नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा नौकरी नहीं बल्कि एक मिशन है जिसका सामूहिक लक्ष्य भारत को समावेशी और विकसित राष्ट्र बनाना है। मुर्मु ने सोमवार को यहां विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में सहायक सचिवों के रूप में तैनात वर्ष 2021 बैच के 182 भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका सेवा अधिकार, भूमिका और दायित्व किसी भी अन्य सेवा से भिन्न है।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा एक मिशन है सिर्फ एक नौकरी नहीं। यह भारत और भारतीयों को सुशासन के ढांचे के तहत अग्रणी बनाने का मिशन है। उन्होंने कहा कि देश और उसके लोगों की सेवा करना उनकी नियति है। भारत को एक समावेशी और विकसित राष्ट्र बनाना उनका सामूहिक लक्ष्य है। अधिकारी युवा नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में उनकी क्षमता का एहसास कराने में सक्षम बनाकर एक बड़ा योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के पास वर्ष 2047 के विकसित राष्ट्र निर्माण में योगदान देने का अवसर है। उन्होंने कहा कि अधिकारी प्रतिबद्धता और रचनात्मकता के माध्यम से देश को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और प्रभावी परिवर्तन-एजेंट बन सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि निर्धनों और वंचितों की भावनाओं को समझने वाला सिविल सेवक ही वास्तव में सच्चा सिविल सेवक होता है, जो केवल नौकरशाही से अलग होता है। समाज के वंचित वर्गों का उत्थान करना सिविल सेवकों के लिए विश्वास का विषय होना चाहिए। उन्होंने आग्रह किया कि सिविल सेवकों को ‘फ़ाइल से फ़ील्ड’ और ‘फ़ील्ड से फ़ाइल’ के बीच के अन्तर को समझने का प्रयास करना चाहिए यानि उन्हें केवल कार्यालय और फाइलों से परे जाकर व्यक्तियों के कष्टों और भावनाओं को समझना होगा। उन्होंने कहा कि यह जन-केंद्रित सतर्कता और संवेदनशीलता उन्हें फाइलों के साथ कहीं अधिक सार्थक तरीके से जुड़ने में सक्षम बनाएगी। (वार्ता)