जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
हिंदू धर्म में राधा अष्टमी का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की उपासना करने से साधक को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन राधा अष्टमी पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की उपासना करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। बता दें कि राधा अष्टमी पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से श्री किशोरी जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
राधा अष्टमी की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 सितंबर दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी और 23 सितंबर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। उदया तिथि के अनुसार, राधा अष्टमी पर 23 सितंबर 2023, शनिवार के दिन हर्षोल्लाह के साथ मनाया जाएगा। इस दिन मध्यान्ह पूजा समय सुबह 10 बजकर 21 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त
पंचांग में बताया गया है कि राधा अष्टमी पर्व के दिन सौभाग्य और शोभन योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ इस दिन रवि योग भी बन रहा है। बता दें कि सौभाग्य योग रात्रि 09 बजकर 21 मिनट तक रहेगा और इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। साथ ही रवि योग दोपहर 12 बजकर 56 मिनट से 24 सितंबर सुबह 05 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। शास्त्रों में बताया गया है कि इन शुभ योग में पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है।
राधा अष्टमी की पूजा विधि
राधा अष्टमी पर्व के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें और साफ कपड़े पहन लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और सबसे पहले प्रथम पूज्य श्रीगणेश की पूजा करें। अब राधारानी की पूजा की तैयारी करें। एक तांबे या मिट्टी का कलश स्थापति करें और तांबे के पात्र में राधाजी की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें वस्त्र पहनाएं। इसके बाद फूल, श्रृंगार के सामान, भोग आदि अर्पित करें और राधाजी के मंत्रों का जाप करें। आखिर में आरती करें और भक्तजानों व परिवार वालों में प्रसाद बांटें।
राधा अष्टमी का महत्व
जिस तरह श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन उपवास रखा जाता है ठीक उसी प्रकार राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। यह पर्व श्री किशोरी जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन राधा रानी की उपासना करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य, आयु एवं सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
राधा अष्टमी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब माता राधा स्वर्ग लोक से कहीं बाहर गई थीं, तभी भगवान श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। जब राधा ने यह सब देखा तो नाराज हो गईं और विरजा का अपमान कर दिया। आहत विरजा नदी बनकर बहने लगी। राधा के व्यवहार पर श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा को गुस्सा आ गया और वह राधा से नाराज हो गए। सुदामा के इस तरह के व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गईं और उन्होंने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। इसके बाद सुदामा ने भी राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया। राधा के श्राप की वजह से सुदामा शंखचूड़ नामक दानव बने, बाद में इसका वध भगवान शिव ने किया। वहीं सुदामा के दिए गए श्राप की वजह से राधा जी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर आईं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण का वियोग सहना पड़ा। कुछ पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लिया, ठीक उसी तरह उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रूप में पृथ्वी पर आई थीं। ब्रह्म वैवर्त पुराण की मानें तो राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थीं और उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था।