जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
देश आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है। आज ही के दिन भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म हुआ था।
गाँधी जी के बारे में जानिए?
- एक बार ट्रेन में सफर करते समय गांधी जी का जूता गिर गया उन्होंने बिना देर किए अपना दूसरा जूता भी ट्रेन के बाहर फेंक दिया। उनकी सीट के सामने बैठे एक यात्री यह सब देख रहा था उससे नहीं रहा गया तो उसने गांधीजी से दूसरा जूता फेंकने का कारण पूछ लिया तो गांधीजी बोले एक जूता मेरे किसी काम नहीं आएगा अब यह जूते जिसे मिलेंगे कम से कम उन्हें पहन तो सकेगा।
- महात्मा गांधी वकालत पढ़ने के लिए समुद्री यात्रा की तैयारी कर रहे थे तभी उनकी जाति के लोगों को इसकी जानकारी हुई बापू से कहा गया कि हमारे धर्म में समुद्र पार करने की मनाही है। वहां धर्म की रक्षा नहीं हो पाती। गांधीजी के न मानने पर पंचायत ने उन्हें जाति से बेदखल करने का फैसला सुना दिया। यह भी कहा कि उनकी जो मदद करेगा उसे सजा दी जाएगी। इसके बाद भी गांधीजी विदेश रवाना हो गए।
- 8 नवंबर 1917 को गांधी जी ने सत्याग्रह का दूसरा चरण शुरू किया था वे अपने साथ काम कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ चंपारण पहुंचे। इनमें 6 महिलाएं भी थी। गांधी जी के कहने पर इन महिलाओं ने यहां तीन स्कूल शुरू किए और पढ़ाने के साथ-साथ महिलाओं को खेती, कुएं व नालियों की सफाई भी सिखाई। कस्तूरबा ने भी महिलाओं को शिक्षा और सफाई के लिए जागरूक किया।
- एक बार गांधी जी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी और वह बहुत कमजोर हो गए थे। डॉक्टर ने उनसे कहा कि अगर आप दूध पीना शुरू कर दें तो स्वस्थ हो जाएंगे। तब गांधीजी ने इससे इंकार करते हुए कहा कि दूध कभी मनुष्य का आहार नहीं रहा इस पर केवल गाय भैंस के बछड़े-बछिये का ही अधिकार है इसलिए मैंने दूध पीना छोड़ दिया है।
- राजकोट में गांधीजी के पड़ोस में एक सफाईकर्मी रहता था एक बार किसी समारोह में गांधी को मिठाई बांटने का काम सौंपा गया। तो वे सबसे पहले मिठाई पड़ोस में रहने वाले सफाईकर्मी को देने पहुंच गए। जैसे ही गांधी जी ने उसे मिठाई दी वह दूर हटते हुए बोला मैं अछूत हूं, उन्होंने सफाई कर्मी का हाथ पकड़कर मिठाई पकड़ा दी और उससे बोले हम सब इंसान हैं छूत-अछूत कुछ भी नहीं होता।
- दांडी यात्रा के समय वॉकर नाम का एक अंग्रेज प्रशासक बापू से मिलने गया। गांधीजी के साथियों को लगा कि अंग्रेज प्रशंसक के कारण और रुकना पड़ेगा लेकिन बापू यह कहते हुए चलने लगे कि मैं अभी बाहर हूं, तभी एक सज्जन ने उनसे कहा बापू अगर आप उससे मिल लेते तो आपकी खुशी होती और अंग्रेजी समाचार पत्र में आपका नाम सम्मानपूर्वक छपता, तो बापू ने कहा, मेरे लिए सम्मान से अधिक समय कीमती है।
- गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में बिताए अपने दिनों के बारे में लिखा था कि मेरे साथ के बाकी वकील साथियों की हैंडराइटिंग बहुत सुंदर है इससे प्रभावित होकर मैंने भी अपनी राइटिंग सुधारने के कई प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सका। उस समय मुझे एहसास हुआ कि चीजें वक्त पर ही सुधार लेनी चाहिए वक्त बीतने के बाद पछताना पड़ता है।
शास्त्री जी के बारे में जानिए?
- शास्त्री जी खाने और कपड़े का दुरुपयोग कतई पसंद नहीं करते थे बताया जाता है कि वह फटे पुराने कपड़ों से रुमाल बनवाते थे एक बार जब पत्नी ने उन्हें टोका उन्होंने बेहद सरलता से जवाब दिया कि देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका गुजारा इसी तरह चलता है।
- गांधीजी के आह्वान पर लाल बहादुर शास्त्री 16 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे परिवार ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की लेकिन सभी को पता था कि बाहर से विनम्र लाल बहादुर अंदर से चट्टान की तरह हैं। अंत में जीत लाल बहादुर शास्त्री जी की हुई।
- जब 1965 में देश भुखमरी की समस्या से गुजर रहा था तब शास्त्री जी ने बेतन लेना बंद कर दिया था। उन्होंने कामवाली बाई को भी आने से मना कर दिया था और घर का काम खुद करने लगे थे। उन्हें सादगी पसंद थी इस कारण वे फटे कुर्ते को भी कोट के नीचे पहन लिया करते थे।
- शास्त्री जी किसी भी कार्यक्रम में आम आदमी की तरह जाना पसंद करते थे आयोजक उनके सामने तरह-तरह के पकवान रखते थे तो वे उन्हें समझाते थे कि गरीब आदमी भूखा सोया होगा और मैं मंत्री होकर पकवान खाँऊ यह अच्छा नहीं लगता।
- शास्त्री जी रेल मंत्री थे तो कशी में उनका भाषण होना था। भाषण के लिए जाते समय एक सहयोगी ने उन्हें टोका कि आपका कुर्ता फटा है तो शास्त्री जी ने बिनम्रता से जवाब दिया कि मैं गरीब का बेटा हूं ऐसा रहूंगा तभी गरीब का दर्द समझूंगा।
- शास्त्री जी सत्याग्रह के प्रबल पक्षधर थे और विरोधियों का भी पूरा ख्याल रखते थे। बतौर केंद्रीय गृहमंत्री उन्होंने पहली बार प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार करने का आदेश जारी किया था ताकि कोई भी प्रदर्शनकारी घायल न हो।
- 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय शास्त्री जी ने देशवासियों से अपील की थी कि अन्न संकट से उबरने के लिए सभी देशवासी सप्ताह में 1 दिन का व्रत रखें उनके आहार पर देशवासियों ने सोमवार का व्रत रखना शुरू कर दिया था।