- रहस्य मय है यह संसार
- पितृपक्ष से देवपक्ष मे गमन
नवरात्र के लगने से देव पक्ष शुरु हुआ। पितृपक्ष के रहस्य देव पक्ष मे खुलते हैं। जो आपने पितरों को पिंड दान दिया। तर्पण किया। उससे पितृगण प्रसन्न हो धरती पर सूक्ष्म से स्थूल बनने की प्रक्रिया मे आए। आकाशीय मेघों से मिल कर धरती की फसल बन गए। फल फूल बनें जिन्हें खाकर सूंघकर नव सृजन के द्वार खुले। बीज का धरती पर गिरना सड़ना बिखरना धूप वर्षा सहना बढ़ना पकना काटा जाना पकाया जाना फिर उसे खा कर उदर मे जाना। पचने के बाद उसका मल मूत्र रक्त मा़स मज्जा बनना यही नर्क के विविध रूप हैं। उसमे से सारतत्व रज वीर्य बन कर नर और नारी के शरीर मे जाकर पुन: रेचन करता है।
काम उत्प्रेरक बनता है। गर्भाधान होता है। जिस कार्य में गर्भस्थ शिशु को नौमाह लगते हैं। देवी के निर्माण मे नौ दिन लगते हैं। न स्वर्ग गलत है और न नर्क। बीज से अन्नादि,फल फूल बनने की प्रक्रिया की यात्रा मात्र है। उपासना और साधना से सारी बाते दृष्टि गोचर होती है। हमारे पुराणो मे सारी बातें प्रतीकात्मक रूप मे बता दी गई है़। किंतु इसे समझ पाना सबके वश की बात नही।
यही है –
राम देखि सुनि चरित तुम्हारे।
जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे।।