शक्ति उपासना के साथ रामोपासना

  • देवी उपासना के बाद शुरु हुई राम की विजय यात्रा
  • राम ने कुल देवी को अपने नेत्र भी चढ़ाये
  • रावण की वीरता देख लंका के शिविर की राम ने शक्ति पूजा
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

महान कवि-सूर्य कांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने राम की शक्ति पूजा लिखी। तो मेरे भीतर उत्सुकता हुई किस ग्रंथ से संदर्भ लिया। बंगाल मे जन्मलेने वाला महाकवि बिना पढ़े तौ मनमानी लिखा नही होगा। फिर विविध ग्रंथ उलटने के बाद… संकेत मात्र मिला। यह जरुर है कि किष्किंधा पर्वत से आगे रावण विजय करने निकले श्रीराम ने शक्ति उपासना किया। बंगाल मे मूर्ति बनाकर नौदिन दुर्गा पूजा शुरु हुई जो न केवल पूरे भारत मे,पूरे विश्व मे फैल गई। जहां जहां भारतीय हैं वहां वहां दुर्गा पूजा है। वैसे भी गृहस्थ के लिए पंचदेवो पासना है। जिसमे विष्णु उपासना के साथ साथ शक्ति उपासना भी शामिल है।शक्ति राजाओं की कुल देवी हर राज्य मे पूजी जाती रही। विजय यात्रा के पूर्व देवी उपासना की सनातन काल से परंपरा नहीं। अयोध्या मे देवकाली मंदिर,रघुवंश की कुल देवी कही जाती हैं।

राम ने लंकाविजय के लिए यात्रा शुरू की तो देवी पूजन किया होगा। एक पुराण मे देवर्षि नारद द्वारा देवी उपासना की प्रेरणा का उल्लेख है। लक्ष्मण ने पूजा की सामग्री एकत्र की एक सौआठ कमल के फूल लाये। राम मंत्र पढ़ते जाते थे कमल का फूल चढ़ाते जाते थे। पर यह क्या 107 सात फूल चढ़ा दिए..एक फूल गायब होगया। राम के चेहरे पर शिकन आई..पूजा से उठ नहीं सकता..एक फूल कहां से लाऊं? अंत मे याद आया ,.. मां मुझको कमल नयन कहती थी..क्यों न अपने नेत्र ही चढ़ा दूं? वैसे भी देवी को रक्त दान लोग करते रहे है,अंगदान बलिदान कहलाता है‌। उन्होंने‌ं वाण से नेत्र की नीचे ज्यो धंसाया…देवी ने प्रकट होकर राम को रोक दिया।

,”साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।”

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

राम की पूजा पूर्ण मानते हुए कुल देवी ने अपराजेय होने का वरदान दिया। अनुमानत: राजकुल की परंपरा के अनुसार नवरात्रि उपासना के बाद विजयदशमी को युद्ध के लिए यात्राएं होती थीं। शारदीय नवरात्रोपासना के बाद पड़ने वाली दशमी को राम ने युद्ध यात्रा शुरू की होगी। कृत्तिवास रामायण की मानें तो लंका के शिविर में राम रावत युद्ध के दौरान ही श्रीराम ने शक्ति उपासना की। स्कंद पुराण के अनुसार कुल 87 दिन राम रावण का युद्ध चला। जिसमे महायुद्ध मे बड़े योद्धाओं की मृत्यु के बाद जितने दिन युद्धविराम हुए,वह भी शामिल है।

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