बोली बनाओ! कबीला बचाओ! उत्तर बंगाल की मुहिम रंग लायी।

के. विक्रम राव

विलुप्त होती बोलियों के वुजूद को संरक्षित करने के प्रयास में अब एक भाषाविद् का नाम और जुड़ गया है। वे हैं बैंक कार्मिक आदिवासी धनीराम टोटो जिन्हें गत गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2023) पर पद्मश्री से नावाजा गया था। पिछले दिनों इस बंगाल-भूटान सीमा के ग्रामीण धनीराम ने कोलकाता विश्वविद्यालय की मदद से अपनी विलुप्तप्राय बोली टोटो का “शब्द संग्रह” रचा है। (देखें चित्र)। उनकी पुस्तक “धनुआ टोटोर कथामाला” बांग्ला लिपि में अब प्रकाशित हो गई है। अगले सप्ताह (7 अक्टूबर 2023) इस बोली के पहले शब्दकोश का कोलकाता में विमोचन होगा। टोटो बोली भारत में चंद लोग ही इस्तेमाल करते हैं। धनीराम का दावा है कि इस शब्दकोश के माध्यम से उनकी जातीय बोली की समुचित हिफाजत होगी। यूनेस्को की हाल में एक रपट में बताया गया था कि टोटो अब मात्र सोलह सौ लोग ही बोलते हैं। यह एक चीन-तिब्बती भाषा है जो भारत और भूटान की सीमा पर, पश्चिम बंगाल के टोटोपारा में आदिवासी टोटो लोगों द्वारा बोली जाती है। यह उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में सुभापारा, धुनचिपारा और पंचायतपारा पहाड़ियों में ही चलन में है।

भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने टोटो जनजाति की भाषा पर एक अध्ययन करने का निर्णय लिया। कारण है इस बात का एहसास कि यह भाषा जनजाति से भी अधिक खतरे में है। शोधकर्ताओं के साथ-साथ टोटो समुदाय के सदस्य भी स्वीकार करते हैं कि संकट आसन्न है। अन्य भाषाओं, विशेषकर नेपाली और बंगाली, का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। टोटो के पहले व्याकरणिक रेखाचित्र पर हिमालयी भाषा परियोजना काम कर रही है। इसीलिए पद्मश्री पुरस्कार हेतु धनीराम के चयन भी एक खास घटना रही। यूं तो गत दशकों की चयन प्रणाली ही चलती रहती तो शायद पश्चिम बंगाल में ही कोई भी न जानता की उत्तरी पर्वतश्रृंखलाओं पर युगों से बसे जनजाति के लोग कौन-कौन सी बोलियों को उपयोग करते हैं। भला हो कोलकाता विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा और साहित्य विभाग के प्राध्यापक मृण्मय परमाणिक का जिन्होंने टोटो बोली का विवरण उजागर किया। वे कोलकाता कम्पेरेटिस संस्था से जुड़े हैं। इसकी स्थापना सर आशुतोष मुखर्जी ने की थी। वे प्रख्यात राजनेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता थे। सर आशुतोष अविभाजित बंगाल के नामी विधिवेत्ता, शिक्षाशास्त्री, गणितज्ञ थे। उन्होंने अपने प्रदेश की भिन्न बोलियों और भाषाओं के संरक्षण और वर्धन का अभियान चलाया था।

यूनेस्को की प्रयासों से विश्व की लुप्तप्राय बोलियों का संरक्षण मुमकिन दिखता है। पर टोटो बोली को अपने पड़ोस से ही खतरा दिखता है। खासकर नेपाली और बांग्ला भाषाओं से ये दोनों भाषायें इतनी अधिक प्रचलन में हैं कि टोटो कबीले के लोग ही अपनी मातृबोली की अपेक्षा करते हैं। उसकी आवश्यकता भी घट रही है। बैंककर्मी भक्त टोटो जो कवि भी हैं ने इसी कारणवश एक त्रिभाषा शब्दकोश की रचना प्रारम्भ की है। इसमें टोटो के शब्दों को बांग्ला तथा अंग्रेजी में तत्सम शब्द दिए जाएंगे। टोटो को 25 खण्डों में विभाजित कर ध्वनि आधारित शब्द बनाए जा रहे हैं। इसमें 19 व्यंजन और छः स्वर होंगे। इन्हीं पर उच्चारण आधारित होगा। इस संदर्भ में धनीराम टोटो ने स्वयं बताया कि उन्होंने बांग्ला वर्णमाला पर खास ध्यान दिया। गायिका, गीतकार, लैला, रूना को निरंतर सुना और तब टोटो में शब्द रचे। धनीराम ने लिपि भी रची जिसके कारण अब गाथाएं और गाने भी टोटो भाषा में बन रहे हैं। केवल दर्जा दस तक शिक्षित धनीराम टोटो आश्वस्त हैं कि वे टोटो को लुप्त होने से बचा लेंगे। ऑस्ट्रेलिया की विद्वान टोनी एंडरसन ने टोटो बोली का विषय अध्ययन किया है। वे उसे संरक्षित करने हेतु प्रयत्नशील हैं। धनीराम से भेंट करने जर्मनी तथा ब्रिटेन से भाषाविद आए थे। जिस प्रकार न्यूजीलैंड की मारियो बोली बचायी गयी है वैसे ही टोटो को भी बचाएंगे। हालांकि टोटो बोली अब आठ सदी पुरानी है। मंगोल तथा तिब्बती भाषाविद इसके शोध में जुट गए हैं। इस बीच एक अमेरिकी मनोभाषाविद और लेखक स्टीवन आर्थर पिंकर हार्वर्ड से आकर टोटो बोली पर अनुसंधान कर रहे हैं।

उनकी शैक्षणिक विशेषज्ञता दृश्य-अनुभूति और विकासात्मक भाषाविज्ञान है। उनके प्रयोगात्मक विषयों में मानसिक कल्पना, आकार-पहचान, दृश्य ध्यान, बच्चों की भाषा का विकास, भाषा में नियमित और अनियमित घटनाएं, शब्दों और व्याकरण के तंत्रिका आधार, साथ ही व्यंजना, सहज ज्ञान, भावनात्मक अभिव्यक्ति सहित सहयोग और संचार का मनोविज्ञान शामिल है। सामान्य ज्ञान भी। उन्होंने दो तकनीकी पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें भाषा अधिग्रहण का एक सामान्य सिद्धांत प्रस्तावित किया गया है। इसे बच्चों द्वारा क्रिया सीखने में लागू किया गया है। पिंकर को 2004 में “टाइम” पत्रिका की “आज की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों” में सूचीबद्ध किया गया था। यूं तो भारत की अन्य बोलियों के संरक्षण कार्य से मिली सफलता की तुलना में टोटो में परिणाम कम ही है। उदाहरणार्थ : छत्तीसगढ़ी, अवधी, हरयाणवी, मारवाड़ी, ब्रजभाषा और खड़ीबोली हिन्दी की कुछ क्षेत्रीय उपभाषाएँ हैं। लेकिन कभी-कभी किसी सामजिक वर्ग द्वारा प्रयोग होनेवाली भाषा की क़िस्म को भी ‘उपभाषा’ कह दिया जाता है। उपभाषा को बोली भी कहते हैं, हालाँकि यह शब्द मानक भाषाओं के लिए भी इस्तेमाल होता है।

इस बीच विश्व स्तर पर, खासकर अफ्रीकी बोलियों के संरक्षण पर वृहद शोध हो रहा है। जिसका लाभ टोटो को भी मिल सकता है। संयुक्त राष्ट्र संस्था का एक अनुमान है कि दुनिया में कुल भाषाओं की संख्या 6809 है, इनमें से 90 फीसदी भाषाओं को बोलने वालों की संख्या एक लाख से भी कम है। लगभग 150 भाषाएं ऐसी हैं जिनको 10 लाख से अधिक लोग बोलते हैं। लगभग 357 भाषाएं ऐसी हैं जिनको मात्र 50 लोग ही बोलते हैं। वर्ष 2011 में आयोजित जनगणना से पता चला कि भारत में लगभग 19,569 भाषाएँ हैं, जिनमें लगभग 1,369 को बोलियाँ माना जाता है। केवल 121 को भाषाओं के रूप में ही मान्यता दी गई है (स्वीकृति मानदंड यह है कि भाषा को 10,000 या अधिक बोलने वाले हैं)। अतः टोटो केवल बोली है।

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