बड़े बुजुर्ग कहते थे जो जिसके पास
होता है, वही दूसरों को दे पाता है,
जो दूसरों को आदर देता है वह स्वयं
भी तो आदरणीय हो जाता है।
सम्मान और अभिमान दो शब्दों में
केवल दो अक्षरों का फ़र्क़ होता है,
परंतु दोनो शब्दों के अर्थ और भाव
में ज़मीन आसमान सा अन्तर है ।
अभिमान तब होता है जब हम मान
लेते हैं कि हमने बहुत काम किया है,
सम्मान तब होता है जब सभी मान लें
कि हमने बहुत बड़ा काम किया है ।
हमें उन फलों जैसा स्वयं
उपयोगी बनना चाहिए,
जिनमें नमक लगायें तो भी
अत्यंत स्वादिष्ट बन जाते हैं।
ऐसा जीवन तो न जियें कि
कितना भी मीठा खायें, या
मीठा बोलें पर हर स्थिति
में मुँह से ज़हर ही उगलें ।
ज्ञान चक्षु जब खुल जाते हैं
हम तभी सत्य देख पाते हैं,
आदित्य सत्य की राहों पर ही
मान सम्मान मिल पाते हैं ।