पुण्यतिथि पर विशेष: वसूल और इरादे के पक्के थे स्व. हर्षवर्धन

राम प्यारे प्रसाद
राम प्यारे प्रसाद

पूर्वांचल के कद्दावर नेता पूर्व सांसद स्व.हर्षवर्धन भ्रष्टाचार और सरकारी जुल्म के खिलाफ बुलंद आवाज थे। महराजगंज जिले का जोगिया बारी गांव भ्रष्टाचार, सरकारी जुल्म और पुलिसिया उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष की रणनीति का केंद्र था।मुलायम सिंह के बाद यदि कोई दूसरा”नेता जी”नामधारी था तो वह हर्षवर्धन थे। लखनऊ और पूर्वांचल में वे इसी नाम से मशहूर थे। 1977 से लेकर 2016 के कुछ महीनों तक यह नाम भ्रष्टाचार, पुलिस या प्रशासनिक जुल्म को बढ़ावा देने वालों के लिए भय का पर्याय था। लखनऊ छात्र राजनीति से निकलकर 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर फरेंदा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने आए हर्षवर्धन यहीं के होकर रह गए। 1975 के आपातकाल के बाद 1977 का यह आम चुनाव जनता पार्टी के नाम रहा।लखनऊ से दिल्ली तक इंदरा गांधी की सरकार बदल चुकी थी। हर्षवर्धन परिवर्तन के इस लहर में भी चुनाव हार गए थे। उनके हारने का सिलसिला 1985 तक जारी रहा लेकिन न तो वे हताश हुए और न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की उनकी धार कमजोर हुई।

देखा जाय तो स्व.हर्षवर्धन के राजनीतिक सफर में जीत कम हार ज्यादे रही।वे 1985 में विधायक,1989 में एमपी और कई चुनाव हारने के बाद 2009 में फिर एमपी चुने गए।विधायक जनता पार्टी से हुए,1989 में एमपी जनतादल से हुए और 2009 में दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर संसद पंहुचे हर्षवर्धन की खासियत यह रही कि वे जिस दल में रहे,आला कमान के सर्वाधिक प्रिय रहे। जनता पार्टी में चंद्रशेखर के करीब, जनता दल में वीपी सिंह के, बसपा में मायावती के भी करीब रहे और जब कांग्रेस में आए तो सोनिया और राहुल के भी बेहद करीब हो गए।कह सकते हैं कि स्व.हर्षवर्धन का दल बदलने का भी रिकार्ड रहा। लेकिन वे कभी कुर्सी और सत्ता के लिए दल नहीं बदले। वे वसूलों के पक्के थे, स्वाभिमानी और जमीर वाले नेता थे। उन्होंने जार्ज फर्नांडिस के करीबी होने का भी फायदा हासिल करने का मौका ठुकरा दिया था तब जब वे एनडीए का हिस्सा बने थे। हर्षवर्धन एनडीए को सांप्रदायिक दलों का गठबंधन मानते थे। चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मंत्री पद ठुकरा कर वीपी सिंह के साथ जाना कबूल किया। सिद्धांत ऐसा था कि राजनितिक फायदे के लिए सांप्रदायिक शक्तियों से कभी समझौता नहीं किया।

चार अक्टूबर को स्व.हर्षवर्धन की पुण्यतिथि पर उनके गांव जोगियाबारी में आयोजित कार्यक्रम उनकी स्मृति में एक पर्व जैसा होता है जहां यूपी और पूर्वांचल भर से उनके चाहने वालों का जमावड़ा होता है। यहां सभी नम आंखो से उन्हें याद करते हैं। यह आयोजन उनकी राजनितिक उत्तराधिकारी और कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत और चाचा आनंदवर्धन करते हैं। इस अवसर पर पूर्वांचल के कई जिलों से उनके चाहने वाले उपस्थिति होकर उन्हें नमः आंखों से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। हर्षवर्धन किसी एक क्षेत्र से सांसद या विधायक भले रहे हों,जुल्म और ज्यादती के खिलाफ वे कहीं भी उठ खड़े होते थे। सिद्धार्थनगर जिले के बहुचर्चित करहना कांड के खिलाफ दिल्ली तक की उनकी लड़ाई देश भर में चर्चा के केंद्र में रही।
दर असल वे पूर्वांचल के जिलों में संघर्ष शील राजनीति के प्रेरणा पुरुष थे। हर्षवर्धन कभी लाभ के लिए दल नहीं बदले। सच यह है कि वे जिस दल में गए,वह दल ही शक्तिशाली हुआ।दल छोड़ा तो अपने लिए नहीं,जनसरोकार के लिए। उन्होंने बसपा को भी तब छोड़ा जब मायावती ने महराजगंज जिले का नाम बदलना चाहा।हर्षवर्धन का सुझाव था कि यदि जिले का नाम बदलना ही है तो शिब्बन लाल सक्सेना के नाम से किया जाय।वे नहीं मानीं तो उन्होंने बसपा छोड़ दी। हर्षवर्धन कांग्रेस में आने से पहले भी कांग्रेस के हिमायती रहे।कहा करते थे की यह वसूलों वाली पार्टी है। कांग्रेस में आकर जिले में कांग्रेस को ऊंचाई तक पहुंचाया। आज उनकी बेटी सुप्रिया श्रीनेत कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।

बताने की जरूरत नहीं कि सांसदों को क्षेत्र भ्रमण के लिए मिली सरकारी गाणी का खूब दुरूपयोग हो रहा है।उन गाणियों से सांसद के लग्गू भग्गू घूमते हैं और जहां चाहते हैं वहां ले जाते हैं। जबकि हर्षवर्धन उस सरकारी गाणी का इस्तेमाल केवल क्षेत्र में भ्रमण के लिए करते थे।एक बार का वाकया यूं है कि हर्षवर्धन को बनारस किसी जरूरी काम से जाना था।संयोग से कोई गाणी नहीं थी।एक साथी ने उसी सरकारी गाणी से बनारस चलने का सुझाव दिया। यह सुनकर वे आग बबूला हो गए।बोले जिस गलत काम के लिए वे लड़ते हैं,वहीं करने की सलाह दे रहे हो। उसे इस हिदायत के साथ अपने पास से हटा दिया कि दुबारा दिखना मत।

स्व.वीर बहादुर सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे। हर्षवर्धन विधायक थे। किसी बात को लेकर उनकी मुख्यमंत्री से ठन गई। काफी मान-मनौव्वल हुआ। हर्षवर्धन तभी माने जब मुख्यमंत्री ने उनकी यह मानी कि जितने सरकारी ट्यूबवेल मुख्यमंत्री के क्षेत्र पनियरा में लगेंगे उतने ही हर्षवर्धन के विधानसभा क्षेत्र फरेंदा में लगेंगे। फरेंदा विधानसभा क्षेत्र में उस वक्त सर्वाधिक 57 ट्यूबवेल लगे थे जो क्षेत्र के प्रति उनके समर्पण भाव की याद दिलाते रहते हैं।

हर्षवर्धन समाजवादी विचारधारा के थे। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि स्वतंत्रता संग्राम की थी। हर्षवर्धन के पिता स्व. योगेन्द्र पाल सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे।वे जीवन पर्यन्त गरीबों मजदूरों के लिए लड़ते रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजों के तमाम प्रलोभनों को लात मारकर अंग्रेजों के खिलाफ किसी भी आंदोलन में जान को जोखिम में डालकर अग्रणी भूमिका में रहे। गरीबों और मजदूरों के प्रति दया भाव ऐसी थी कि वे खेतों में खुद ही हल संभाल लेते ताकि मजदूर कुछ पल विश्राम कर सके। स्व.हर्षवर्धन जीवन पर्यन्त अपने पिता के कदमों पर ही चलते रहे। ईश्वर ने उन्हें असीम पीड़ाएं भी दी। पत्नी विष्णु सिंह का असमय ही कैंसर से निधन हो गया। इसके कुछ साल बाद ही इकलौता बेटा भी काल के गाल में समा गया। उत्तराधिकारी के रूप में उनकी इकलौती बेटी सुप्रिया श्रीनेत ही हैं। इतनी असीम पीड़ाओं को सीने में दफन किए हर्षवर्धन को स्वास्थ्य संकट से गुजरना पड़ा। 2014 का चुनाव वे हार गए और गंभीर बीमारी के चलते ही चार अक्टूबर 2016 में उनका निधन हो गया। हर्षवर्धन के निधन के बाद कांग्रेस ने उनकी बेटी सुप्रिया श्रीनेत में कांग्रेस का भविष्य तलाश ली। सुप्रिया एक मशहूर टीवी चैनल में अंतरराष्ट्रीय ख्याति की पत्रकार थीं। वे पत्रकारिता छोड़ कर अपने पिता की विरासत संभालने महराजगंज आ गईं और अपने स्व.पिता हर्षवर्धन की राजनीतिक विरासत को निरंतर आगे बढ़ा रहीं हैं। पिता की तरह वे भी गांधी परिवार के सर्वाधिक निकट हैं। उनमें भी पिता की तरह खुद्दारी कूट कूट कर भरा है। जूझारू पन और संघर्ष शीलता वैसी ही है जैसे हर्षवर्धन की थी।

राम प्यारे प्रसाद : छात्र नेता और जिला पंचायत सदस्य रहे हैं। महराजगंज में स्व.हर्षवर्धन के प्रतिनिधि रहे हैं।

Analysis

UP BY ELECTION: योगी का सियासी बम, अखिलेश का निकला दम

अंततः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में सात सीटों पर बाज़ी मारकर यह साबित कर दिया कि सियासी पिच के फ्रंटफुट पर बैटिंग करने का गुर उन्हें आता है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) योगी के बाउंसर पर पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। अखिलेश का PDA […]

Read More
Analysis

महाराष्ट्र में भगवा का जलवा, ‘I.N.D.I.A.’ को फेल कर गया फ़तवा

अबकी बार योगी का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ ने दिलाई दमदार जीत शिवसेना के वोटरों में भारी टूट, बीजेपी जीत गई महाराष्ट्र के सभी बूथ मुम्बई से लाइव शिवानंद चंद गहरे समंदर की खामोशी पढ़ना आसान है, लेकिन वोटरों की खामोशी पढ़ना किसी भी शिक्षाविद, विद्वान और राजनेता के लिए कठि न है। यही गच्चा […]

Read More
Analysis

EXCLUSIVE: मंगलमास कार्तिक की पूर्णिमा का पूर्ण स्वरूप

संजय तिवारी कार्तिक पूर्ण मास है। प्रत्येक दिवस मंगल है। सनातन का मंगलमास। ऐसे में इस मास की पूर्णिमा तो अद्भुत ही है। सनातन संस्कृति में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास व मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा […]

Read More