित्री’ को बाएं हाथ की अनामिका के मूल में धारण किया जाता है।
कुशोत्पाटन (कुशा उखाड़ने) के नियम…
प्रत्येक मास की अमावस्या को उखाड़ा गया कुश एक माह तक शुद्ध व उपयोगी रहता है।
भाद्रपद मास की अमावस्या जिसे कुशोत्पाटनी अमावस्या कहा जाता है, इस दिन उखाड़ा गया कुश एक वर्ष तक पवित्र व उपयोगी होता है, इसीलिए ‘कुशोत्पाटिनी’ अमावस्या का विशेष महत्व होता है।
कुश को सदैव ‘हुं फट्’ बीज मंत्र के उच्चारण के साथ एक बार में उखाड़ना चाहिए। जिस कुशा का अग्रभाग कटा हो, जो मार्ग में हो, जो अशुद्ध स्थान में हो ऐसे कुश को नहीं उखाड़ना चाहिए।
कुशा को उखाड़ते समय श्वेत वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाड़ना चाहिए।
कुशा सदैव प्रात:काल ही उखाड़ना चाहिए।
कुशोत्पाटनी अमावस्या तिथि
इस वर्ष 14 सितंबर 2023, दिन गुरुवार, भाद्रपद मास की ‘कुशोत्पाटनी अमावस्या’ है। जो साधक साधना एवं कर्मकांड के लिए कुशोत्पाटन करना चाहते हैं वे इस दिन उपर्युक्त विधि से कुशोत्पाटन कर सकते हैं।