डॉ दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताया था।इसके साथ ही उन्होंने सबका साथ सबका विकास को अपना ध्येय बताया था। नरेंद्र मोदी ने अपने इस संकल्प को सिद्ध करके भी दिखाया है। पचास करोड़ से अधिक जन धन खाते,अस्सी करोड़ लोगों को निशुल्क राशन, पचास करोड़ गरीबों को आयुष्मान योजना का कवर, चार करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को आवास, ग्यारह करोड़ से अधिक शौचालय निर्माण,करोडों लोगों को गैस सिलेंडर, निशुल्क बिजली कनेक्शन आदि का लाभ दिया गया। करीब तेरह करोड़ गरीबी रेखा से उपर आ गए है। इज़ ऑफ लिविंग में अभूत पूर्व कार्य हुआ। अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है। बिना भेदभाव के लोगों को लाभान्वित किया जा रहा है।
नरेंद्र मोदी ने यह कभी नहीं कहा कि जातिगत जनगणना के बाद वह सामाजिक न्याय करेंगे। यही नरेंद्र मोदी और इंडी एलायंस नेताओं के बीच अन्तर है। विपक्षी नेता हिन्दू, सनातन के विरोध और जातिगत जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी गरीबों का जीवन स्तर उपर उठा रहे हैं। उनको मूलभूत सुविधाओं से लाभान्वित कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक नीतीश कुमार सुशासन बाबु के रूप में मशहूर थे। भाजपा के साथ कार्य करते हुए उनकी इस छवि का निर्माण हुआ था। लेकिन राजद की संगत में वह जातिवादी राजनीति का मोहरा मात्र बन कर रह गए हैं। आज वह जातिगत जनगणना को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहे हैं। जबकि बिहार एक बार फिर राजद शासन के दौर में पहुँच गया है।
पंद्रह वर्ष तक जाति मजहब के समीकरण बनाकर लालू यादव कुनबे का पंद्रह वर्ष शासन रहा।आज उनके पुत्र उपमुख्यमंत्री हैं। राजद शासन की इस अवधि में विकास तो कोई मुद्दा ही नहीं था। राजद अपने समय का एक भी महत्त्व विकास कार्य बताने की स्थिति में नहीं है। उनका शासन घोषित तौर पर एम वाई समीकरण पर आधारित था। इसमें भी मात्र एक जाति के दबंगों का वर्चस्व था। तब नीतीश कुमार ने ही लालू राबड़ी के शासन को जंगल राज नाम दिया था। बिडम्बना देखिए कि सत्ता में रहते हुए मात्र एक जाति के कुछ लोगों का कल्याण करने वाले अनेक क्षेत्रीय दल जातिगत जनगणना के लिए बेकरार है। वस्तुतः लोकसभा चुनाव में जाति मजहब के समीकरण को ही प्रमुख मुद्दा बनाना इनका एजेंडा है। विकास में इंडी एलायंस के दल भाजपा सरकारों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं। यही दशा कांग्रेस की ही। उसने तो देश में सर्वाधिक समय तक शासन किया है।
उसे बताना चाहिए कि तब पिछड़ों दलितों के लिए उसने क्या किया।आज राहुल गांधी जाति पर आधारित हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं। आज भी उसकी कई प्रदेशों में सरकारें हैं। वही का बता दें कि जातिगत भागीदारी हिस्सेदारी के लिए क्या किया गया। नीतीश कुमार ने लालू यादव के निर्देश पर जातिगत जनगणना तो करा दी। लेकिन इससे उनका महत्व कम हो गया। लालू यादव को तो जातिगत जनगणना से से कोई मतलब ही नहीं। उन्होंने अपनी जाति के अलावा किसी को आगे बढ़ाने का कार्य नहीं किया। दलितों पर तो अत्याचार होते थे। लालू यादव अपने पुत्र तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए परेशान हैं। नीतीश कुमार पर लगातर दबाब बढ़ाया जा रहा है। राजद कोटे के मंत्री वैसे भी नीतीश को कोई महत्व नहीं देते हैं। जातिगत जनगणना रिपोर्ट ने नीतीश के समीकरण को बहुत कमजोर बना दिया है।
बिहार की जातिगत जनगणना रिपोर्ट ने कोई रहस्योद्घाटन नहीं किया है। पहले भी इसी प्रकार का आकलन होता था। सत्ता में रहते अपनी जाति को बढावा देने वाले कुनबे भी यह जानते थे। उन्हें भी अति पिछड़ों अति दलितों की स्थिति पता थी। लेकिन विपक्ष में रहते हुए ये नेता मासूम बनने का ढोंग कर करते रहे। ये जातिगत जनगणना के लिए परेशान हैं। य़ह दिखाने का प्रयास हो रहा है कि जाति के आंकड़े पता चल जाएं, तो ये लोग सत्ता में पहुँच कर चमत्कार कर देंगे। फिर अपने कुनबे और अपनी जाति पर पहले की तरह फोकस नहीं करेंगे, फिर अति पिछड़ों अति दलितों का कल्याण कर देंगे। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। यदि इन दलों में इच्छाशक्ति होती तो सत्ता में रहते हुए गरीबों का बिना भेदभाव के कल्याण करते।
दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी है। भाजपा की अन्य प्रदेश सरकारें हैं। बिना भेदभाव के गरीबों को योजनाओं से लाभान्वित कर रहीं हैं। नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर देश को जाति के आधार पर बांटने का आरोप लगाया। कहा कि भाजपा के लिए देश का गरीब ही सबसे बड़ी जाति है और उसके कल्याण के लिए काम करना ही उद्देश्य। कांग्रेस के नेता कहते हैं कि जितनी आबादी, उतना हक। मैं कहता हूं इस देश में अगर कोई सबसे बड़ी आबादी है तो वह गरीब है। इसलिए मेरे लिए गरीब ही सबसे बड़ी आबादी है और गरीब का कल्याण ही लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि गरीबों में आत्मविश्वास जगाने की केंद्र की योजनाएं बनाई गई।
देश के गरीबों का भला ही देश का भला है। दलित, पिछड़ा, आदिवासी या सामान्य वर्ग से से भी कोई गरीब हो तो उसकी चिंता करना उनकी सरकार का काम है और इसी से देश बदलेगा। कांग्रेस जातियों के बीच बैर बढ़ाना चाहती है।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का होने संबंधी बयान को दोहराते हुए कहा कि अब कांग्रेस कह रही है कि समुदाय की आबादी तय करेगी कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार किसका होगा। अब क्या कांग्रेस अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम करना चाहते हैं।क्या वे अल्पसंख्यकों को हटाना चाहते हैं।इसका अर्थ यह हुआ कि हिंदुओं का ही हक है, मुसलमान का कोई हक नहीं है क्योंकि वह अल्पसंख्यक हैं। आज कांग्रेस को उसके नेता नहीं बल्कि वे लोग चला रहे हैं जो देश विरोधी ताकतों से मिले हुए हैं। कांग्रेस के बड़े नेता मुंह पर ताला लगा कर बैठे हैं और परदे के पीछे बैठे लोग देश विरोधी ताकतों से मिले हुए हैं। इनका मकसद हिंदुओं को सता कर देश को तबाह करना है।